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क्रिया अध्ययन ७२. अणंतरागयाणं चउवीसदंडएसु एगसमए अंतकिरिया
परूवणंप. दं.१.अणंतरागया णं भंते ! नेरइया एगसमएणं केवइया ___अंतकिरियं पकरेंति? उ. गोयमा ! जहण्णेणं एगो वा, दो वा, तिण्णि वा, उक्कोसेणं
दस। रयणप्पभापुढवीनेरइया वि एवं चेव जाव
वालुयप्पभापुढवीनेरइया। प. अणंतरागया णं भंते ! पंकप्पभापुढवीनेरइया एगसमएणं
केवइया अंतकिरियं पकरेंति? उ. गोयमा ! जहण्णेणं एक्को वा, दो वा, तिण्णि वा, उक्कोसेणं
चत्तारि। प. दं. २-११. अणंतरागया णं भंते ! असुरकुमारा
एगसमएणं केवइया अंतकिरियं पकरेंति? उ. गोयमा ! जहण्णेणं एक्का वा, दो वा; तिण्णि वा, उक्कोसेणं
पंच। प. अणंतरागयाओ णं भंते! असुरकुमारीओ एगसमए णं
केवइयाओ अंतकिरियं पकरेंति? उ. गोयमा! जहण्णेणं एक्का वा, दो वा, तिण्णि वा, उक्कोसेणं
पंच। एवं जहा असुरकुमारा सदेवीया तहा जाव थणियकुमारा।
९६७ ७२. एक समय में अनन्तरागत चौबीस दंडकों में अंतक्रिया का
प्ररूपणप्र. दं. १. भंते ! अनन्तरागत नारक एक समय में कितने
अन्तक्रिया करते हैं? उ. गौतम ! एक समय में वे जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट
दस अन्तक्रिया करते हैं। रत्नप्रभापृथ्वी के यावत् वालुकाप्रभापृथ्वी के अनन्तरागत
नारक भी इसी संख्या में अन्तक्रिया करते हैं। प्र. भंते ! पंकप्रभापृथ्वी के अनन्तरागत नारक एक समय में
कितने अन्तक्रिया करते हैं ? उ. गौतम ! एक समय में वे जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट
चार अन्तक्रिया करते हैं। प्र. दं. २-११. भंते ! अनन्तरागत असुरकुमार एक समय में
कितने अन्तक्रिया करते हैं ? उ. गौतम ! एक समय में वे जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट
पाँच अन्तक्रिया करते हैं। प्र. भंते ! अनन्तरागत असुरकुमारियाँ एक समय में कितनी
अन्तक्रिया करती हैं ? उ. गौतम ! वे एक समय में जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट
पांच अन्तक्रिया करती हैं। इसी प्रकार जैसे अनन्तरागत देवियों सहित असुरकुमारों की संख्या कही वैसे ही स्तनितकुमारों पर्यन्त की संख्या कहनी
चाहिए। प्र. दं.१२. भंते ! अनन्तरागत पृथ्वीकायिक एक समय में कितने
अन्तक्रिया करते हैं? उ. गौतम ! एक समय में वे जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट
चार अन्तक्रिया करते हैं। दं. १३. इसी प्रकार अकायिक भी उत्कृष्ट से चार दं. १६. वनस्पतिकायिक छह, दं. २०. पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक दस, पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक स्त्रियां दस, दं.२१. मनुष्य दस, मनुष्यनियां बीस, दं. २२. वाणव्यन्तर देव दस, वाणव्यन्तर देवियां पांच, दं. २३. ज्योतिष्क देव दस, ज्योतिष्क देवियां बीस, दं. २४. वैमानिक देव एक सौ आठ, वैमानिक देवियां बीस अन्तक्रिया करती हैं। दं. १४-१५. अनन्तरागत तेजस्कायिक और वायुकायिक
अन्तक्रिया नहीं करते हैं। ७३. चौवीस दंडकों में उद्वर्तनानन्तर अन्तक्रिया का प्ररूपणप्र. (क) भंते ! नारक जीव नारकों में से निकलकर क्या अनन्तर
(सीधा) नारकों में उत्पन्न होता है? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। प्र. भंते ! नारक जीव नारकों में से निकल कर क्या अनन्तर
(सीधा) असुरकुमारों में उत्पन्न होता है? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है।
प. दं. १२. अणंतरागया णं भंते ! पुढवीकाइया एगसमएणं
केवइया अंतकिरियं पकरेंति? उ. गोयमा ! जहण्णेणं एक्को वा, दो वा, तिण्णि वा, उक्कोसेणं
चत्तारि। दं. १३. एवं आउक्काइया वि चत्तारि, दं.१६. वणस्सइकाइया छ, दं. २०. पंचेंदिय-तिरिक्खजोणिया दस, तिरिक्खजोणिणीओ दस, दं.२१.मणुस्सा दस, मणुस्सीओ वीसं, दं.२२. वाणमंतरा दस, वाणमंतरीओ पंच, दं.२३.जोइसिया दस,जोइसिणीओ वीसं, दं.२४. वेमाणिया अट्ठसयं, वेमाणिणीओ वीसं।
-पण्ण.प. २०, सु.१४१४-१४१६
७३. चउवीसदंडएसु उवट्टणानंतर अंतकिरिया परूवणं
प. (क) णेरइए णं भंते ! णेरइएहिंतो अणंतरं उव्वट्टित्ता _णेरइएसु उववज्जेज्जा? उ. गोयमा ! णो इणढे समठे।। प. णेरइए णं भंते ! णेरइएहिंतो अणंतरं उव्वट्टित्ता
असुरकुमारेसु उववज्जेज्जा? उ. गोयमा ! णो इणठे समठे।