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क्रिया अध्ययन
एवंणेरइयाण णिरंतर जाव वेमाणियाण।
एवं ६. कोहेणं, ७. माणेणं, ८. मायाए, ९. लोभेणं, १०. पेज्जेणं, ११. दोसेणं, १२. कलहेणं, १३. अब्भक्खाणेणं, १४.पेसुण्णेणं, १५.परपरिवाएणं, १६. अरइरईए, १७. मायामोसेणं, १८. मिच्छादसणसल्लेणं, सव्येसु जीव रइयभेदेसु भाणियव्वं णिरंतरं जाव वेमाणियाणं ति। एवं अट्ठारस एए दंडगा।
___ -पण्ण. प. २२, सु.१५७४-१५८० प. अत्थि णं भंते ! जीवाणं पाणाइवाएणं किरिया कज्जइ? उ. हंता, गोयमा ! अत्थि। प. सा भंते ! किं पुट्ठा कज्जइ, अपुट्ठा कज्जइ?
उ. गोयमा ! पुट्ठा कज्जइ, नो अपुट्ठा कज्जइ जाव
निव्वाघाएणं छद्दिसिं, वाघायं पडुच्च सिय तिदिसिं, सिय चउदिसिं, सिय पंचदिसिं।
प. सा भंते ! किं कडा कज्जइ,अकडा कज्जइ?
उ. गोयमा ! कडा कज्जइ, नो अकडा कज्जइ।
- ९३९ ) इसी प्रकार निरन्तर नैरयिकों से वैमानिकों पर्यन्त कथन करना चाहिए। इसी प्रकार ६. क्रोध से ७. मान से, ८. माया से, ९. लोभ से, १०. राग से, ११. द्वेष से, १२. कलह से, १३. अभ्याख्यान से, १४. पैशुन्य से, १५. परपरिवाद से, १६.अरति-रति से, १७. मायामृषा से एवं १८.मिथ्यादर्शनशल्य से समस्त जीवों तथा नारकों के भेदों में निरन्तर वैमानिक पर्यन्त आलापक कहने चाहिए।
इस प्रकार ये अठारह दंडक हुए। प्र. भंते ! क्या जीवों द्वारा प्राणातिपातक्रिया की जाती है? उ. हाँ, गौतम ! की जाती है। प्र. भंते ! क्या वह (प्राणातिपातक्रिया) स्पर्श करके की जाती है
या बिना स्पर्श किये जाती है? उ. गौतम ! स्पर्श करके की जाती है स्पर्श किये बिना नहीं की
जाती है (स्पर्श किये जाने पर) यावत् व्याघात न हो तो छहों दिशाओं को और व्याघात हो तो कदाचित् तीन दिशाओं को, कदाचित् चार दिशाओं को और कदाचित् पाँच दिशाओं को
स्पर्श करके (प्राणातिपात क्रिया) की जाती है ? प्र. भंते ! क्या वह (प्राणातिपात) कृत (क्रिया करके) की जाती
है या अकृत (बिना क्रिया किये) की जाती है? उ. गौतम ! प्राणातिपात क्रिया कृत (क्रिया करके) की जाती है
अकृत (बिना क्रिया किये) नहीं की जाती है। प्र. भंते ! क्या वह प्राणातिपात क्रिया स्वयं द्वारा की जाती है, पर
द्वारा की जाती है या उभय द्वारा की जाती है? उ. गौतम ! वह क्रिया स्वयं द्वारा की जाती है, न अन्य द्वारा की
जाती है और न उभय द्वारा की जाती है। प्र. भंते ! क्या वह (प्राणातिपात क्रिया) अनुक्रम से की जाती है
या बिना अनुक्रम से की जाती है? उ. गौतम ! वह क्रिया अनुक्रम से की जाती है, बिना अनुक्रम के
नहीं की जाती है। जो क्रिया की गई है, जो क्रिया की जा रही है और जो क्रिया की जाएगी वह सब अनुक्रम से की गई है,
किन्तु बिना क्रम के नहीं की गई है ऐसा कहना चाहिए। प्र. भंते ! क्या नैरयिकों द्वारा प्राणातिपात क्रिया की जाती है ? उ. हां, गौतम ! की जाती है। प्र. भंते ! जो क्रिया की जाती है वह (नैरयिकों द्वारा) क्या स्पर्श
करके की जाती है या बिना स्पर्श किये की जाती है? उ. गौतम ! वह क्रिया यावत् नियम से छहों दिशाओं को स्पर्श
करके की जाती है। प्र. भंते ! जो क्रिया की जाती है क्या वह (नैरयिकों द्वारा) क्रिया
करके की जाती है या बिना क्रिया किये की जाती है? उ. गौतम ! वह क्रिया करके की जाती है बिना क्रिया किये नहीं
की जाती है उसी प्रकार (पूर्ववत्) बिना क्रम के नहीं की जाती है-पर्यन्त कहना चाहिए। एकेन्द्रिय को छोड़कर वैमानिक पर्यन्त नैरयिकों के समान कहना चाहिए।
प. सा भंते ! किं अत्तकडा कज्जइ, परकडा कज्जइ,
तदुभयकडा कज्जइ? उ. गोयमा ! अत्तकडा कज्जइ, नो परकडा कज्जइ, नो
तदुभयकडा कज्जइ। प. सा भंते ! किं आणुपुटिव कडा कज्जइ, अणाणुपुव्विं कडा
कज्जइ? उ. गोयमा ! आणुपुद्धि कडा कज्जइ, णो अणाणुपुव्विं कडा
कज्जइ, जा य कडा, जा य कज्जइ, जा य कज्जिस्सइ, सव्वा सा आणुपुविकडा, नो अणाणुपुव्वि कडत्ति
वत्तव्वयं सिया। प. अस्थि णं भंते ! नेरइयाणं पाणाइवायकिरिया कज्जइ? उ. हंता,गोयमा ! अत्थि। प. सा भंते ! किं पुट्ठा कज्जइ, अपुट्ठा कज्जइ?
उ. गोयमा ! जाव नियमा छद्दिसिं कज्जइ।
प. सा भंते ! किं कडा कज्जइ, अकडा कज्जइ?
उ. गोयमा ! कडा कज्जइ, नो अकडा कज्जइ तं चेव जाव नो
अणाणुपुव्विं कडत्ति वत्तव्यं सिया।
जहा नेरइया तहा एगिंदियवज्जा भाणियव्वा जाव वेमाणिया,