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क्रिया अध्ययन
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इह खलु पाईणं वा जाव दाहिणं वा संतेगइया मणुस्सा भवंति, महिच्छा महारंभा महापरिग्गहा अधम्मिया अधम्माणुया अधम्मिट्ठाअधम्मक्खाइअधम्मपायजीविणो अधम्मपलोइणो अधम्मपलज्जणा अधम्मसीलसमुदायारा अधम्मेण चेव वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति। हण छिंद भिंद विगत्तगा लोहितपाणी चंडा, रुद्दा, खुद्दा, साहस्सिया उक्कंचण-वंचण-माया-णियडि-कूड-कवड-साति संपओग बहुला,
दुस्सीला दुव्वया दुष्पडियाणंदा असाहू, सव्वाओ पाणाइवायाओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए जाव मिच्छांदसणसल्लाओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ पहाणुम्मद्दण-वण्णग-विलेवण-सद्द-फरिस-रसरूव-गंध-मल्लालंकाराओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ सगड-रह-जाण-जुग्ग-गिल्लि-थिल्लि-सीयसंदमाणिया, सयणाऽऽसण-जाण-वाहण-भोग-भोयणपवित्थरविहीओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ कय-विक्कय-मास-ऽद्धमास-रुवग-संववहाराओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ हिरण्ण-सुवण्ण-धण-धण्ण-मणि-मोत्तिय-संखसिलप्पवालाओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ कूडतुल-कूडमाणाओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ आरंभसमारंभाओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ करण-कारावणाओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ पयण-पयावणाओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ कुट्टण-पिट्टण-तज्जण-तालण-वह- बंधपरिकिलेसाओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए। जे यावण्णे तहप्पगारा सावज्जा अबोहिया कम्मंता परपाणपरितावणकरा, जे अणारिएहिं कज्जति तओ वि अप्पडिविरया जावज्जीवाए। से जहाणामए केइ पुरिसे कलम-मसूर-तिल-मुग्ग-मासणिप्फाव-कुलत्थ-आलिसंदग-पलिमंथगमादिएहिं अयए कूरे मिच्छादंडं पउंजइ, एवमेव तहप्पगारे पुरिसजाए तित्तिए-वट्टग-लावग-कवोयकविंजल-मिय-महिस-वराह-गाह-गोह-कुम्म-सिरीसिवमाहिएहिं अयए कूरे मिच्छादंडं पउंजइ। जा वि य से बाहिरिया परिसा भवइ,तं जहादासे इ वा, पेसे इ वा, भयए इवा, भाइल्ले इ वा, कम्मकरे इ वा, भोगपुरिसेइ वा तेसिं पि य णं अन्नयरंसि अहालहुसगंतिसि सयमेव गरुयं दंड निव्वत्तेइ,तं जहाइमं दंडेह, इम मुंडेह, इमं तालेह, इमं ताडेह, इमं अदुयबंधणं करेह, इमं णियलबंधणं करेह, इमं हडिबंधणं करेह, इम चारगबंधणं करेह, इमं नियल-जुयल-संकोडिय-मोडियं करेह,
पूर्व यावत् दक्षिण दिशाओं में कई मनुष्य होते हैं, जो महान् इच्छा वाले, महाआरंभी, महापरिग्रही, अधार्मिक, अधर्मानुयायी, अधर्मिष्ठ, अधर्मवादी, अधर्म-प्रायः जीवन जीने वाले, अधर्म में अनुरक्त, अधर्ममय स्वभाव और आचरणवाले और अधर्म के द्वारा आजीविका करने वाले होते हैं। मारो, छेदो, काटो (यह कहकर) चमड़ी को उधेड़ने वाले, रक्त से सने हाथ वाले, चण्ड, रुद्र, क्षुद्र, साहसिक (बिना विचारे काम करने वाले), ठगी, वंचना, माया, बक्रवृत्ति, कूट (झूठा तोल-माप) कपट सदृश-प्रयोग देश वेष और भाषा को बदलकर अनेक बार धोखा देने वाले, दुःशील, दुव्रत, दुष्प्रत्यानन्द (उपकारी का भी प्रत्युपकार न करने वाले) असाधु, यावज्जीवन सर्व प्राणातिपात से मिथ्यादर्शनशल्य पर्यन्त अविरत, यावज्जीवन सब स्नान, उन्मर्दन, वर्णक, विलेपन, शब्द, स्पर्श, रस, रूप, गंध, माल्य और अलंकारकों से अविरत, यावज्जीवन सब शकटयान, रथयान, वाहन, डोली, दो खच्चरों की बग्घी, शिविका, स्यंदमानिका, शयन, आसन, यान, वाहन, भोग, भोजन की विस्तीर्ण विधियों से अविरत, यावज्जीवन सब प्रकार के क्रय-विक्रय, माषक, अर्धमाषक, रूप्यक से होने वाले विनिमय से अविरत, यावज्जीवन सब प्रकार के हिरण्य, स्वर्ण, धन, धान्य, मणि, मौक्तिक , शंख, शिला, मूंगा आदि पदार्थों से अविरत, यावज्जीवन सब कुट-तोल, कूट-माप से अविरत, यावज्जीवन सब आरम्भ-समारम्भ से अविरत, यावज्जीवन सब प्रकार के करने कराने से अविरत, यावज्जीवन सब प्रकार के पचन-पाचन से अविरत, यावज्जीवन सब कुट्टन, पीडन, तर्जन, ताडन, वध, बंध परिक्लेश से अविरत होते हैं। जो इस प्रकार के अन्य सावध, अबोधि देने वाले और दूसरे प्राणियों को परिताप देने वाले कर्म करते हैं। वे यावज्जीवन अनार्यों से किये जाने वाले कर्मों से अविरत हैं। जैसे कोई पुरुष चांवल, मसूर, तिल, मूंग, उड़द, राजमा, कुलथी, चंवला, काला चना आदि धान्यों के प्रति अत्यन्त क्रूर होकर मिथ्यादंड का प्रयोग करता है। इसी प्रकार वैसा पुरुष तीतर, बटेर, लावक, कबूतर, मृग, चातक, भैंसा, सुअर, मगर, गोह, कछुआ, सांप आदि प्राणियों के प्रति अत्यन्त क्रूर होकर मिथ्यादंड का प्रयोग करता है। जो उसकी बाह्य परिषद् है, यथादास, प्रेष्य, भृतक, भागीदार, कर्मकर अथवा भोगपुरुष-उनके द्वारा किसी प्रकार का छोटा-सा अपराध होने पर स्वयं भारी दंड का प्रयोग करता है, यथाजैसे (वह कहता है) इसे दंडित करें, इसे मुंडित करें, इसे तर्जना दें, इसे ताडना दें, इसे सांकल से बांध दें, इसे बेड़ी से बांध दें, इसे खोड़े में डाल दें, इसे बन्दी बना कर जेल में डाल दें, इसे दो जंजीरों से सिकोड़ कर लुढ़का दें,