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- ९२९ । उ. गौतम ! जिसके क्रोध, मान, माया और लोभ नष्ट हो गये हों,
क्रिया अध्ययन उ. गोयमा ! जस्स णं कोह-माण-माया-लोभा वोच्छिन्ना
भवंति, तस्स णं इरियावहिया किरिया कज्जइ, नो संपराइया किरिया कज्जइ जाव उस्सुत्तं रीयमाणस्स संपराइया किरिया कज्जइ। से णं अहासुत्तमेवरीयइ। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"संवुडस्स णं अणगारस्स अवीयीपंथे ठिच्चा पुरओ रूवाई निज्झायमाणस्स जाव अहे रूवाइं आलोएमाणस्स, तस्स णं इरियावहिया किरिया कज्जइ, नो संपराइया
किरिया कज्जइ।" -विया. स.१०, उ. २, सु.२-३ ४६. अणाउत्तं अणगारस्स किरिया परूवणंप. अणगारस्स णं भंते ! अणाउत्तं गच्छमाणस्स वा, चिट्ठमाणस्स वा, निसीयमाणस्स वा, तुयट्टमाणस्स वा, अणाउत्तं, वत्थं पडिग्गहं कंबलं पायपुंछणं गेण्हमाणस्स वा, निक्खिवमाणस्स वा, तस्स णं भंते ! किं इरियावहिया किरिया कज्जइ?
संपराइया किरिया कज्जइ? उ. गोयमा ! णो इरियावहिया किरिया कज्जइ, संपराइया
किरिया कज्जइ। प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ
अणगारस्स णं अणाउत्तं गच्छमाणस्स वा जाव निक्खिवमाणस्स वा; नो इरियावहिया किरिया कज्जइ,
संपराइया किरिया कज्जइ। उ. गोयमा !जस्स णं कोह-माण-माया-लोभा वोच्छिन्ना भवंति
तस्स णं इरियावहिया किरिया कज्जइ, नो संपराइया किरिया कज्जइ। जस्स णं कोह-माण-माया-लोभा अवोच्छिन्ना भवंति तस्स णं संपराइया किरिया कज्जइ, नो इरियावहिया किरिया कज्जइ। अहासुत्तं रियं रीयमाणस्स इरियावहिया किरिया कज्जइ।
उसको ईर्यापथिकी क्रिया लगती है। उसे साम्परायिकी क्रिया नहीं लगती है यावत् सूत्र विरुद्ध प्रवृत्ति करने वाले को सांपरायिकी क्रिया लगती है क्योंकि वह सूत्र विरुद्ध आचरण करता है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"संवृत अनगार अकषायभाव में स्थित होकर सामने के रूपों को निहारते हुए यावत् नीचे के रूपों को देखते हुए उसको ईर्यापथिकी क्रिया लगती है, किन्तु साम्परायिकी क्रिया
नहीं लगती है।" ४६. उपयोग रहित अनगार की क्रिया का प्ररूपणप्र. भंते ! उपयोगरहित गमन करते हुए, खड़े होते हुए, बैठते हुए
या करवट बदलते हुए और इसी प्रकार बिना उपयोग के वस्त्र, पात्र, कम्बल और पादपोंछन ग्रहण करते हुए या रखते हुए अनगार कोभंते ! ऐपिथिकी क्रिया लगती है या साम्परायिकी क्रिया
लगती है? उ. गौतम ! ऐसे अनगार को ऐर्यापथिकी क्रिया नहीं लगती है - किन्तु साम्परायिकी क्रिया लगती है। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि
"उपयोगरहित अनगार को गमन करते हुए यावत् (उपकरण) रखते हुए “ऐर्यापथिकी क्रिया नहीं लगती है किन्तु
साम्परायिकी क्रिया लगती है?" उ. गौतम ! जिस जीव के क्रोध, मान, माया और लोभ व्युच्छिन्न
(उपशांत) हो गए हैं, उसी को ऐर्यापथिकी क्रिया लगती है साम्परायिकी क्रिया नहीं लगती है। किन्तु जिस जीव के क्रोध, मान, माया और लोभ व्युच्छिन्न नहीं हुए हैं उसको साम्परायिकी क्रिया लगती है ऐर्यापथिकी क्रिया नहीं लगती है। सूत्र के अनुसार प्रवृत्ति करने वाले अनगार को ऐर्यापथिकी क्रिया लगती है। उत्सूत्र प्रवृत्ति करने वाले अनगार को साम्परायिकी क्रिया लगती है। क्योंकि पूर्वोक्त अनगार सूत्र विरुद्ध प्रवृत्ति करता है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"उपयोग रहित गमन करते हुए यावत् उपकरण रखते हुए अनगार को ऐर्यापथिकी क्रिया नहीं लगती है किन्तु साम्परायिकी क्रिया लगती है।"
उस्सुत्तं रीयमाणस्स संपराइया किरिया कज्जइ,
से णं उस्सुत्तमेवरियाइ। से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"अणगारस्स णं अणाउत्तं गच्छमाणस्स वा जाव निक्खिवमाणस्स वा नो इरियावहिया किरिया कज्जइ, संपराइया किरिया कज्जइ।" -विया. स.७, उ.१, सु.१६