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द्रव्यानुयोग-(२) प्र. ५. भंते ! पद्मलेश्या का आस्वाद कैसा कहा गया है? उ. गौतम ! चन्द्रप्रभा मद्य, मणिशलाका मद्य, श्रेष्ठ सीधू मद्य,
श्रेष्ठ वारुणी मद्य, पत्रासव, पुष्पासव, फलासव, चोयासव, आसव,मधु, मेर, कापिशायन,खजूरसार, द्राक्षासार, सुपक्व इक्षुरस, आठ पुटों से निर्मित मद्य, जामुन का सिरका, प्रसन्ना मदिरा जो आस्वादनीय, जो मुख माधुर्यकारिणी हो, जो पीने के बाद कुछ कटुक तीक्ष्ण हो, नेत्रों को लाल करने वाली उत्कृष्ट मादक प्रशस्त वर्ण यावत् स्पर्श से युक्त, आस्वाद करने योग्य विशेष रूप से आस्वादन करने योग्य, प्रणिनीय, वृद्धिकारक, उद्दीपक, दर्पजनक, मदजनक तथा सभी इन्द्रियों और शरीर को आह्लादजनक हो ऐसा पद्मलेश्या का आस्वाद है।
उकोमणी ईसी मसला मासलाालया इवा
( ८५० ।।
प. ५. पम्हलेस्साए णं भंते ! केरिसिया आसाएणं पण्णता? उ. गोयमा ! से जहाणामए चंदप्पभा इ वा, मणिसिलागा इ
वा, वरसीधू इ वा, वरवारुणी इ वा, पत्तासवे इ वा, पुष्फासवे इवा, फलासवे इवा, चोयासवे इवा,आसवे इ वा, मधू इवा, मेरए इ वा, कविसाणए इ वा, खज्जुरसारए इवा, मुद्दियासारए इवा, सुपक्कखोयरसे इ वा, अट्ठपिट्ठणिट्ठिया इवा, जंबूफलकालिया इवा, वरपसण्णा इ वा, आसला मासला पेसला ईसी ओट्ठावलंबिणी ईसी वोच्छेयकडुई ईसी तंबच्छिकरणी उक्कोसमयपत्ता वण्णेणं उववेया जाव फासेणं उववेया आसायणिज्जा, वीसायणिज्जा, पीणणिज्जा, विहंणिज्जा, दीवणिज्जा, दप्पणिज्जा, मयणिज्जा,
सबिंदिय गायपल्हायणिज्जा। प. भवेयारूवा? उ. गोयमा ! णो इणढे समढे। पम्हलेस्सा णं एत्तो इछतरिया चेव जाव मणामतरिया चेव
आसाएणं पण्णत्ता। प. ६.सुक्कलेस्सा णं भंते ! केरिसिया आसाएणं पण्णत्ता? उ. गोयमा ! से जहाणामए गुले इ वा, खंडे इ वा, सक्करा इ
वा, मच्छंडिया इ वा, पप्पडमोदए इ वा, भिसकंदे इ वा, पुप्फुत्तरा इ वा, पउमुत्तरा इ वा, आयंसिया इ वा, सिद्धत्थिया इवा, आगासफालिओवमा इवा, अणोवमा इ
वा। प. भवेयारूवा? उ. गोयमा !णो इणढे समढे।
सुक्कलेस्सा णं एत्तो इठ्ठतरिया चेव जाव मणामतरिया चेव आसाएणं पण्णत्ता।
-पण्ण.प.१७, उ.४,सु. १२३३-१२३८ १. जह कडुयतुम्बगरसो, निम्बरसो कडुयरोहिणिरसो
वा।
एत्तो वि अणन्तगुणो,रसो उ किण्हाए नायव्वो॥ २. जह तिगडुयस्स य रसो, तिक्खो जह हस्थिपिप्पलीए
वा। एत्तो वि अणन्तगुणो, रसो उनीलाए नायव्यो ।
प्र. क्या पद्मलेश्या ऐसे आस्वाद वाली है? उ. गौतम ! यह अर्थ शक्य नहीं है।
पद्मलेश्या आस्वाद में इनसे भी अधिक इष्ट यावत् अधिक
मनोहर रस वाली कही गई है। प्र. ६. भंते ! शुक्ललेश्या का आस्वाद कैसा कहा गया है? उ. गौतम ! गुड़, खाँड़, शक्कर, मिश्री-मत्स्यण्डी, पर्पटमोदक, भिसकन्द, पुष्योत्तरा, पद्मोत्तरा, आदर्शिका, सिद्धार्थका, आकाशस्फटिकोपमा व अनुपमा नामक शर्करा जैसा शुक्ललेश्या का आस्वाद है।
प्र. क्या शुक्ललेश्या ऐसे आस्वाद वाली है? उ. गौतम ! यह अर्थ शक्य नहीं है।
शुक्ललेश्या आस्वाद में इनसे भी अधिक इष्ट यावत् अधिक मनोहर रस वाली कही गई है।
३. जह तरुणअम्बगरसो, तुवरकविट्ठस्स वावि .
जारिसओ।
एत्तो वि अणन्तगुणो, रसो उ काऊए नायव्यो॥ ४. जह परियणम्बगरसो, पक्ककविट्ठस्स वावि
जारिसओ।
एत्तो वि अनन्तगुणो,रसो उ तेऊए नायव्यो। ५. वरवारुणीए व रसो, विविहाण व आसवाण
जारिसओ। महु-मेरगस्स व रसो, एत्तो पम्हाए परएणं॥
१. जैसे कड़वे तुम्बे का रस, नीम का रस या कड़वी रोहिणी
(रोहिड़ी) का रस कड़वा होता है, उससे भी अनन्तगुणा
अधिक कड़वा कृष्णलेश्या का रस जानना चाहिए। २. त्रिकटुक (सौंठ, पिप्पल और काली मिर्च) का रस या
गजपीपल का रस जितना तीखा होता है, उससे भी अनन्तगुणा अधिक तीखा नीललेश्या का रस जानना
चाहिए। ३. कच्चा आँवला और कच्चे कपित्थ फल का रस जैसा
कसैला होता है, उससे भी अनन्तगुणा अधिक (कसैला)
कापोतलेश्या का रस जानना चाहिए। ४. पके हुए आम अथवा पके हुए कपित्थ के रस जैसा
खटमीठा होता है, उससे भी अनन्तगुणा खटमीठा रस
तेजोलेश्या का जानना चाहिए। ५. उत्तम मदिरा का रस, विविध आसवों का रस, मधु तथा
मेरेयक सिरके का जैसा (कुछ खट्टा तथा कुछ कसैला) रस होता है, उससे भी अनन्तगुणा अधिक (अम्लकसैला) रस पद्मलेश्या का जानना चाहिए।