________________
९२२
उ. गोयमा ! तिकिरिया वि, चउकिरिया वि, पंचकिरिया वि, अकिरिया वि।
प. जीवा णं भंते! णेरड्याओ कह किरियाओ ?
उ. गोयमा ! जहेब आइल्लदंडओ तहेव भाणिपब्बो जाव वेमाणिय त्ति ।
प. जीवा णं भंते! जीवेहितो कह किरिया ?
उ. गोयमा ! तिकिरिया वि, चउकिरिया वि, पंचकिरिया वि, अकिरिया वि।
प. दं. १. जीवा णं भंते ! णेरइएहिंतो कइ किरिया ?
उ. गोयमा ! तिकिरिया वि, चउकिरिया वि, अकिरिया वि ६. २-२४. असुरकुमारेहिंतो वि एवं चेब जाव वेमाणिएहिंतो ।
नवरं-ओरालियसरीरेहितो जहा जीवेहितो ।
प. णेरइए णं भंते ! जीवाओ कइ किरिए ?
उ. गोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय
पंचकरिए।
प. दं. १ णेरइए णं भंते! णेरड्याओ कइ किरिए ?
उ. गोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए। दं. २- ११. एवं जाव थणियकुमाराओ।
दं. १२-२१. पुढविकांइयाओ जाव मणुस्साओ जहा जीवाओ।
दं. २२-२४ वाणमंतर - जोइसिय-वेमाणियाओ जहा नेरइयाओ।
णवर-ओरालिय सरीराओ जहा जीवाओ।
प. रइए णं भंते ! जीवेहिंतो कइ किरिए ?
उ. गोयमा ! सिय तिकिरिए सिय चउकिरिए सिय पंचकरिए।
प. णेरइए णं भंते ! णेरइएहिंतो कइ किरिए ?
उ. गोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए।
एवं जहेव पढमो दंडओ तहा एसो वि बिइओ भाणियव्वो ।
एवं जाव वेमाणिएहिंतो ।
नवरं णैरइयस्स गैरइएहितो देवेहिंतो य पंचमा किरिया णत्थि ।
द्रव्यानुयोग - (२)
उ. गौतम ! तीन, चार या पांच क्रियाओं वाले हैं और अक्रिय भी हैं।
प्र. भंते! अनेक जीव एक नैरयिक की अपेक्षा कितनी क्रियाओं वाले हैं ?
उ. गौतम ! जिस प्रकार प्रारम्भ का दंडक कहा है उसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त कहना चाहिए।
प्र. भंते ! अनेक जीव अनेक जीवों की अपेक्षा कितनी क्रियाओं वाले हैं ?
उ. गौतम ! वे तीन, चार या पांच क्रियाओं वाले हैं और अक्रिय भी हैं।
प्र. दं. १. भंते! अनेक जीव अनेक नैरयिकों की अपेक्षा कितनी क्रियाओं वाले हैं ?
उ. गौतम ! तीन या चार क्रियाओं वाले हैं और अक्रिय भी हैं। दं. २-२४. असुरकुमारों से वैमानिकों पर्यन्त इसी प्रकार क्रियाएं कहनी चाहिए।
विशेष औदारिक शरीरधारियों की अपेक्षा क्रियाएं जीवों के समान कहनी चाहिए।
प्र. एक नैरयिक एक जीव की अपेक्षा कितनी क्रियाओं वाला है ? उ. गौतम ! वह कदाचित् तीन, चार या पांच क्रियाओं वाला है।
प्र. दं. १. भंते ! एक नैरयिक- एक नैरयिक की अपेक्षा कितनी क्रियाओं वाला है?
उ. गौतम ! वह कदाचित् तीन या चार क्रियाओं वाला है।
दं. २ -११. इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार की अपेक्षा कहना चाहिए।
दं. १२-२१. पृथ्वीकायिक यावत् मनुष्य की अपेक्षा जीव के समान क्रियाएं कहनी चाहिए।
दं. २२-२४ वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक की अपेक्षा नैरयिक के समान क्रियाएं कहनी चाहिए।
विशेष - औदारिक शरीर की अपेक्षा जीव के समान कहना चाहिए।
प्र. भंते! एक नारक अनेक जीवों की अपेक्षा कितनी क्रियाओं वाला है?
उ. गौतम ! वह कदाचित् तीन, चार या पांच क्रियाओं वाला है।
प्र. भंते ! एक नैरयिक, अनेक नैरयिकों की अपेक्षा कितनी क्रियाओं वाला है?
उ. गौतम ! वह कदाचित् तीन या चार क्रियाओं वाला है। इस प्रकार जैसे प्रथम दण्डक कहा, उसी प्रकार यह द्वितीय दण्डक भी कहना चाहिए।
इसी प्रकार यावत् अनेक वैमानिकों की अपेक्षा से कहना चाहिए।
विशेष- एक नैरधिक अनेक नैरयिकों की अपेक्षा से और अनेक देवों की अपेक्षा से पांचवीं क्रिया नहीं करता।