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२. परसरीरअणवकंखवत्तिया चेव।
दो किरियाओ पण्णत्ताओ,तं जहा१. पेज्जवत्तिया चेव,
२. दोसवत्तिया चेव। १. पेज्जवत्तिया किरिया दुविहा पण्णत्ता,तं जहा
१. मायावत्तिया चेव,
२. लोहवत्तिया चेव।
द्रव्यानुयोग-(२) २. पर-शरीर-अनवकांक्षाप्रत्यया (दूसरे के शरीर की अपेक्षा
न रखकर की जाने वाली क्रिया)। क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा१. प्रेयःप्रत्यया (राग भाव से होने वाली क्रिया),
२. द्वेषप्रत्यया (द्वेष भाव से होने वाली क्रिया)। १. प्रेयःप्रत्यया क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा१. माया प्रत्यया (राग भाव से कपट करके की जाने वाली
क्रिया), २. लोभ प्रत्यया (राग भाव से लोभ करके की जाने वाली
क्रिया)। २. द्वेषप्रत्यया क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा
१. क्रोधप्रत्यया (क्रोध से की जाने वाली क्रिया),
२. मान प्रत्यया (मान से की जाने वाली क्रिया)। ६. कायिकी आदि पांच क्रियाएं
उस काल और उस समय में भगवान के अन्तेवासी शिष्य प्रकृतिभद्र मंडितपुत्र नामक अनगार ने यावत् पर्युपासना करते हुए इस प्रकार पूछाप्र. भंते ! क्रियाएं कितनी कही गई हैं ? उ. मंडितपुत्र ! पांच क्रियाएं कही गई हैं, यथा
१. कायिकी, २. आधिकरणिकी, ३.प्राद्वेषिकी, ४. पारितापनिकी, ५. प्राणातिपातक्रिया।
२. दोसवत्तिया किरिया दुविहा पण्णत्ता,तं जहा
१. कोहे चेव,
२. माणे चेव। -ठाणं.अ.२, उ.१, सु. ५०/१३-३६ ६. काइयाइ पंच किरियाओ
तेणं कालेणं तेणं समएणं जाव अंतेवासी मंडियपुत्ते णाम अणगारे पगइभद्दए जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी
प. कइणं भंते ! किरियाओ पण्णत्ताओ? उ. मंडियपुत्ता !पंच किरियाओ पण्णत्ताओ,तं जहा
१.काइया, २.अहिगरणिया, ३.पाओसिया, ४.पारियावणिया, ५.पाणाइवायकिरिया।
-विया. स. ३, उ.१, सु.१-२ ७. चउवीसदंडएसुकाइयाइ पंच किरियाओ
प. दं.१.नेरइया णं भंते ! कइ किरियाओ पण्णत्ताओ? उ. गोयमा !पंच किरियाओ पण्णत्ताओ,तं जहा
१.काइया जाव ५. पाणाइवायकिरिया। दं.२-२४.एवं जाव वेमाणियाणं।
-पण्ण. प.२२,सु. १६०६ ८. जीवेसु काइयाइ किरियाणं पुट्ठापुट्ठभाव परूवणं
प. जीवे णं भंते ! जं समयं काइयाए आहिगरणियाए
पाओसियाए किरियाए पुढे तं समयं पारियावणियाए किरियाए पुढे पाणाइवायकिरियाए पुढे ?
७. चौबीस दंडकों में कायिकी आदि पांच क्रियाएं
प्र. दं.१. भंते ! नारकों में कितनी क्रियाएं कही गई हैं ? उ. गौतम ! पांच क्रियाएं कही गई हैं, यथा
१. कायिकी यावत् ५. प्राणातिपातक्रिया। दं.२-२४. इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त पांच क्रियाएं जाननी
चाहिए। ८. जीवों में कायिकी आदि क्रियाओं के स्पृष्टास्पृष्टभाव का
प्ररूपणप्र. भंते ! जिस समय जीव कायिकी, आधिकरणिकी और
प्राद्वेषिकी क्रिया से स्पृष्ट होता है, क्या उस समय पारितापनिकी क्रिया से स्पृष्ट होता है या प्राणातिपातकी क्रिया
से स्पृष्ट होता है? उ. १. गौतम ! कोई जीव, एक जीव की अपेक्षा से जिस समय
कायिकी, आधिकारणिकी और प्राद्वेषिकी क्रिया से स्पृष्ट होता है, उस समय पारितापनिकी क्रिया से भी स्पृष्ट होता है और प्राणातिपातकी क्रिया से भी स्पृष्ट होता है। २. कोई जीव, एक जीव की अपेक्षा से जिस समय कायिकी, आधिकरणिकी और प्राद्वेषिकी क्रिया से स्पृष्ट होता है, उस समय पारितापनिकी क्रिया से स्पृष्ट होता है, किन्तु प्राणातिपातकी क्रिया से स्पृष्ट नहीं होता है।
उ. १. गोयमा ! अत्थेगइए जीवे एगइयाओ जीवाओ जं
समयं काइयाए आहिगरणियाए पाओसियाए किरियाए पुढे तं समयं पारियावणियाए किरियाए पुढे, पाणाइवाय किरियाए पुढे। २. अत्थेगइए जीवे एगइयाओ जीवाओ जं समय काइयाए आहिगरणियाए पाओसियाए किरियाए पुढे तं समयं पारियावणियाए किरियाए पुढे, पाणाइवायकिरियाए अपुठे।
१. (क) आव.अ.४,सु.२४
(ख) ठाणं.अ.५,उ.२,सु.४१९
(ग) विया.स.८,उ.४,सु.२ (घ) पण्ण.प.२२,सु.१५६७
(ङ) सम. स. ५,सु.१ (च) पण्ण.२२,सु.१६०५