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१. उनमें जो पूर्वोपपन्नक हैं, वे अविशुद्ध वर्ण वाले हैं।
लेश्या अध्ययन १. तत्थ णं जे ते पुव्वोववण्णगा ते णं अविसुद्ध
वण्णतरागा। २. तत्थ णं जे ते पच्छोववण्णगा ते णं
विसुद्धवण्णतरागा। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"सलेस्सा असुरकुमारा नो सव्वे समवण्णा।" एवं लेस्साए वि।अवसेसं जहा नेरइयाणं।
२. उनमें से जो पश्चादुपपन्नक हैं, वे विशुद्ध वर्ण वाले हैं।
दं.३-११ एवं जाव थणियकुमारा दं. १२ सलेस्सा पुढविकाइया आहार-कम्म-वण्ण-लेस्साई
जहा नेरइया। प. सलेस्सा पुढविकाइया णं भंते ! सव्वे समवेयणा? उ. हंता, गोयमा ! सव्वे समवेयणा। प. से केणढेणं भंते ! एवं वुच्चइ
"सलेस्सा पुढविकाइया सव्वे समवेयणा?" उ. गोयमा ! सलेस्सा पुढविकाइया सव्वे असण्णी
असण्णीभूयं अणिययं वेयणं वेदेति। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ
"सलेस्सा पुढविकाइया सव्वे समवेयणा।" प. सलेस्सा पुढविकाइया णं भंते ! सव्वे समकिरिया ? उ. हंता,गोयमा ! सलेस्सा पुढविकाइया सव्वे समकिरिया। प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ
"सलेस्सा पुढविकाइया सव्वे समकिरिया ?" उ. गोयमा ! सलेस्सा पुढविकाइया सव्वे माईमिच्छदिट्ठिी
तेसिं णियइयाओ पंचकिरियाओ कज्जति,तं जहा१. आरंभिया जाव २. मिच्छादसणवत्तिया। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"सलेस्सा पुढवीकाइया सव्वे समकिरिया।" समाउए जहा नेरइया। दं.१३-१९ एवं जाव चउरिंदिया।
इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"सभी सलेश्य असुरकुमार समान वर्ण वाले नहीं हैं।" इसी प्रकार लेश्याओं के सम्बन्ध में भी कहना चाहिए, शेष कथन नैरयिकों के समान है। दं.३-११ इसी प्रकार स्तनितकुमार पर्यन्त जानना चाहिए। दं. १२ सलेश्य पृथ्वीकायिकों के आहार, कर्म, वर्ण और
लेश्या के विषय में नैरयिकों के समान कहना चाहिए। प्र. भंते ! क्या सभी सलेश्य पृथ्वीकायिक समान वेदना वाले हैं? उ. हां, गौतम ! सभी समान वेदना वाले हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि___“सभी सलेश्य पृथ्वीकायिक समान वेदना वाले हैं ?" उ. गौतम ! सभी सलेश्य पृथ्वीकायिक असंज्ञी हैं और असंज्ञीभूत
होकर मूर्छित अवस्था में वेदना वेदते हैं। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि
"सभी सलेश्य पृथ्वीकायिक समान वेदना वाले हैं।" प्र. भंते ! क्या सभी सलेश्य पृथ्वीकायिक समान क्रिया वाले हैं ? उ. हां, गौतम ! सभी सलेश्य पृथ्वीकायिक समान क्रिया वाले हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि___ “सभी सलेश्य पृथ्वीकायिक समान क्रिया वाले हैं ?" उ. गौतम ! सभी सलेश्य पृथ्वीकायिक मायी-मिथ्यादृष्टि होने से
वे नियमतः पांच क्रियाएं करते हैं, यथा१. आरम्भिकी यावत् ५. मिथ्यादर्शनप्रत्यया। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"सभी सलेश्य पृथ्वीकायिक समान क्रिया वाले हैं।" समायुष्क का कथन नैरयिकों के समान करना चाहिये। दं. १३-१९ इसी प्रकार चतुरिन्द्रियों तक सात द्वार कहने चाहिए। दं.२० सलेश्य पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों के सभी द्वारों का कथन नैरयिकों के समान समझना चाहिए। विशेष-क्रियाओं में भिन्नता है। प्र. भंते ! सभी सलेश्य पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक क्या समान क्रिया
वाले हैं? उ. गौतम ! यह अर्थ शक्य नहीं है। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि
"सभी सलेश्य पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक समान क्रिया वाले
नहीं हैं?" उ. गौतम ! सलेश्य पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक तीन प्रकार के कहे
गये हैं, यथा१. सम्यग्दृष्टि, २. मिथ्यादृष्टि,
दं.२० सलेस्सा पंचेंदियतिरिक्खजोणिया जहाणेरइया।
णवर-णाणस्तं किरियासु। प. सलेस्सा पंचेंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते ! सव्वे
समकिरिया? उ. गोयमा ! णो इणढे समठे। प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ
"पंचेंदियतिरिक्खजोणिया णो सव्वे समकिरिया?"
उ. गोयमा ! सलेस्सा पंचेंदियतिरिक्खजोणिया तिविहा
पण्णत्ता,तं जहा१. सम्मद्दिट्ठी, २. मिच्छद्दिट्ठी,