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द्रव्यानुयोग-(२) प. पुरिसे णं भंते ! कच्छंसि वा जाव वणविदुग्गंसि वा प्र. भंते ! मृगों से.आजीविका चलाने वाला, मृगवध का संकल्प
मियवित्तीए, मियसकंप्पे, मियपणिहाणे, मियवहाए गंता करने वाला, मृगवध में दत्तचित्त कोई पुरुष मृगवध के लिए "एए मिय" ति काउं अण्णयरस्स मियस्स वहाए उसु निकलकर कच्छ में यावत् गहन वन में जाकर “ये मृग है" णिसिरइ, तओणं भंते ! से पुरिसे कइ किरिए?
ऐसा सोचकर किसी एक मृग को मारने के लिए बाण फैकता
है तो भंते ! वह पुरुष कितनी क्रिया वाला होता है ? उ. गोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय । उ. गौतम ! कदाचित् तीन क्रिया वाला, कदाचित् चार क्रिया वाला पंचकिरिए।
और कदाचित् पांच क्रिया वाला होता है। प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ
प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि"सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकिरिए।"
"कदाचित् तीन क्रिया वाला, कदाचित् चार क्रिया वाला और
कदाचित् पांच क्रिया वाला होता है ?" उ. गोयमा ! जे भविए णिसिरणयाए तिहिं,
उ. गौतम ! जब वह बाण निकालता है तब वह तीन क्रियाओं से
स्पृष्ट होता है, जे भविए णिसिरणयाए वि, विद्धसणयाए वि, णो
जब वह बाण निकालता भी है और मृग को बांधता भी है, मारणयाए चउहिं।
किन्तु मृग को मारता नहीं है, तब वह चार क्रियाओं से स्पृष्ट
होता है, जे भविए णिसिरणयाए वि, विद्धंसणयाए वि, मारणयाए
जब वह वाण निकालता भी है, मृग को बांधता भी है और वि, तादं च णं से पुरिसे पंचहि किरियाहिं पुढें।"
मारता भी है, तब वह पुरुष पांचों क्रियाओं से स्पृष्ट होता है। से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ
इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकिरिए।"
"कदाचित् तीन क्रिया वाला, कदाचित् चार क्रिया वाला और -विया. स.१, उ.८,सु.६
कदाचित् पांच क्रिया वाला होता है।" २९. मियवहगस्स वधकवहगस्स किरियापरूवणं
२९. मृगवधक और उसके वधक की क्रियाओं का प्ररूपणप. पुरिसे णं भंते ! कच्छंसि वा जाव वणविदुग्गसि वा प्र. भंते ! मृगों से आजीविका चलाने वाला, मृगवध का संकल्प मियवित्तीए, मिय संकप्पे, मियपणिहाणे मियवहाए गंता करने वाला, मृगवध में दत्तचित्त कोई पुरुष मृगवध के लिए "एस मिय" त्ति काउं अण्णयरस्स मियस्स वहाए कच्छ में यावत् गहन वन में जाकर “ये मृग है" ऐसा सोचकर आययकण्णाययं उसु आयामेत्ता चिट्ठज्जा, अन्ने य से किसी एक मृग के वध के लिए कान तक बाण को खींचकर पुरिसे मग्गओ आगम्म सयपाणिया असिणा सीसं
तत्पर हो उस समय दूसरा कोई पुरुष पीछे से आकर अपने छिंदेज्जा,
हाथ से तलवार द्वारा उसका मस्तक काट दे। से य उसूयाए चेव पुव्यायामणयाए तं मियं विंधेज्जा, से वह बाण पहले के खिंचाव से उछलकर कर मृग को बींध दे, णं भंते ! पुरिसे किं मियवेरेणं पुढे, पुरिसवेरेणं पुढे ?
तो भंते ! वह (अन्य) पुरुष मृग के वैर से स्पृष्ट है या पुरुष
के वैर से स्पृष्ट है ? उ. गोयमा ! जे मियं मारेइ, से मियवेरेणं पुढें।
उ. गौतम ! जो मृग को मारता है, वह मृग के वैर से स्पृष्ट है। ___ जे पुरिसं मारेइ, से पुरिसवेरेणं पुढें।
जो पुरुष को मारता है, वह पुरुष के वैर से स्पृष्ट है। प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ
प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि"जे मियं मारेइ, से मियवेरेणं पुढे, जे पुरिसं मारेइ से "जो मृग को मारता है वह पुरुष मृग के वैर से स्पृष्ट है और पुरिसवेरेणं पुढे ?"
जो पुरुष को मारता है वह पुरुष के वैर से स्पृष्ट है ?" उ. से नूणं गोयमा ! कज्जमाणे कडे, संधिज्जमाणे संधिए, उ. गौतम ! “जो किया जा रहा है, वह किया हुआ" "जो साधा निव्वत्तिज्जमाणे निव्वत्तिए, निसिरिज्जमाणे निसिठे त्ति
जा रहा है, वह साधा हुआ"जो बनाया जा रहा है वह बनाया वत्तव्वं सिया?
हुआ" "जो निकाला जा रहा है वह निकाला हुआ कहलाता
है न?" हंता, भगवं! कज्जमाणे कडे जाव निसिढे त्ति वत्तव्वं
(गौतम-) 'हां, भगवन् ! जो किया जा रहा है, वह किया सिया।
हुआ" यावत्-'जो निकाला जा रहा है, वह निकाला हुआ
कहलाता है। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ
इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"जे मियं मारेइ, से मियवेरेणं पुढे जे पुरिसं मारेइ से "जो मृग को मारता है, वह मृग के वैर से स्पृष्ट है और जो पुरिसवेरेणं पुढें।"
पुरुष को मारता है, वह पुरुष के वैर से स्पृष्ट है।