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तेणो अच्चाए,णो अजिणाए,णो मंसाए,णो सोणियाए, एवं हिययाए, पित्ताए, बसाए, पिच्छाए, पुच्छाए, बालाए, सिंगाए, विसाणाए, दंताए, दाढाए, णहाए, हारुणीए, अट्ठीए अट्ठिमिजाए,
णो हिंसिंसु मे त्ति, णो हिंसंति मे त्ति, णो हिंसिस्संति मे त्ति,
णो
णो पुत्तपोसणयाए, णो पसुपोसणयाए, अगारपरिवूहणयाए, णो समणमाहणवत्तिणाहेउं, णो तस्स सरीरगस्स किंचि विपरियाइत्ता भवइ,
से हता, छेत्ता, भेत्ता, लुंपइत्ता, विलुपइत्ता, उद्दवइत्ता उज्झिउं,बाले वेरस्स आभागी भवइ, अणट्ठादंडे।
(२) से जहाणामए केइ पुरिसेजे इमे थावरा पाणा भवंति, तं जहाइक्कडाइवा, कडिणा इ वा, जंतुगा इवा,परगा इवा, मोरका इवा,तणा इवा, कुसा इवा, कुच्चका इवा, पव्वगाइ वा, पलालए इवा, ते णो पुत्तपोसणयाए,णो पसुपोसणयाए, णो अगारपोसणयाए,णो समणमाहणपोसणयाए, णो तस्स सरीरगस्स किंचि विपरियाइत्ता भवइ, . से हता, छेत्ता, भेत्ता, लुपइत्ता, विलुपइत्ता, उद्दवइत्ता, उज्झिउँ बाले वेरस्स आभागी भवइ अणट्ठादंडे।
द्रव्यानुयोग-(२) उनको वह अपने शरीर की रक्षा के लिए, चमड़े के लिए, माँस के लिए, रक्त के लिए,इसी प्रकार, हृदय के लिए, पित्त के लिए, चर्बी के लिए, पंख के लिए, पूँछ के लिए, बाल के लिए, सींग के लिए, विषाण के लिए, दाँत के लिए, दाढ के लिए, नख के लिए, आँतों के लिए, हड्डी के लिए और हड्डी की मज्जा के लिए नहीं मारता है। इसने मुझे मारा है, मार रहा है या मारेगा, इसलिए भी नहीं मारता है। पुत्रपोषण के लिए, पशुपोषण के लिए तथा अपने घर को सजाने के लिए भी नहीं मारता है। श्रमण और ब्राह्मण के जीवन निर्वाह के लिए, एवं उन के शरीर पर कुछ भी विपत्ति आये उससे बचाने के लिए भी नहीं मारता। (किन्तु बिना प्रयोजन ही) वह अज्ञानी उनके प्राणों का हनन, अंगों का छेदन, भेदन, लुपन, विलुपन, प्राण हरण करके व्यर्थ ही वैर का भागी होता है। (२) जैसे कोई पुरुषजो ये स्थावर प्राणी हैं, यथाइक्कड़, ढिण, जन्तुक, परक, मोरक, तृण, कुश, कुच्छक, पर्वक
और पलाल उन वनस्पतियों को पुत्र पोषण के लिए, पशु पोषण के लिए तथा अपने घर को सजाने के लिए, श्रमण एवं ब्राह्मण के जीवन निर्वाह के लिए एवं उनके शरीर पर आई हुई विपत्ति से बचाने के लिए भी नहीं मारता है, किन्तु बिना प्रयोजन ही वह अज्ञानी उन स्थावर प्राणियों का हनन, छेदन, भेदन लुंपन विलुपन प्राण हरण करके व्यर्थ में वैर का भागी होता है। (३) जैसे कोई पुरुषकच्छ में, द्रह में,जलाशय में तथा नदी आदि द्वारा घिरे हुए स्थान में, अन्धकारपूर्ण स्थान में, किसी गहन स्थान में, किसी दुर्गम गहन स्थान में, वन में या घोर वन में, पर्वत पर या पर्वत के किसी दुर्गम स्थान में, तृण या घास को फैला-फैला कर स्वयं उसमें आग लगाता है, दूसरों से आग लगवाता है, आग लगाने वाले का अनुमोदन करता है, वह पुरुष निष्प्रयोजन प्राणियों को दण्ड देता है। इस प्रकार उस पुरुष को व्यर्थ ही प्राणियों की घात के कारण सावध कर्म का बन्ध होता है, यह दूसरा अनर्थ दण्ड प्रत्ययिक दण्ड समादान (क्रिया स्थान) कहा गया है। ३-अब तीसरा हिंसादण्ड प्रत्ययिक दण्ड समादान (क्रिया स्थान) कहा जाता हैजैसे किसी पुरुष नेमुझको या मेरे सम्बन्धी को तथा दूसरे को या दूसरे के सम्बन्धी को मारा था, मार रहा है या मारेगा. ऐसा सोचकर कोई स्वयं त्रस एवं स्थावर प्राणियों को दंड देता है, दूसरे से दण्ड दिलाता है दण्ड देने वाले का अनुमोदन करता है. ऐसा व्यक्ति प्राणियों को (हिंसा रूप) दण्ड देता है।
(३) से जहाणामए केइ पुरिसेकच्छंसि वा, दहंसि वा, दगंसि वा, दवियंसि वा, वलयंसि वा, णूमंसि वा, गहणंसि वा, गहणविदुग्गंसि वा, वणंसि वा, वणविदुग्गसि वा, पव्वयंसि वा, पव्वयविदुग्गसि वा, तणाई ऊसविय ऊसविय, सयमेव अगणिकायं णिसिरइ, अण्णेण वि अगणिकायं णिसिरावेइ, अण्णं पिअगणिकायं णिसिरंतं समणुजाणइ, अणट्ठादंडे। एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावज्जे त्ति आहिज्जइ। दोच्चे दंडसमादाणे अणट्ठादंडवत्तिए त्ति आहिए।
३-अहावरे तच्चे दंडसमादाणे हिंसादंडवत्तिए त्ति आहिज्जइ,
से जहाणामए केइ पुरिसेममं वा, ममियं वा, अन्नं वा, अन्नियं वा, हिंसिंसु वा, हिंसइ वा, हिंसिस्सइ वा, तं दंडं तस-थावरेहिं पाणेहिं सयमेव णिसिरइ, अण्णेण वि णिसिरावेइ, अन्नं पि णिसिरंत समणुजाणइ, हिंसादंडे।