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क्रिया अध्ययन
एवं वाउक्काइएण वि सव्वे वि भाणियव्वा ।
प. वणस्सइकाइए णं भंते! वणस्सइकाइयं चैव आणममाणे वा, पाणममाणे वा, ऊससमाणे वा, नीससमाणे वा कइ किरिए ?
उ. गोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकरिए। - विया. स. ९, उ. ३४, सु. १६-२२ ३७. वाउकायस्स रूक्खाई पचाले पवाडे माणे किरिया परूवणं
प. बाउकाइए णं भंते । रूक्खस्स मूल पचालेमाणे वा पवाडेमाणे वा कइ किरिए ?
उ. गोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकरिए।
एवं कंदं जाव बीयं ।
- विया. स. ९, उ. ३४, सु. २३-२५
३८. जीव- चउवीस दंडएसु एगत्त-पुहत्तेहिं किरियापरूवणं
प. जीवे णं भंते जीवाओ कइ किरिए ?
उ. गोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकरिए, सिय अकिरिए।
प. दं. १. जीवे णं भंते ! णेरइयाओ कइ किरिए ?
उ. गोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय अकिरिए।
दं. २ ११. एवं जाय धणियकुमाराओ।
वं. १२-२१. पुढविक्वाइय- आउक्वाइय-तेउक्काइयवाउकाइय वणष्कइकाइय-बेदियतेइंदिय चउरिंदिय, पंचेंद्रिय-तिरिक्खजोणिय मणूसाओ जहा जीवाओ।
द. २२-२४ वाणमंतर जोइसिय-बेमाणियाओ जहा रइयाओ ।
प. जीवे णं भंते जीवेहिंतो कइ किरिए ?
उ. गोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकरिए, सिप अकिरिए।
प. जीवे णं भंते! णेरइएहिंतो कइ किरिए ?
उ. गोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय अकिरिए।
एवं जहेब पढमो दंडओ तहा एसो वि दिइओ भाणियब्बो
प. जीवा णं भते जीवाओ कड किरिया ? -
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इसी प्रकार वायुकाधिक जीवों के साथ भी पृथ्वीकायिक आदि सभी (५ भंग) का कथन करना चाहिए।
प्र. भंते ! वनस्पतिकायिक जीव, वनस्पतिकायिक जीवों को आभ्यन्तर और बाह्य श्वासोच्छ्वास के रूप में ग्रहण करते हुए और छोड़ते हुए कितनी क्रियाओं वाला होता है ?
उ. गौतम ! कदाचित् तीन क्रिया वाला, कदाचित् चार क्रिया वाला और कदाचित् पांच क्रिया वाला होता है।
३७. वायुकाय के द्वारा वृक्षादि हिलाते गिराते हुए की क्रियाओं का
प्ररूपण
प्र. भंते! वायुकायिक जीव वृक्ष के मूल को हिलाता हुआ और गिराता हुआ कितनी क्रियाओं वाला होता है ?
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उ. गौतम ! कदाचित् तीन क्रिया वाला कदाचित् चार क्रियावाला और कदाचित् पांच क्रिया वाला होता है।
इसी प्रकार कंद पावत् बीज को हिलाते हुए आदि के लिए क्रियाएं जाननी चाहिए।
३८. जीव- चौबीस दंडकों में एक व अनेक जीव की अपेक्षा क्रियाओं का प्ररूपण
प्र. भंते ! एक जीव एक जीव की अपेक्षा कितनी क्रियाओं वाला है?
उ. गौतम ! कदाचित् तीन, चार या पांच क्रियाओं वाला है और कदाचित् अक्रिय है।
प्र. दं. १. भंते ! एक जीव एक नैरयिक की अपेक्षा कितनी क्रियाओं वाला है?
उ. गौतम ! कदाचित् तीन या चार क्रियाओं वाला है और कदाचित् अक्रिय है।
२-११. इसी प्रकार स्तनितकुमार पर्यन्त कहना चाहिए। पं. १२-२१ (एक जीव को) पृथ्वीकाधिक, अकायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक वनस्पतिकायिक, द्वीन्द्रिय, श्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक और मनुष्य की अपेक्षा जीव के समान क्रियाएं जाननी चाहिये ।
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दं. २२-२४ वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकों म नैरयिक के समान क्रियाएं कहनी चाहिए।
प्र. भंते ! एक जीव अनेक जीवों की अपेक्षा कितनी क्रियाओं वाला है?
उ. गौतम ! कदाचित् तीन चार या पांच क्रियाओं वाला है और कदाचित् अक्रिय है।
प्र. भंते! एक जीव अनेक नैरयिकों की अपेक्षा कितनी क्रियाओं वाला है?
उ. गौतम ! कदाचित् तीन या चार क्रियाओं वाला है और कदाचित् अक्रिय है।
इसी प्रकार जैसा पहले दंडक में कहा उसी प्रकार यहां दूसरे दंडक में कहना चाहिए।
प्र. भंते ! अनेक जीव एक जीव की अपेक्षा कितनी क्रियाओं
वाले हैं ?