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क्रिया अध्ययन
एवं जहा ओरालियसरीरेण चत्तारि दंडगा भणिया तहा वेडव्वियसरीरेण वि चत्तारि दंडगा भाणियव्वा ।
नवरं पंचमकिरिया ण भण्णइ ।
सेसं तं चेव ।
"
एवं जहा बेडब्बियं तहा आहारगं वि. तेयगं वि. कम्म वि भाणियव्वं, एक्केके चत्तारि दंडगा भाणियव्या जाय
प. वेमाणिया णं भंते ! कम्मगसरीरेहिंतो कइ किरिया ?
उ. गोयमा ! तिकिरिया वि, चउकिरिया वि ।
-विया. स. ८, उ. ६, सु. १४-२९ अपच्चक्खाणकिरियाया समाणत्त
४०. सेट्ठिखत्तियाई
पवणं
'भते !' ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीर चंद नमस वदित्ता नमसित्ता एवं बयासी
प से नूणं भंते सेट्ठिस्स य तणुयस्स य किविणस्स व पत्तियरस य समा चैव अपच्चक्रवाणकिरिया कन्जइ ?
उ. हंता, गोयमा ! सेट्ठिस्स य जाव खत्तियस्स य समा चेव अपच्चक्खाण किरिया कज्जइ ।
प से केणट्ठेण भंते! एवं बुच्चइ
'सेट्ठिस्स य जाव खत्तियस्स य समा चेव अपच्चक्खाण किरिया कज्जइ ?
उ. गोयमा ! अविरई पडुच्च ।
से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ
'सेट्ठिस्स व जाव खत्तियस्स यसमा चैव अपच्चक्खाण किरिया कजइ।' - विया. स. १, उ. ९, सु. २५ ४१. हथिस्स य कुंथुस्स य अपच्चक्खाण किरियाया समाणत्तपरूवणं
प से नूणं भंते ! हत्थिस्स य कुंथुस्स य समा चेव अपच्चक्खाण किरिया कज्जइ ?
उ. हंता, गोयमा ! हत्थिस्स य कुंथुस्स य समा चेव अपच्चक्खाण किरिया कज्जइ ।
प से केणट्ठेणं भंते ! एवं युच्चइ
'हथिस्स य कुंथुस्स य समा चेव अपच्चक्खाण किरिया कज्जइ ?'
उ. गोयमा ! अविरइं पडुच्च ।
से तेणट्ठेण गोयमा ! एवं युच्चद्द
'हत्थिस्स य कुंथुस्स य समा चेव अपच्चक्खाण किरिया कज्जइ । ' - विया. स. ७, उ. ८, सु. ८
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जिस प्रकार औदारिक शरीर की अपेक्षा चार दण्डक कहे हैं। उसी प्रकार वैक्रिय शरीर की अपेक्षा भी चार दण्डक कहने चाहिए।
विशेष- इसमें पांचवी क्रिया का कथन नहीं करना चाहिए।
शेष सभी कथन पूर्ववत् समझना चाहिए।
जिस प्रकार वैक्रिय शरीर का कथन किया गया है, उसी प्रकार आहारक, तैजस् और कार्मण शरीर का भी कथन करना चाहिए और प्रत्येक के चार-चार दण्डक कहने चाहिए यावत्
प्र. भंते ! बहुत से वैमानिक देव कार्मण शरीरों की अपेक्षा कितनी क्रियाओं वाले हैं ?
उ. गौतम ! तीन या चार क्रियाओं वाले हैं।
४०. श्रेष्ठी और क्षत्रियादि को समान अप्रत्याख्यान क्रिया का प्ररूपण
'भंते !' ऐसा कहकर भगवान् गौतम ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को वन्दन - नमस्कार किया और वन्दन - नमस्कार करके इस प्रकार पूछा
प्र. भंते ! क्या श्रेष्ठी और दरिद्र को, रंक और क्षत्रिय (राजा) को समान रूप से अप्रत्याख्यान क्रिया लगती है ?
उ. हाँ, गौतम ! श्रेष्ठी यावत् क्षत्रिय राजा को समान रूप से अप्रत्याख्यान क्रिया लगती है।
प्र. भंते! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि
' श्रेष्ठी यावत् क्षत्रिय राजा को समान रूप से अप्रत्याख्यान क्रिया लगती है ?"
उ. गौतम ! अविरति की अपेक्षा ऐसा कहा जाता है।
इस कारण से गौतम ऐसा कहा जाता है कि
'श्रेष्ठी यावत् क्षत्रिय राजा को समान रूप से अप्रत्याख्यान क्रिया लगती है।'
४१. हाथी और कुंथुए के जीव को समान अप्रत्याख्यान क्रिया का
प्ररूपण
प्र. भंते ! क्या वास्तव में हाथी और कुंथुए के जीव को अप्रत्याख्यानिकी क्रिया समान लगती है ?
उहाँ गौतम! हाथी और कुंथुए के जीव को अप्रत्याख्यानिकी क्रिया समान लगती है।
प्र. भंते! किस कारण से ऐसा कहते हैं कि
"हाथी और कुंथुए के जीव को अप्रत्याख्यानिकी क्रिया समान लगती है ?"
उ. गौतम ! अविरति की अपेक्षा से ( दोनों में समानता होती है।) इस कारण से गौतम! ऐसा कहा जाता है कि
"हाथी और कुंथुए के जीव को अप्रत्याख्यानिकी क्रिया समान लगती है।"