________________
क्रिया अध्ययन
एवं विगलिंदियवज्ज जाव वेमाणियाणं।
-ठाणं अ.४, उ.४, सु.३६९ १६. मिच्छद्दिट्ठिय चउवीसदंडएसु आरंभियाइ किरिया परूवणं-
९०७ इसी प्रकार विकलेन्द्रियों को छोड़कर वैमानिकों पर्यन्त कहना
चाहिए। १६. मिथ्यादृष्टि चौबीस दंडकों में आरंभिकी आदि क्रियाओं का
प्ररूपण-- मिथ्यादृष्टि नैरयिकों की पांच क्रियाएं कही गई हैं, यथा
मिच्छद्दिट्ठियाणं णेरइयाणं पंचकिरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा१.आरंभिया जाव ५.मिच्छादसणवत्तिया। एवं सव्वेसिं निरंतरं जाव मिच्छद्दिट्ठियाणं वेमाणियाणं।
णवर-विगलिंदिया मिच्छद्दिट्ठी णं भण्णंति।सेसं तहेव।
-ठाणं अ.५, उ.२, सु.४१९
१७. जीव-चउवीसदंडएसुआरंभियाइकिरियाणं णियमा-भयणा-
प. जस्स णं भंते !जीवस्स आरंभिया किरिया कज्जइ,
तस्स पारिग्गहिया किरिया कज्जइ, जस्स पारिग्गहिया किरिया कज्जइ, तस्स आरंभिया किरिया कज्जइ? उ. गोयमा ! जस्स णं जीवस्स आरंभिया किरिया कज्जइ,
तस्स पारिग्गहिया किरिया सिय कज्जइ, सिय णो कज्जइ,
जस्स पुण पारिग्गहिया किरिया कज्जइ,
तस्स आरंभिया किरिया णियमा कज्जइ। प. जस्स णं भंते ! जीवस्स आरंभिया किरिया कज्जइ,
तस्स मायावत्तिया किरिया कज्जइ, जस्स मायावत्तिया किरिया कज्जइ,
तस्स आरंभिया किरिया कज्जइ? उ. गोयमा ! जस्स णं जीवस्स आरंभिया किरिया कज्जइ,
तस्स मायावत्तिया किरिया णियमा कज्जइ, जस्स पुण मायावत्तिया किरिया कज्जइ, तस्स आरंभिया किरिया सिय कज्जइ सिय णो कज्जइ।
१. आरंभिकी यावत् ५. मिथ्यादर्शन प्रत्यया। इसी प्रकार निरन्तर मिथ्यादृष्टि वैमानिकों पर्यन्त सभी दण्डकों में पांचों क्रियाएं कहनी चाहिए। विशेष- (एकेन्द्रिय आदि) विकलेन्द्रियों में , (सम्यक्त्व का सर्वथा अभाव होने से) मिथ्यादृष्टि पद (विशेषण) का कथन नहीं करना
चाहिए। शेष दंडकों में पूर्ववत् जानना चाहिए। १७. जीव-चौबीसदंडकों में आरंभिकी आदि क्रियाओं की
नियमा-भजनाप्र. भंते ! जिस जीव के आरम्भिकी क्रिया होती है,
क्या उसके पारिग्रहिकी क्रिया होती है, जिसके पारिग्रहिकी क्रिया होती है,
क्या उसके आरम्भिकी क्रिया होती है? उ. गौतम ! जिस जीव के आरम्भिकी क्रिया होती है,
उसके पारिग्रहिकी क्रिया कदाचित् होती है और कदाचित् नहीं होती है, जिसके पारिग्रहिकी क्रिया होती है,
उसके आरम्भिकी क्रिया नियम से होती है। प्र. भंते ! जिस जीव के आरम्भिकी क्रिया होती है,
क्या उसके मायाप्रत्यया क्रिया होती है? जिसके मायाप्रत्यया क्रिया होती है,
क्या उसके आरम्भिकी क्रिया होती है? उ. गौतम ! जिस जीव के आरम्भिकी क्रिया होती है,
उसके नियम से माया प्रत्यया क्रिया होती है। जिसके मायाप्रत्यया क्रिया होती है, उसके आरम्भिकी क्रिया कदाचित् होती है और कदाचित् नहीं
होती है। प्र. भंते ! जिस जीव के आरम्भिकी क्रिया होती है,
क्या उसके अप्रत्याख्यानिकी क्रिया होती है, जिसके अप्रत्याख्यानिकी क्रिया होती है,
क्या उसके आरम्भिकी क्रिया होती है? उ. गौतम ! जिस जीव के आरम्भिकी क्रिया होती है,
उसके अप्रत्याख्यानिकी क्रिया कदाचित् होती है और कदाचित् नहीं होती है। जिस जीव के अप्रत्याख्यानिकी क्रिया होती है, उसके आरम्भिकी क्रिया निश्चित होती है। इसी प्रकार मिथ्यादर्शनप्रत्यया का सहभाव कहना चाहिए।
प. जस्स णं भंते ! जीवस्स आरंभिया किरिया कज्जइ,
तस्स अपच्चक्खाण किरिया कज्जइ, जस्स अपच्चक्खाण किरिया कज्जइ,
तस्स आरंभिया किरिया कज्जइ? उ. गोयमा !जस्स णं जीवस्स आरंभिया किरिया कज्जइ,
तस्स अपच्चक्खाण किरिया सिय कज्जइ, सिय णो कज्जइ, जस्स पुण अपच्चक्खाण किरिया कज्जइ, तस्स आरंभिया किरिया णियमा कज्जइ। एवं मिच्छादसणवत्तियाए वि समं।