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क्रिया अध्ययन
६९. चउव्विहाओ अंतकिरियाओ
चत्तारि अंतकिरियाओ पण्णत्ताओ,तं जहा१. तत्थ खलु इमा पढमा अंतकिरिया
अप्पकम्मपच्चायाए या वि भवइ, से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए, संजमबहुले, संवरबहुले, समाहिबहुले, लूहे, तीरट्ठी उवहाणवं दुक्खक्खवे तवस्सी ।
तस्स णं णो तहप्पगारे तवे भवइ, णो तहप्पगारा-वेयणा भवइ, तहप्पगारे पुरिसजाए दीहेणं परियाएणं सिज्झइ, बुज्झइ, मुच्चइ, परिणिव्वायइ सव्वदुक्खाणमंतं करेइ,
जहा-से भरहे राया चाउरंतचक्कवट्टी, पढमा अंतकिरिया। २. अहावरा दोच्चा अंतकिरिया,
महाकम्मे पच्चायाए या वि भवइ, से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए, संजमबहुले जाव उवहाणवं दुक्खक्खवे तवस्सी,
तस्स णं तहप्पगारे तवे भवइ तहप्पगारा वेयणा भवइ, तहप्पगारे पुरिसजाए निरुद्धणं परियाएणं सिज्झइ जाव सव्वदुक्खाणमंतं करेइ,
जहा से गयसुहमाले अणगारे, दोच्चा अंतकिरिया। ३. अहावरा तच्चा अंतकिरिया,
महाकम्मे पच्चायाए या वि भवइ, से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए, संजम बहुले जाव उवहाणवं दुक्खक्खवे तवस्सी,
- ९६५ ) ६९. चार प्रकार की अन्तक्रियाएं
अन्तक्रिया चार प्रकार की कही गई है, यथा१. उनमें यह प्रथम अन्तक्रिया है
कोई पुरुष अल्प कर्मों के साथ मनुष्य जन्म को प्राप्त होता है। वह मुण्डित होकर गृहस्थ से अनगार धर्म में प्रव्रजित हो संयम, संवर और समाधि-युक्त होकर रूक्षभोजी, संसार सागर को पार करने का इच्छुक, उपधान करने वाला, दुःख को खपाने वाला तपस्वी होता है। उसके न तो उस प्रकार का उत्कृष्ट तप होता है, न उस प्रकार की उत्कृष्ट वेदना होती है। इस प्रकार का पुरुष दीर्घ पर्याय के द्वारा सिद्ध बुद्ध, मुक्त परिनिवृत्त हो सब दुःखों का अन्त करता है।
जैसे-चातुरन्त चक्रवर्ती भरत राजा, यह प्रथम अन्तक्रिया है। २. दूसरी अन्तक्रिया इस प्रकार है
कोई पुरुष बहुत कर्मों के साथ मनुष्य जन्म को प्राप्त होता है। वह मुण्डित होकर गृहस्थ से अनगार धर्म में प्रव्रजित हो, संयमयुक्त यावत् उपधान करने वाला, दुःख को खपाने वाला तपस्वी होता है। उसके उत्कृष्ट तप होता है। उत्कृष्ट वेदना होती है। इस प्रकार का पुरुष अल्पकालिक साधु-पर्याय के द्वारा सिद्ध होता है यावत् सर्व दुःखों का अन्त करता है।
जैसे-गजसुकुमाल अनगार, यह दूसरी अन्तक्रिया है। ३. तीसरी अन्तक्रिया इस प्रकार है
कोई पुरुष बहुत कर्मों के साथ मनुष्य-जन्म को प्राप्त होता है। वह मुण्डित होकर गृहस्थ से अनगार धर्म में प्रव्रजित हो संयमयुक्त यावत् उपधान करने वाला, दुःख को खपाने वाला तपस्वी होता है। उसके उत्कृष्ट तप होता है, उत्कृष्ट वेदना होती है। इस प्रकार का पुरुष दीर्घ-कालिक साधु-पर्याय के द्वारा सिद्ध होता है यावत् सर्व दुःखों का अन्त करता है। जैसे-चातुरन चक्रवर्ती सनत्कुमार राजा, यह तीसरी
अन्तक्रिया है। ४. चौथी अन्तक्रिया इस प्रकार है
कोई पुरुष अल्प कर्मों के साथ मनुष्य जन्म को प्राप्त होता है। वह मुण्डित होकर गृहस्थ से अनगार धर्म में प्रव्रजित हो संयमयुक्त यावत् उपधान करने वाला दुःख को खपाने वाला तपस्वी होता है। उसके न तो उत्कृष्ट तप होता है न उत्कृष्ट वेदना होती है। इस प्रकार का पुरुष अल्पकालिक साधु-पर्याय के द्वारा सिद्ध होता है यावत् सर्व दुःखों का अन्त करता है। जैसे भगवती मरुदेवी! यह चौथी अन्तक्रिया है।
तस्स णं तहप्पगारे तवे भवइ, तहप्पगारा वेयणा भवइ, तहप्पगारे पुरिसजाए दीहेणं परियाएणं सिज्झइ जाव सव्वदुक्खाणमंतं करेइ जहा से सणंकुमारे राया चाउरंतचक्कवट्टी, तच्चा
अंतकिरिया। ४. अहावरा चउत्था अंतकिरिया
अप्पकम्म पच्चायाए या वि भवइ, से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए, संजमबहुले जाव उवहाणवं दुक्खक्खवे तवस्सी,
तस्स णं णो तहप्पगारे तवे भवइ, णो तहप्पगारा वेयणा भवइ, तहप्पगारे पुरिसजाए निरुद्धणं परियाएणं सिज्झइ जाव सव्वदुक्खाणमंतं करेइ, जहा सा मरूदेवा भगवई,चउत्था अंतकिरिया।
-ठाणं. अ.४, उ.१,सु.२३५