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क्रिया अध्ययन
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जहा य बद्धं इह माणवेहिं,
मनुष्यों ने इस संसार में मिथ्यात्व आदि के द्वारा जिस रूप से कर्म जहा य तेसिं तु विमोक्ख आहिए।
बांधे हैं, उसी प्रकार सम्यग्दर्शन-आदि द्वारा उन कर्मों का विमोक्ष अहा तहा बंधविमोक्ख जे विदू,
होता है यह भी बताया है। इस प्रकार बन्ध और मोक्ष के कारणों से हु मुणी अंतकडे त्ति वुच्चई॥
का विज्ञाता मुनि अवश्य ही संसार का या कर्मों का अन्त करने
वाला कहलाता है। इमम्मि लोए परए च दोसु वि,
इस लोक, परलोक का दोनों लोकों में जिसका किंचितमात्र भी ण विज्जई बंधणं जस्स किंचि वि।
रागादि बन्धन नहीं है तथा साधक निरालम्ब-इहलौकिकसे हू णिरालंबणमप्पतिट्ठिओ,
पारलौकिक स्पृहाओं से रहित है एवं जो कहीं भी प्रतिबद्ध नहीं है, कलंकली भावपवंच विमुच्चई।
वह साधु निश्चय ही इस संसार में जन्म मरण के प्रपंच से विमुक्त -आ.सु.२,अ.१६, सु.८०२-८०४ हो जाता है। ८०. किरियावाइआइ समोसरणस्स भेयचउक्कं
८०. क्रियावादी आदि समवसरण के चार भेदप. कइणं भंते ! समोसरणा पण्णत्ता?
प्र. भंते ! समवसरण कितने कहे गये हैं ? उ. गोयमा ! चत्तारि समोसरणा पण्णत्ता,तं जहा
उ. गौतम ! समवसरण (विभिन्न मतों के विचार) चार प्रकार के
कहे गये हैं, यथा१. किरियावाई, २. अकिरियावाई, ३. अन्नाणियवाई,
१. क्रियावादी, २. अक्रियावादी, ३. अज्ञानवादी, ४. वेणइयवाई। -विया.स.३०, उ.१.सु.१
४. विनयवादी। ८१. अकिरियावाईणं अट्ठ पगारा
८१. अक्रियावादियों के आठ प्रकारअट्ठ अकिरियावाई पण्णत्ता,तं जहा
अक्रियावादी आठ प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. एगावाई,
१. एकवादी-एक ही तत्व को स्वीकार करने वाले, २. अणेगावाई,
२. अनेकवादी-एकत्व को सर्वथा अस्वीकार करने वाले, ३. मित्तवाई,
३. मितवादी-जीवों को परिमित मानने वाले, ४. णिम्मित्तवाई,
४. निर्मितवादी-जगतकर्तत्व को मानने वाले, ५. सायवाई,
५. सातवादी-सुख से ही सुख की प्राप्ति मानने वाले, ६. समुच्छेयवाई,
६. समुच्छेदवादी-क्षणिकवादी, ७. णियावाई,
७. नित्यवादी-लोक को एकान्त नित्य मानने वाले, ८. णसंतिपरलोगवाई।
-ठाणं. अ.८, सु.६०७ ८. असत् पर लोकवादी-परलोक में विश्वास नहीं करने वाले। ८२. चउवीसदंडएसु वादि समवसरणा
८२. चौबीस दंडकों में वादि समवसरणदं.१.णेरइयाणं चत्तारि वादि समोसरणा पण्णत्ता,तं जहा- दं.१. नैरयिकों के चार वादि समवसरण कहे गये हैं, यथा१. किरियावाई, २. अकिरियावाई, ३. अण्णाणियावाई, १.क्रियावादी, २. अक्रियावादी,३. अज्ञानवादी,४. विनयवादी ४.वेणइयावाई। दं.२-११.एवं असुरकुमाराण वि जाव थणियकुमाराणं,
दं.२-११.इसी प्रकार असुरकुमारों से स्तनितकुमारों पर्यन्त चार
चार वादि-समवसरण जानना चाहिए। दं.१२-२४.एवं विगलिंदियवज्जंजाव वेमाणियाणं।
द. १२-२४. इसी प्रकार विकलेन्द्रियों को छोड़कर वैमानिकों
-ठाणं अ.४, उ.४, सु.३४५ पर्यन्त चार-चार वादि समवसरण कहने चाहिए। ८३. जीवेसु एक्कारसठाणेहि किरियावाइआइ समोसरणपरूवणं- ८३. जीवों में ग्यारह स्थानों द्वारा क्रियावादी आदि समवसरणों का
प्ररूपण१.प. जीवा णं भंते ! किं किरियावाई, अकिरियावाई, १.प्र. भंते ! क्या जीव क्रियावादी हैं, अक्रियावादी हैं, अज्ञानवादी अन्नाणियवाई, वेणइयवाई?
हैं या विनयवादी हैं ? उ. गोयमा ! जीवा किरियावाई वि, अकिरियावाई वि, उ. गौतम ! जीव क्रियावादी भी हैं, अक्रियावादी भी है, अन्नाणियवाई वि, वेणइयवाई वि।
___ अज्ञानवादी भी हैं और विनयवादी भी हैं। २.प. सलेस्सा णं भंते ! जीवा किं किरियावाई जाव २.प्र. भंते ! सलेश्य जीव क्रियावादी हैं यावत् विनयवादी है ?
वेणइयवाई? १. (क) उत्त. अ. १८, गा.२३ (ख) ठाणं. अ.४, सु. ३४५ (ग) सूय. सु. १, अ. ६, गा. २७ (घ) सूय.सु.१,अ.१२, गा."