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एवं पारिग्गहिया वि तिहिं उवरिल्लाहिं समं चारेयव्वा।
जस्स मायावत्तिया किरिया कज्जइ, तस्स उवरिल्लाओ दो वि सिय कज्जइ, सिय णो कज्जइ,
जस्स उवरिल्लाओ दो कज्जइ, तस्स मायावत्तिया किरिया णियमा कज्जइ, जस्स अपच्चक्खाण किरिया कज्जइ, तस्स मिच्छादसणवत्तिया किरिया सिय कज्जइ, सिय णो कज्जइ, जस्स पुण मिच्छादसणवत्तिया किरिया कज्जइ, तस्स अपच्चक्खाणकिरिया णियमा कज्जइ। दं.१.णेरइयस्स आइल्लिंयाओ चत्तारि परोप्परं णियमा कज्जति। जस्स एयाओ चत्तारि कज्जइ, तस्स मिच्छादसणवत्तिया किरिया भइज्जति, जस्स पुण मिच्छादसणवत्तिया किरिया कज्जइ तस्स एयाओ चत्तारि किरियाओ णियमा कज्जंति। दं.२-११ एवं जाव थणियकुमारस्स।
दं. १२-१९. पुढविक्काइया जाव चउरिंदियस्स पंच वि परोप्परं णियमा कज्जति। दं. २०. पंचेंदिय-तिरिक्खजोणियस्स आइल्लियाओ तिण्णि वि परोप्परं णियमा कज्जति, जस्स एयाओ कज्जंति, तस्स उवरिल्लाओ दो भइज्जति,
द्रव्यानुयोग-(२) इसी प्रकार पारिग्रहिकी क्रिया के भी तीन आलापक ऊपर के समान समझ लेना चाहिए। जिसके मायाप्रत्यया क्रिया होती है, उसके आगे की दो क्रियाएं (अप्रत्याख्यानिकी और मिथ्यादर्शनप्रत्यया) कदाचित् होती है और कदाचित् नहीं होती है। (किन्तु) जिसके आगे की दो क्रियाएं होती हैं, उसके मायाप्रत्यया क्रिया निश्चित होती है। जिसके अप्रत्याख्यान क्रिया होती है, उसके मिथ्यादर्शन प्रत्यया क्रिया कदाचित् होती है और कदाचित नहीं होती है। (किन्तु) जिसके मिथ्यादर्शन प्रत्यया क्रिया होती है, उसके अप्रत्याख्यान क्रिया निश्चित होती है। दं. १. नैरयिक के प्रारम्भ की चार क्रियाएं परस्पर निश्चित होती हैं। जिसके ये चार क्रियाएं होती हैं उसके मिथ्यादर्शनप्रत्यया क्रिया विकल्प से होती है। जिसके मिथ्यादर्शनप्रत्यया क्रिया होती है, उसके ये चारों क्रियाएं निश्चित होती हैं। दं. २-११. इसी प्रकार स्तनितकुमार पर्यन्त क्रियाओं का कथन करना चाहिए। दं. १२-१९. पृथ्वीकायिकों से चतुरिन्द्रिय पर्यन्त जीवों के पांचों ही क्रियाएं परस्पर निश्चित हैं। दं. २०.पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक के प्रारम्भ की तीन क्रियाएं परस्पर निश्चित हैं। जिसके ये तीनों क्रियाएं होती हैं, उसके आगे की दोनों क्रियाएं विकल्प से होती हैं। जिसके आगे की दोनों क्रियाएं होती हैं, उसके ये प्रारम्भ की तीनों क्रियाएं निश्चित हैं। जिसके अप्रत्याख्यान क्रिया होती है, उसके मिथ्यादर्शनप्रत्यया क्रिया कदाचित् होती है और कदाचित् नहीं होती है। जिसके मिथ्यादर्शनप्रत्यया क्रिया होती है, उसके अप्रत्याख्यानक्रिया निश्चित होती है, दं. २१. मनुष्य का सामान्य जीवों के समान कथन करना चाहिए। दं. २२-२४. वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों का
नैरयिकों के समान कथन करना चाहिए। प्र. भंते ! जिस समय जीव को आरम्भिकी क्रिया होती है, क्या
उस समय पारिग्रहिकी क्रिया होती है? उ. गौतम ! इसी प्रकार ये चार दंडक जानने चाहिए, यथा
१.जिस जीव के,२. जिस समय में, ३. जिस देश में और ४. जिस प्रदेश में, जैसे नैरयिकों के विषय में ये चारों दण्डक कहे उसी प्रकार सब देवों के विषय में वैमानिक पर्यन्त कहने चाहिए।
जस्स उवरिल्लाओ दोण्णि कज्जति, तस्स एयाओ तिण्णि विणियमा कज्जति, जस्स अपच्चक्खाणकिरिया कज्जइ, तस्स मिच्छादसणवत्तिया सिय कज्जइ, सिय णो कज्जइ,
जस्स पुण मिच्छादसणवत्तिया किरिया कज्जइ, तस्स अपच्चक्खाणकिरिया णियमा कज्जइ। दं.२१. मणूसस्स जहा जीवस्स।
दं. २२-२४. वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणियस्स जहा
णेरइयस्स। प. जं समयं णं भंते ! जीवस्स आरंभिया किरिया कज्जइ तं
समयं पारिग्गहिया किरिया कज्जइ? उ. गोयमा ! एवं एए चत्तारि दंडगा णेयव्वा, तं जहा
१.जस्स,२.जं समय,३.जं देस, ४.जं पदेसं।
जहाणेरइयाणं तहा सव्वदेवाणं णेयव्वं जाव वेमाणियाणं।
-पण्ण.प.२२,सु. १६२८-१६३६