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नियडि-साइजोयबहुलं, नीयजणनिसेविय, निस्संसं अपच्चयकारगं परमसाहुगरहणिज्ज परपीलाकारगं परमकण्हलेस्ससेवियं दुग्गइ-विणिवायविवड्रढणं भवपुणब्भवकरं चिरपरिचियमणुगयं दुरंत कित्तियं बिइयं अहम्मदार।
-पण्ह.सु.१, आ.२, सु. ४४
द्रव्यानुयोग-(२) धूर्तता एवं अविश्वसनीय वचनों की प्रचुरता वाला है, नीच जन इसका प्रयोग करते हैं, यह नृशंस क्रूर है, अप्रतीतिकारक विश्वास का विघातक है, श्रेष्ठ साधुजनों द्वारा निन्दित है, दूसरों को पीड़ा उत्पन्न करने वाला है, उत्कृष्ट कृष्णलेश्या वाले जनों द्वारा प्रयोग किया जाता है। यह बारंबार दुर्गतियों में ले जाने वाला है। यह पुनः-पुनः जन्म-मरण कराने वाला है, यह चिरपरिचित है-अनादि काल से जीव इसे जानते हैं, निरन्तर साथ रहने वाला है और बड़ी कठिनाई से अन्त होने योग्य है अथवा अतीव अनिष्ट फल वाला
है। यद द्वितीय अधर्मद्वार है। २१. मृषावाद के पर्यायवाची नाम
उस मृषावाद के गुणनिष्पन्न-सार्थक तीस नाम हैं,
यथा
२१. मुसावायस्स पज्जवणामाणि
तस्स (मुसावायस्स) य नामाणि गोण्णाणि होति तीसं, तं जहा१. अलियं,
२. सढं, २. अणज्ज, ४. मायामोसो, ५. असंतकं,
६. कूडकवडमवत्थुगंच, ७. निरत्थयमवत्थयं च, ८. विद्देसगरहणिज्जं, ९. अणुज्जुगं, १०. कक्कणा य, ११. वंचणा य, १२. मिच्छापच्छाकडंच, १३. साईउ,
१४. उच्छन्न, १५. उक्कूलं च, १६. अट्ट, १७. अब्भक्खाणं, १८. किदिवस, १९. वलयं, २०. गहणंच, २१. मम्मणं च, २२. नूमं, २३. निययी, २४. अपच्चओ, २५. असमओ, २६. असच्चसंधत्तणं, २७. विवक्खो, २८. अवहीयं, २९. उवहिअसुद्धं, ३०. अवलोवोत्ति।
१.अलीक-मिथ्या वचन,२. शठ-मायावी जनों द्वारा आचरित, ३. अन्याय्य-अनार्य-अन्याय युक्त या अनार्यों का वचन, ४.माया-मृषा-मायाकषाय युक्त असत्य वचन, ५. असत्क-असत वस्तु का वाचक, ६. कूट-कपट-अवस्तुक दूसरे को धोखा देने के लिये कपट सहित असत् प्रलाप करना, ७. निरर्थक-अपार्थकप्रयोजन व सत्यरहित,८. विद्वेष-गर्हणीय विद्वेष व निन्दा का कारण, ९. अनृजुक-वक्रता युक्त,१०. कल्कना-मायाचारमय, ११.वंचना, १२. मिथ्यापश्चात्कृत-झूठा होने से शिष्ट जनों द्वारा त्याज्य, १३. साति-विश्वास के अयोग्य, १४. उच्छन्न-स्वदोषपरगुण आच्छादक, १५. उत्कूल-सन्मार्ग मर्यादा का विघातक, १६.आत-पापियों का वचन, १७.अभ्याख्यान-मिथ्यादोषारोपण, १८. किल्विष-पापजनक, १९. वलय-गोल-मोल वचन, २०. गहन-कपट युक्त समझ में आने वाला वचन, २१. मम्मनअस्पष्ट वचन, २२. नूम-सत्य आच्छादक, २३. निकृति-कृत मायाचार को छिपाने वाला वचन, २४. अप्रत्यत-अप्रतीतिकर वचन, २६. असमय-सिद्धान्त व शिष्टाचार विरुद्ध वचन, २६. असत्यसंधत्व-असत्य अभिप्राय वाला वचन, २७. विपक्षधर्मविरुद्ध वचन, २८. अपधीक- निन्दित बुद्धि जन्य वचन, २९. उपधि-अशुद्ध-कपट युक्त सावध वचन, ३०. अपलोपसद्वस्तु का अपलापक वचन। सावध पापयुक्त अलीक वचनयोग के उपर्युक्त तीस नामों के अतिरिक्त इसी प्रकार के अन्य भी अनेक नाम हैं।
अवि य तस्स एयाणि एवमादीणि णामधेज्जाणि होति तीसं सावज्जस्स अलियस्स वइजोगस्स अणेगाई। ....
" पण्ह.आ.२,सु.४५ २२. मुसावायगा
तं-मुसावयं च पुण वदंति केइ अलियं पावा असंजया, अविरया, कवड-कुटिल-कडुय-चडुलभावा कुद्धा लुद्धा भया य, हस्सट्ठिया य सक्खी चोरा चारभडा खंडरक्खा जियजूयकरा य, गहियगहणा कक्ककुरुगकारगा कुलिंगी उवहिया वाणियगा य कूडतूल-कूडमाणी कूडकाहावणोपजीविया पडकारगा कलाया-कारुइज्जा वंचणपरा चारिय-चाडुयार-नगरगोत्तिय-परियारगा दुट्ठवायि-सूयगअणबल-भणिया य पुव्वकालियवयणदच्छा साहसिका
२२. मृषावादी
यह असत्य कितने पापी, असंयत, अविरत, कपट के कारण कुटिल, कटुक और चंचल चित्त वाले, क्रोधी, लोभी, स्वयं भयभीत और अन्य को भय उत्पन्न करने वाले, हंसी-मजाक करने वाले, झूठी गवाही देने वाले,चोर, गुप्तचर-जासूस, खण्डरक्ष राजकर लेने वाले अर्थात् चुंगी वसूल करने वाले, जुआ में हारे हुए गिरवी के माल को हजम करने वाले, कपट से किसी बात को बढ़ा-चढ़ा कर कहने वाले, मिथ्या मत वाले, कुलिंगी-वेषधारी, छल करने वाले, बनिया-वणिक्, खोटा नाप तोल करने वाले, नकली सिक्कों से आजीविका चलाने वाले, जुलाहे, सुनार, कारीगर, दूसरों को ठगने वाले दलाल, चाटुकार खुशामदी, नगररक्षक, मैथुनसेवीस्त्रियों को बहकाने वाले, खोटा पक्ष लेने वाले, चुगलखोर, जबरन धन वसूल करने वाले, रिश्वतखोर, किसी के बोलने से पूर्व ही उसके अभिप्राय को ताड़ लेने वाले, साहसिक सोच-विचार किए