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प. गाहावइस्स णं भंते ! भंडं विक्किणमाणस्स कइए भंड
साइज्जेज्जा,धणे य से अणुवणीए सिय,
द्रव्यानुयोग-(२)] प्र. भंते ! किराणा बेचने वाले उस गाथापति के किराने को
खरीदने वाले ने खरीदा और घर ले गया किन्तु उसका मूल्य नहीं दिया तोभंते ! खरीदने वाले को उस धन से क्या आरंभिकी क्रिया यावत् मिथ्यादर्शन क्रिया लगती है?
और गाथापति को उस धन से क्या आरंभिकी क्रिया यावत् मिथ्यादर्शन क्रिया लगती है? उ. गौतम ! खरीदने वाले को उस धन से प्रारंभ की चार क्रियाएं
लगती हैं और मिथ्यादर्शन क्रिया विकल्प से लगती है।
गाथापति के तो उस धन से पांचों क्रियाएं हल्की होती हैं। प्र. भंते ! किराना बेचने वाले गाथापति के किराने को खरीदने
वाला खरीद कर घर ले गया और उसको धन भी दे दिया, तो भंते ! उस धन से गाथापति को क्या आरंभिकी क्रिया यावत् मिथ्यादर्शन क्रिया लगती है? और खरीदने वाले को उस धन से क्या आरंभिकी क्रिया यावत् मिथ्यादर्शन क्रिया लगती है ? उ. गौतम ! गाथापति को उस धन से आरंभिकी क्रिया
यावत् अप्रत्याख्यान क्रिया लगती है किन्तु मिथ्यादर्शन क्रिया कदाचित् लगती है और कदाचित् नहीं लगती है। खरीदने वाले के वे पांचों क्रियायें हल्की होती हैं।
कइयस्स णं भंते ! ताओ धणाओ किं आरंभिया किरिया कज्जइ जाव मिच्छादसणकिरिया कज्जइ? गाहावइस्स वा ताओ धणाओ किं आरंभिया किरिया
कज्जइ जाव मिच्छादसणकिरिया कज्जइ? उ. गोयमा ! कइयस्स ताओ धणाओ हेट्ठिल्लाओ चत्तारि
किरियाओ कज्जंति मिच्छादसण किरिया भयणाए,
गाहावइस्स णं ताओ सव्वाओ पयणुई भवंति, प. गाहावइस्स णं भंते ! भंडं विक्किणमाणस्स कइए भंडं
साइज्जेज्जा, धणे य से उवणीए सिया, गाहावइस्स णं भंते ! ताओ धणाओ किं आरंभिया किरिया कज्जइ जाव मिच्छादसण किरिया कज्जइ? कइयस्स वा ताओ धणाओ किं आरंभिया किरिया कज्जइ
जाव मिच्छादसण किरिया कज्जइ? उ. गोयमा ! गाहावइस्स ताओ धणाओ आरंभिया किरिया
कज्जइ जाव अपच्चक्खाण किरिया कज्जइ, मिच्छादसण किरिया सिय कज्जइ, सिय नो कज्जइ, कइयस्सणं ताओ सव्वाओ पयणुई भवंति।
-विया.स.५, उ.६,सु.५-८ १९. आरंभियाइकिरियाणं अप्पाबहुयंप. एयासि णं भंते ! आरंभियाणं जाव मिच्छादसणवत्तियाण
य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा? उ. गोयमा ! १. सव्वत्थोवाओ मिच्छादसणवत्तियाओ किरियाओ, २. अप्पच्चक्खाण किरियाओ विसेसाहियाओ, ३. पारिग्गहियाओ किरियाओ विसेसाहियाओ, ४. आरंभियाओ किरियाओ विसेसाहियाओ, ५. मायावत्तियाओ किरियाओ विसेसाहियाओ।'
-पण्ण. प. २२, सु. १६६३ २०. चउवीसदंडएसु दिट्ठियाइ पंच किरियाओ
पंच किरियाओ पण्णत्ताओ,तं जहा१. दिट्ठिया, २. पुट्ठिया, ३. पाडुच्चिया, ४. सामन्तोवणियाइया, ५. साहत्थिया। दं.१-२४.एवं नेरइयाणं जाव वेमाणियाणं।
-ठाणं. अ.५, उ.२, सु.४१९ २१. चउवीसदंडएसुसत्थियाइ पंच किरियाओ
पंच किरियाओ पण्णताओ,तं जहा
१९. आरंभिकी आदि क्रियाओं का अल्प-बहुत्वप्र. भंते ! इन आरम्भिकी यावत् मिथ्यादर्शनप्रत्यया क्रियाओं में
कौन-किससे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ? उ. गौतम ! १. सबसे कम मिथ्यादर्शनप्रत्यया क्रियाएं हैं,
२. (उनसे) अप्रत्याख्यानक्रियाएं विशेषाधिक हैं, ३. (उनसे) पारिग्रहिकी क्रियाएं विशेषाधिक हैं, ४. (उनसे) आरम्भिकी क्रियाएं विशेषाधिक हैं, ५. (उनसे) मायाप्रत्यया क्रियाएं विशेषाधिक हैं।
२०. चौबीसदंडकों में दृष्टिजा आदि पांच क्रियाएं
पांच क्रियाएं कही गई हैं, यथा१. दृष्टि के विकार से होने वाली क्रिया, २. स्पर्श के विकार से होने वाली क्रिया, ३. बाहर के निमित्त से होने वाली क्रिया, ४. समूह से होने वाली क्रिया, ५. अपने हाथ से होने वाली क्रिया। दं. १-२४. इसी प्रकार नैरयिकों से वैमानिकों पर्यन्त पांचों क्रियाएं
जाननी चाहिए। २१. चौबीसदंडकों में नैसृष्टिकी आदि पांच क्रियाएं
पांच क्रियाएं कही गई हैं, यथा
१. विया. स.८, उ.४,सु.२