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क्रिया अध्ययन
प. जेणं भंते! ओहिणाणं उप्पाडेज्जा से णं संचाएजा मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए ?
उ. गोयमा ! अत्थेगइए संचाएज्जा, अत्थेगइए णो संचाएज्जा ।
प. जे णं भंते ! संचाएज्जा मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए से णं मणपज्जवणाणं उप्पाडेज्जा ?
उ. गोयमा ! अत्थेगइए उप्पाडेज्जा, अत्येगइए णो उप्पाडेज्जा ।
प. जे णं भंते! मणपज्जवणाणं उप्पाडेज्जा, से णं केवलणाणं उप्पाडेजा ?
उ. गोयमा ! अत्येगइए उपाडेज्जा, अत्येगइए णो उप्पाडेजा।
प. जेणं भंते! केवलनाणं उप्पाडेज्जा से णं सिझेज्जा जाय सव्वदुक्खाणमंत करेज्जा ?
उ. गोयमा ! सिज्झेज्जा जाव सव्वदुक्खाणमंतं करेज्जा ।
प णेरइए णं भंते ! रइएहिंतो अनंतर उच्चट्टिता वाणमंतर जोइसिय- चेमाणिएसु उववज्जेज्जा ?
उ. गोयमाणी इण समट्ठे ।
प. (ख) असुरकुमारे णं भंते । असुरकुमारेहिंतो अनंतर उच्चड़िता रइएस उवयज्जेज्जा ?
उ. गोयमा ! णो इणट्ठे समट्ठे ।
प असुरकुमारे णं भंते । असुरकुमारेहितो अनंतर उच्चट्टित्ता असुरकुमारेसु उबवज्जेज्जा ?
उ. गोयमा ! णो इणट्ठे समट्ठे ।
एवं जाव थणियकुमारेसु ।
प. असुरकुमारे णं भंते ! असुरकुमारेहिंतो अनंतरं उव्यट्टित्ता पुढविक्काइएस उवबज्जेज्जा ?
उ. गोयमा ! अत्थेगइए उववज्जेज्जा, अत्थेगइए नो उबवज्जेजा।
प. जे णं भते । उदवज्जेज्जा से णं केवलिपण्णत्तं धम्म लभेज्जा सवणयाए ?
उ. गोयमा ! णो इणट्ठे समट्ठे ।
एवं आउ-वणप्फईसु वि।
प. असुरकुमारे णं भंते ! असुरकुमारेहिंतो अनंतरं तेउ वाउ-बेइंदिय-तेइंदिय- चउरिदिएसु
उत उदयजेज्जा ?
उ. गोयमा ! णो इणट्ठे समट्ठे ।
अवसेसेस पंचसु पंचेदिय-तिरिक्खजोणियादिसु असुरकुमारे जहा णेरइए ।
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प्र. भंते! जो अवधिज्ञान उपार्जित करता है तो क्या वह मुण्डित होकर गृह त्याग कर अनगार धर्म में प्रव्रजित होने में समर्थ होता है?
उ. गौतम ! कोई समर्थ होता है और कोई नहीं होता है।
प्र. भंते ! जो मुण्डित होकर गृह त्याग कर अनगारधर्म में प्रव्रजित होने में समर्थ होता है तो क्या वह मनः पर्यवज्ञान उपार्जित करता है ?
उ. गौतम ! कोई उपार्जित करता है और कोई नहीं करता है।
प्र. भते ! जो मनः पर्यवज्ञान उपार्जित करता है तो क्या वह केवलज्ञान उपार्जित करता है?
उ. गौतम ! कोई उपार्जित करता है और कोई नहीं करता है।
प्र. भंते! जो केवलज्ञान उपार्जित करता है तो क्या वह सिद्ध होता है यावत् सब दुःखों का अन्त करता है ?
उ. गौतम ! वह सिद्ध होता है यावत् सब दुःखों का अन्त करता है।
प्र. भंते ! नारक जीव, नारकों में से निकलकर क्या अनन्तर (सीधा ) वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क या वैमानिकों में उत्पन्न होता है ?
उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है।
प्र. (ख) भंते ! असुरकुमार असुरकुमारों में से निकल कर क्या अनन्तर (सीधा) नैरयिकों में उत्पन्न होता है ?
उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है।
प्र. भंते! असुरकुमार असुरकुमारों में से निकल कर क्या अनन्तर (सीधा) असुरकुमारों में उत्पन्न होता है ?
उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है।
इसी प्रकार स्तनितकुमारों पर्यन्त जानना चाहिए।
प्र. भंते ! असुरकुमार असुरकुमारों में से निकल कर क्या अनन्तर (सीधा) पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है?
उ. गौतम ! कोई उत्पन्न होता है और कोई नहीं होता है।
प्र. भंते ! जो उत्पन्न होता है तो क्या वह केवलि प्ररूपित धर्मश्रवण का लाभ प्राप्त करता है ?
उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है।
इसी प्रकार अप्कायिक और वनस्पतिकायिक जीवों के विषय में समझ लेना चाहिए।
प्र. भंते असुरकुमार, असुरकुमारों में से निकल कर क्या अनन्तर (सीधा ) तेजस्कायिक, वायुकायिक, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों में उत्पन्न होता है ?
उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है।
अवशिष्ट पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक, मनुष्य, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक इन पांचों में असुरकुमार की उत्पत्ति आदि का कथन नैरयिकों के अनुसार समझना चाहिए।