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संयत अध्ययन उ. गोयमा ! णो इणढे समढे,अब्भक्खाणमेयं देवाणं।
प. भंते ! असंजया इति वत्तव्यं सिया? उ. गोयमा ! णो इणढे समढे,णिठुर वयणमेयं देवाणं।
{ ८४१ ॥ उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है (ऐसा नहीं कहा जाता) यह
देवों के लिए अभ्याख्यान (मिथ्या आरोपित) कथन है। प्र. भंते ! क्या देवों को असंयत कहा जा सकता है? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है (ऐसा नहीं कहा जाता) देवों
के लिए यह (कथन) निष्ठुर वचन है। प्र. भन्ते ! क्या देवों को संयतासंयत कहा जा सकता है? उ. गौतम ! यह अर्थ भी समर्थ नहीं है (ऐसा नहीं कहा जाता) देवों
को “संयतासंयत" कहना असद्भूत (असत्य) वचन है। प्र. भंते ! तो फिर देवों को क्या कहें? उ. गौतम ! देवों को "नोसंयत" कहा जा सकता है।
प. भंते ! संजयासंजया इति वत्तव्वं सिया? उ. गोयमा !णो इणढे समढे, असब्भूयमेयं देवाणं।
प. से किं खाइणं भंते ! देवाणं वत्तव्वं सिया? उ. गोयमा ! देवा णं नोसंजया इति वत्तव्यं सिया।
-विया.स.५,उ.४,सु.२०-२३ १०. जीव-चउवीसदंडएसुसंजयाइ अप्पबहुत्तय पखवणं
प. जीवाणं भंते ! किं संजया, असंजया, संजयासंजया? उ. गोयमा ! जीवा संजया वि, असंजया वि, संजयासंजया
वि। एवं जहेव पण्णवणाए तहेव भाणियव्यं जाव वेमाणिया।
१०. जीव-चौबीसदंडकों में संयतादि का और अल्पबहुत्व का
प्ररूपणप्र. भन्ते ! क्या जीव संयत है, असंयत हैं या संयतासंयत है ? उ. गौतम ! जीव संयत भी हैं, असंयत भी है और संयतासंयत
भी हैं। जिस प्रकार प्रज्ञापना सूत्र में कहा गया है उसी प्रकार वैमानिक
पर्यन्त कहना चाहिए। प्र. भन्ते ! इन संयत, असंयत और संयतासंयत में कौन किनसे
अल्प यावत् विशेषाधिक है? उ. गौतम ! १. सबसे अल्प संयत जीव हैं,
२. (उनसे) संयतासंयत जीव असंख्यातगुणे हैं,
३. (उनसे) असंयत जीव अनन्तगुणे हैं। प्र. भन्ते ! इन असंयत और संयतासंयत पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक
जीवों में कौन किनसे अल्प यावत विशेषाधिक है?
प. एएसि णं भंते ! संजया णं असंजयाणं संजयासंजयाण य
कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा? उ. गोयमा !१.सव्वत्थोवा जीवा संजया,
२. संजयासंजया असंखेज्जगुणा,
३. असंजया अणंतगुणा। प. एएसि णं भंते ! पंचेंदियतिरिक्ख जोणियाणं असंजयाणं
संजयासंजयाणं य कयरे कयरेहितो अप्पा वा जाव
विसेसाहिया वा? उ. गोयमा ! सव्वत्थोवा पंचेंदियतिरिक्खजोणिया संजया
संजया, असंजया असंखेज्जगुणा। मणुस्सा जहा जीवा।
-विया.स.७,उ.२, सु.२८
उ. गौतम ! संयतासंयत पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक सबसे अल्प हैं,
(उनसे) असंयत असंख्यातगुणे हैं। मनुष्यों का अल्पबहुत्व औधिक जीव के समान है।