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१. जेणं अप्पाणं वा २ परं वा, ३ तदुभयं वा जीवियाओ ववरोवेइ ।
से तं पाणाइवाय किरिया । २. अपच्चक्खाणकिरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा
१. जीव अपच्चक्खाणकिरिया चैव
- पण्ण. प. २२, सु. १५७२
२. अजीव अपच्चक्खाणकिरिया चैव ।
दो किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा
१. आरंभिया चेव,
२. पारिग्गहिया चैव
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१. आरंभिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा
१. जीवआरंभिया चेव,
२. अजीवआरंभिया चैव ।
२. पारिग्गहिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा१. जीवपारिग्गहिया चेव,
१. मायावत्तिया चेव,
२. मिच्छादंसणवत्तिया देव ।
२. अजीवपारिग्गहिया चेव ।
दो किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा
१. मायावत्तिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा१. आयभाववंकणया चेव,
२. परभाववंकणया चेव ।
२. मिच्छादंसणवत्तिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा१. ऊणाइरित्तमिच्छादंसणवत्तिया चेव,
२. तव्वइरित्तमिच्छादंसणवत्तिया चेव ।
दो किरियाऔ पण्णत्ताओ, तं जहा
१. दिट्ठिया चैव
२. पुट्ठिया चेव ।
१. दिट्ठिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा
१. जीवदिट्ठिया चेव,
२. अजीवदिट्ठिया चेव ।
२. पुट्ठिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा१. जीवपुट्ठिया चेव,
२. अजीवपुट्ठिया चैव
दो किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा
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द्रव्यानुयोग - (२)
१. स्व, २. पर, ३. उभय का जिससे जीव नष्ट कर दिया जाता है।
यह प्राणातिपात क्रिया का वर्णन है।
२. अप्रत्याख्यान क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा
१. जीव अप्रत्याख्यान क्रिया (जीव सम्बन्धी अविरति से होने वाली क्रिया),
२. अजीव अप्रत्याख्यान क्रिया (अजीव सम्बन्धी अविरति से होने वाली क्रिया)।
क्रिया दो प्रकार की कही गई है,
१. आरम्भिकी क्रिया (पापार्जन की क्रिया),
२. पारिग्रहिकी क्रिया (परिग्रह से होने वाली क्रिया)।
१. आरम्भिकी क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा१. जीव आरम्भिकी क्रिया (जीव मारने की क्रिया), २. अजीव आरम्भिकी क्रिया (अचेतन पदार्थों को तोड़ने की क्रिया)।
यथा
२. पारिग्रहिकी क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा
१. जीव पारिग्रहिकी क्रिया (सजीव पदार्थों के प्रति मूर्च्छा की). २. अजीव पारिग्रहिकी (अजीव पदार्थों के प्रति मूर्च्छा की)। क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा
१. मायाप्रत्यया ( कपट से की जाने वाली क्रिया), २. मिथ्यादर्शनप्रत्यया (झूठी श्रद्धा से की जाने वाली क्रिया)।
१. माया प्रत्यया क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा
१. आत्मभाव - वंचना (अपना बड़प्पन दिखाने की क्रिया), २. परभाव वंचना (दूसरों को ठगने की क्रिया)।
२. मिथ्यादर्शनप्रत्यया क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा१. ऊनातिरिक्त मिथ्यादर्शनप्रत्यया (तत्वों का न्यूनाधिक स्वरूप कहने की ) क्रिया,
२. तद् व्यतिरिक्त मिथ्यादर्शनप्रत्यया ( तत्वों का विपरीत स्वरूप कहने की) क्रिया ।
क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा
१. दृष्टिजा (रागभाव से देखने की क्रिया),
२. स्पृष्टिजा (रागभाव से स्पर्श करने की क्रिया)।
१. दृष्टिजा क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा
१. जीवदृष्टिजा (रागभाव से सजीव पदार्थों को देखने की क्रिया),
२. अजीवदृष्टिजा (रागभाव से अजीव पदार्थों को देखने की क्रिया)।
२. स्पृष्टिजा क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा
१. जीवस्पृष्टि (रागभाव से सजीव पदार्थों को स्पर्श करने की क्रिया).
२. अजीवस्पृष्टि (राग भाव से अजीव पदार्थों को स्पर्श करने की क्रिया)।
क्रिया दो प्रकार की कही गई है,
यथा