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द्रव्यानुयोग-(२) कितनेक भवसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो बाईस भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे यावत् सर्व दुःखों का अन्त करेंगे।
कितनेक भवसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो तेईस भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे यावत् सर्व दुःखों का अन्त करेंगे।
कितनेक भवसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो चौवीस भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे यावत् सर्व दुःखों का अन्त करेंगे।
कितनेक भवसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो पच्चीस भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे यावत् सर्व दुःखों का अन्त करेंगे।
कितनेक भवसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो छब्बीस भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे यावत् सर्व दुःखों का अन्त करेंगे।
कितनेक भवसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो सत्ताईस भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे यावत् सर्व दुःखों का अन्त करेंगे।
कितनेक भवसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो अट्ठाईस भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे यावत् सर्व दुःखों का अन्त करेंगे।
संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे बावीसाए भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति।
-सम. सम. २२, सु.१४ संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे तेवीसाए भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति। .
-सम. सम. २३, सु. १३ संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे चउवीसाए भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति।
-सम. सम.२४, सु.१५ संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे पणवीसाए भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति।
-सम. सम.२५,सु.१८ संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे छव्वीसाए भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाणमंत करिस्संति।
-सम.सम.२६,सु.११ संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे सत्तावीसाए भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति।
-सम. सम. २७, सु.१५ संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे अट्ठावीसाए भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति।
-सम. सम.२८, सु.१५ संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे एगणतीसाए भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति।
-सम.सम.२९, सु.१५ संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे तीसाए भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाणमंत करिस्संति।
-सम. सम.३०,सु.१६ संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे इक्कतीसाए भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति।
-सम. सम.३१, सु.१४ संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे बत्तीसाए भवग्गहणेहिं सिज्झिस्सति जाव सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति।
-सम. सम.३२, सु.१४ संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे तेत्तीसाए भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति।
-सम.सम.३३.सु.१४ ७९. बंध-विमोक्ख विदु अन्तकडे त्ति भवई
जमाहु ओहं सलिलं अपारगं, महासमुदं व भुयाहिं दुत्तरं। अहे वणं परिजाणाहि पंडिए, से हु मुणी अंतकडे त्ति वुच्चई।
कितनेक भवसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो उनतीस भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे यावत् सर्व दुःखों का अन्त करेंगे।
कितनेक भवसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो तीस भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे यावत् सर्व दुःखों का अन्त करेंगे।
कितनेक भवसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो इकत्तीस भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे यावत् सर्व दुःखों का अन्त करेंगे।
कितनेक भवसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो बत्तीस भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे यावत् सर्व दुःखों का अन्त करेंगे।
कितनेक भवसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो तेतीस भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे यावत् सर्व दुःखों का अन्त करेंगे।
७९. बंध और मोक्ष का ज्ञाता अंत करने वाला होता है
तीर्थंकर गणधर आदि ने कहा है कि अपार सलिल-प्रवाह वाले समुद्र को भुजाओं से पार करना दुस्तर है, वैसे ही संसाररूपी महासमुद्र को भी पार करना दुस्तर है। अतः इस संसार समुद्र के स्वरूप को (ज्ञ-परिज्ञा से) जानकर (प्रत्याख्यान-परिज्ञा से) उसका परित्याग कर दे। इस प्रकार का त्याग करने वाला पण्डित मुनि कर्मों का अन्त करने वाला कहलाता है।