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द्रव्यानुयोग-(२)
२८. आसवऽज्झयणं
२८. आश्रव अध्ययन
मृत्र १. पंच आसवस्स हेउ परूवणं
पंच आसवदारा पण्णत्ता,तं जहा१. मिच्छत्तं, २. अविरई, ३. पमादो, ४. कसाया, ५. जोगा।
-ठाणं.अ.५, उ.१.स.४१८ आसवस्स पंच पगारापंचविहो पण्णत्तो जिणेहिं इह अण्हओ अणाइओ।
सूत्र १. आश्रव के पाँच हेतुओं का प्ररूपण
आश्रव के पाँच हेतु कहे गए हैं, यथा१. मिथ्यात्व-विपरीत तत्वश्रद्धा, २. अविरति-अत्यागवृत्ति, ३. प्रमाद-आत्मिक अनुत्साह, ४. कषाय-आत्मा का राग-द्वेषात्मक उत्ताप,
५. योग-मन, वचन और काया का व्यापार। २. आश्रव के पाँच प्रकार -
जिनेन्द्र भगवान ने इस जगत में अनादि (कर्म) आश्रव पाँच प्रकार का कहा है,यथा१. हिंसा, २, मृषा, ३. अदत्तादान, ४. अब्रह्म,
५, परिग्रह। ३. प्राणवध प्ररूपण का निर्देश
१. प्राणवध (हिंसा) रूप प्रथम आश्रव जैसा है, २. उसके जितने नाम हैं, ३. जिन पापी प्राणियों द्वारा वह किया जाता है, ४. जैसा (घोर दुःखमय) फल प्रदान करता है, ५. जिस प्रकार किया जाता है उसे तुम सुनो।
हिंसामोसमदत्तं,अब्बंभ परिग्गहं चेव ॥
-पण्ह.सु.१,आ.१,सु.१,गा.२ ३. पाणवह परूवणस्स णिदेसो
१. जारिसओ, २. जं नामा, ३. जह य कओ, ४. जारिसं फलं देंति, ५. जे वि य करेंति पावा, पाणवह तं निसामेह॥
-पण्ह.सु.१, आ.१,सु.१,गा.३ ४. पाणवह सरूवं
पाणवहो नामेस निच्चं जिणेहिं भणिओ,तं जहा
१.पावो, २.चंडो, ३.रुद्दो, ४.खुद्दो, ५. साहसिओ, ६.अणारिओ, ७.णिग्घिणो, ८.णिस्संसो, ९, महब्भओ, १०.पइभओ, ११.अइभओ, १२.बीहणओ, १३.तासणओ, १४.अणज्जो, १५.उव्वेयणओय, १६.णिरवयक्खो, १७.णिद्धम्मो, १८.णिप्पिवासो, १९.णिक्कलुणो, २०.णिरयवासगमणनिघणो, २१.मोहमहब्भयपयट्टओ, २२.मरणवेमणस्सो॥ एस पढमं अधम्मदारं॥ -पण्ह. सु.१, आ.१, सु.२ पाणवहस्स पज्जवणामाणितस्स (पाणवहस्स) य नामाणि इमाणि गोण्णाणि होति तीसं, तं जहा१. पाणवहं, २. उम्मूलणा सरीराओ, ३. अवीसंभो, ४. हिंसविहिंसा तहा, ५. अकिच्चं च, ६. घायणा य, ७.मारणा य, ८.वहणा, ९.उद्दवणा, १०. तिवायणा य ११.आरंभसमारंभो,१२. आउयकम्मस्सुवदवो भेयणिट्ठवण गालणा य संवट्टगसंखेवो, १३. मच्चू, १४. असंजमो, १५.कडगमद्दणं,
४. प्राणवध का स्वरूप
जिनेश्वर भगवान् ने प्राणवध (का स्वरूप) इस प्रकार कहा है, यथा१. पाप, २. चण्ड, ३. रुद्र, ४. क्षुद्र, ५. साहसिक, ६. अनार्य, ७.निघृण, ८.नृशंस, ९. महाभय, १०. प्रतिभय, ११.अतिभय, १२. भयोत्पादक, १३.त्रासनक, १४. अनार्य, १५. उद्वेगजनक, १६. निरपेक्ष, १७. निर्धर्म (धर्मविरुद्ध), १८. निष्पिपास (क्रूरपरिणाम), १९. निष्करुण, २०. नरकवास-गमन-निधन (नरक प्राप्ति का हेतु), २१. मोहमहाभय प्रवर्तक, २२. मरणवैमनस्य। यह प्रथम अधर्मद्वार है। प्राणवध के पर्यायवाची नामप्राणवधरूप हिंसा के विविध अर्थों के प्रतिपादक गुण निष्पन्न ये तीस नाम हैं, यथा१. प्राणवध, २. शरीर से (प्राणों का) उन्मलन, ३. अविश्वास. ४. हिंस्य विहिंसा-बध योग्य माने गए जीवों की हिंसा करना, ५. अकृत्य, ६. घात, ७. मारण, ८. वहन करना, ९. उपद्रव, १०. प्राणों का अतिपात-घात हनन, ११. आरम्भ-समारम्भ, १२. आयुकर्म का उपद्रव भेदन निष्ठापन (आयु को समाप्त करना) गालन संवर्तक संक्षेप-श्वासोच्छ्वास को रोकना, दम तोड़ देना, १३. मृत्यु, १४. असंयम, १५. कटक-सैन्य मर्दन,