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द्रव्यानुयोग-(२) ५२. किरिया वेयणासु पुव्वावरत्त परूवणं
५२. क्रिया वेदना में पूर्वापरत्व का प्ररूपणप. पुव्विं भंते ! किरिया पच्छा वेयणा?
प्र. भंते ! क्या पहले क्रिया होती है और पीछे वेदना होती है ? पुव्विं वेयणा पच्छा किरिया?
अथवा पहले वेदना होती है और पीछे क्रिया होती है? उ. मंडिंयपुत्ता ! पुव्विं किरिया पच्छा वेयणा,
उ. मंडितपुत्र ! पहले क्रिया होती है और बाद में वेदना होती है __णो पुव्विं वेयणा पच्छा किरिया। -विया. स. ३, उ. ३, सु. ८ परन्तु पहले वेदना हो और पीछे क्रिया हो ऐसा संभव नहीं है। ५३. जीव-चउवीसदंडएसु अट्ठारस पावट्ठाणेहिं पावकिरिया ५३. जीव-चौवीस दंडकों में अठारह पाप स्थानों द्वारा क्रियाओं का परूवणं
प्ररूपणप. १. अस्थि णं भंते ! जीवाणं पाणाइवाए णं किरिया प्र. १. भंते ! क्या जीवों द्वारा प्राणातिपात क्रिया की जाती है?
कज्जइ? उ. हंता, गोयमा ! अत्थि।
उ. हाँ, गौतम ! की जाती है। प. कम्हि णं भंते ! जीवाणं पाणाइवाए णं किरिया कज्जइ ? प्र. भंते ! किस विषय में जीवों द्वारा प्राणातिपात क्रिया की
जाती है? उ. गोयमा ! छसु जीवणिकाएसु।
उ. गौतम ! छह जीव निकायों के विषय में की जाती है। प. अस्थि णं भंते ! णेरइयाणं पाणाइवाए णं किरिया प्र. भंते ! नारकों द्वारा प्राणातिपात क्रिया की जाती है?
कज्जइ? उ. हंता, गोयमा ! एवं चेव।
उ. हाँ, गौतम ! इसी प्रकार की जाती है। एव णिरंतरंणेरइयाणं जाव वेमाणियाणं।
इसी प्रकार निरन्तर नैरयिकों वैमानिकों पर्यन्त कथन करना
चाहिए। प. २.अस्थि णं भंते ! जीवाणं मुसावाएणं किरिया कज्जइ? प्र. २. भंते ! क्या जीवों द्वारा मृषावाद क्रिया की जाती है ? उ. हंता, गोयमा ! अत्थि।
उ. हाँ, गौतम ! की जाती है। प. कम्हि णं भंते ! जीवाणं मुसावाएणं किरिया कज्जइ?
प्र. भंते ! किस विषय में जीवों द्वारा मृषावाद क्रिया की जाती है ? उ. गोयमा ! सव्वदव्वेसु।
उ. गौतम ! सर्वद्रव्यों के विषय में क्रिया की जाती है। एवं णिरंतरंणेरइयाणं जाव वेमाणियाणं।
इसी प्रकार निरन्तर नैरयिकों से वैमानिकों पर्यन्त कथन
करना चाहिए। प. ३. अस्थि णं भंते ! जीवाणं अदिण्णादाणेणं किरिया प्र. ३. भंते ! क्या जीवों द्वारा अदत्तादान क्रिया की जाती है ?
कज्जइ? उ. हंता, गोयमा ! अत्थि।
उ. हाँ, गौतम ! की जाती है। प. कम्हिणं भंते ! जीवाणं अदिण्णादाणेणं किरिया कज्जइ? प्र. भंते ! किस विषय में जीवों द्वारा अदत्तादान क्रिया की
जाती है? उ. गोयमा ! गहणधारणिज्जेसु दव्वेसु।
उ. गौतम ! ग्रहण करने और धारण करने योग्य द्रव्यों के विषय
में यह क्रिया की जाती है। एवं णिरंतरंणेरइयाणं जाव वेमाणियाणं।
इसी प्रकार निरन्तर नैरयिकों से वैमानिकों पर्यन्त कथन
करना चाहिए। प. ४.अत्थि णं भंते ! जीवाणं मेहुणेणं किरिया कज्जइ? प्र. ४. भंते ! क्या जीवों द्वारा मैथुन क्रिया की जाती है? उ. हंता,गोयमा ! अत्थि।
उ. हाँ, गौतम ! की जाती है। प. कम्हि णं भंते ! जीवाणं मेहुणेणं किरिया कज्जइ?
प्र. भंते ! किस विषय में जीवों द्वारा मैथुन क्रिया की जाती है? उ. गोयमा ! रूवेसुवा, रूवसहगेसु वा दव्वेसु।
उ. गौतम ! अनेक रूपों में या रूपसहगत द्रव्यों के विषय में यह
क्रिया की जाती है। एवं णिरंतरंणेरइयाणं जाव वेमाणियाणं।
इसी प्रकार निरन्तर नैरयिकों से वैमानिक पर्यन्त कथन करना
चाहिए। प. ५.अस्थि णं भंते ! जीवाणं परिग्गहेणं किरिया कज्जइ? प्र. ५. भंते ! क्या जीवों द्वारा परिग्रह क्रिया की जाती है? उ. हंता, गोयमा ! अत्थि।
उ. हाँ, गौतम ! की जाती है। प. कम्हि णं भंते !जीवाणं परिग्गहेणं किरिया कज्जइ?
प्र. भंते ! किस विषय में जीवों द्वारा परिग्रह क्रिया की जाती है? उ. गोयमा ! सव्वदव्वेसु।
उ. गौतम ! समस्त द्रव्यों के विषय में (परिग्रह) क्रिया की
जाती है।