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क्रिया अध्ययन
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प. अहे णं से उसू अप्पणो गरुयत्ताए जाव अहे वीससाए
पच्चोवयमाणे जाई तत्थ पाणाई जाव सत्ताइं जीवियाओ
ववरोवेइ तावं च णं से पुरिसे कइ किरिए? उ. गोयमा ! जावं च णं से उसुं अप्पणो गरुयत्ताए जाव
जीवियाओ ववरोवेइ, तावं च णं से पुरिसे काइयाए जाव पारितावणियाए चउहि किरियाहिं पुढें। जेसि पि य णं जीवाणं सरीरेहिंतो धणुं निव्वत्तिए, ते विय णं जीवा काइयाए जाव पारितावणियाए चउहि किरियाहिं
प्र. भंते ! जब वह बाण अपने भार से यावत् स्वाभाविकरूप से
नीचे गिरते हुए वहां प्राणियों यावत् सत्वों को जीवन से रहित
कर देता है, तब उस पुरुष को कितनी क्रियाएं लगती हैं ? उ. गौतम ! जब वह बाण अपने भार से यावत् प्राणियों को जीवन
से रहित कर देता है, तब वह पुरुष कायिकी यावत् पारितापनिकी इन चारों क्रियाओं से स्पृष्ट होता है। जिन जीवों के शरीर से धनुष बना है, वे जीव कायिकी यावत् पारितापनिकी इन चार क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं।
पुढे।
एवं धणुंपुढे चउहिं,जीवा चउहि, न्हारू चउहिं,
इसी प्रकार धनुःपृष्ठ जीवा (डोरी) ण्हारू ये चार
क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं। उसू पंचहिं,सरे, पत्तणे, फले, न्हारू पंचहिं,
बाण, शर, पत्र, फल और ण्हारू ये पांच क्रियाओं से स्पृष्ट
होते हैं। जे वि य से जीवा अहे पच्चोवयमाणस्स उवग्गहे वट्टति
जो जीव नीचे गिरते हुए बाण के सहायक हैं। ते वि य णं जीवा काइयाए जाव पाणाइवायकिरियाए वे जीव भी कायिकी यावत् प्राणातिपातिकी इन पांचों क्रियाओं पंचहिं किरियाहिं पुट्ठा। -विया. स. ५, उ.६, सु. १०-१२
से स्पृष्ट होते हैं। २८. मियवधगस्स किरिया परूवणं
२८. मृगवधक की क्रियाओं का प्ररूपणप. पुरिसे णं भंते ! कच्छंसि वा, दहसि वा, उदगंसि वा, प्र. भंते ! मृगों से आजीविका चलाने वाला, मृगवध का संकल्प दवियंसि वा, वलयंसि वा, नूमंसि वा, गहणंसि वा,
करने वाला, मृगवध में दत्तचित्त कोई पुरुष मृगवध के लिए गहणविदुग्गंसि वा, पव्वयंसि वा, पव्वयविदुग्गंसि वा,
निकलकर कच्छ में, द्रह में, जलाशय में. हरे भरे मैदान में. वणंसि वा, वणविदुग्गसि वा, मियवित्तीए, मियसंकप्पे,
पगडंडी में, गुफा में, झाड़ी में, सघन झाड़ी में, दुर्गम पर्वत पर, मियपणिहाणे, मियवहाए गंता 'एए मिए' त्ति काउं
पर्वत पर, वन में, गहन वन में जाकर "ये मृग हैं," ऐसा अण्णयरस्स मियस्स वहाए कूडपासं उद्दाइ, तओ णं
सोचकर किसी एक मृग को मारने के लिए जाल फैलाता है तो भंते! से पुरिसे कइ किरिए पण्णत्ते?
भंते ! वह पुरुष कितनी क्रिया वाला होता है? उ. गोयमा ! जावं च णं से पुरिसे कच्छंसि वा जाव मियस्स उ. गौतम ! जब वह पुरुष कच्छ में यावत् मृगवध के लिए जाल वहाए कूडपासं उद्दाइ, तावं च णं से पुरिसे सिय
फैलाता है तो कदाचित् तीन क्रिया वाला, कदाचित् चार क्रिया तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकिरिए।
वाला और कदाचित् पांच क्रिया वाला होता है। प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ
प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि"सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकिरिए ?'
"वह पुरुष कदाचित् तीन क्रिया वाला, कदाचित् चार क्रिया
वाला और कदाचित् पांच क्रिया वाला होता है?" उ. गोयमा ! जे भविए उद्दवणयाए, णो बंधणयाए, णो उ. गौतम ! जब वह शिकारी मृगों को भयभीत करता है किन्तु मारणयाए, तावं च णं से पुरिसे काइयाए,
मृगों को बांधता नहीं, मारता नहीं, तब वह पुरुष कायिकी, अहिगरणियाए, पाउसियाए तिहिं किरियाहिं पुढें।
आधिकरणिकी और प्राद्वेषिकी इन तीन क्रियाओं से स्पृष्ट
होता है। जे भविए उद्दवणयाए वि,बंधणयाए नि,णो मारणयाए,
जब तक वह मृगों को भयभीत करता है, बांधता है किन्तु तावं च णं से पुरिसे काइयाए जाव पारियावणियाए चउहिं । मारता नहीं, तब तक वह पुरुष कायिकी यावत् पारितापनिकी किरियाहिं पुढे।
इन चार क्रियाओं से स्पृष्ट होता है। जे भविए उद्दवणयाए वि, बंधणयाए वि, मारणयाए वि,
जब तक वह मृगों को भयभीत करता है, बांधता है और तावं च णं से पुरिसे काइयाए जाव पाणाइवायकिरियाए
मारता है, तब तक वह कायिकी यावत् प्राणातिपातिकी इन पंचहि किरियाहिं पुढें।
पांचों क्रियाओं से स्पृष्ट होता है। से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ
इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकिरिए।"
"वह पुरुष कदाचित् तीन क्रिया वाला, कदाचित् चार क्रिया -विया. स.१, उ.८, सु.४
वाला और कदाचित् पांच क्रिया वाला होता है।"