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लेश्या अध्ययन उ. गोयमा ! सलेस्सा णेरइया दुविहा पण्णत्ता,तं जहा
१. पुव्वोववन्नगा य, २. पच्छोववन्नगा य। १. तत्थ णं जे ते पुव्वोववन्नगा तेणं अप्पकम्मतरागा। २. तत्थ णं जेते पच्छोववन्नगा ते णं महाकम्मतरागा। से तेणढेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ
"सलेस्सा णेरइया णो सव्वे समकम्मा।" प. ३.सलेस्सा णं भंते !णेरइया सव्वे समवण्णा? उ. गोयमा ! णो इणढे समठे। प. से केणढेणं भंते ! एवं वुच्चइ
"सलेस्सा णेरइया णो सव्वे समवण्णा? उ. गोयमा ! सलेस्सा णेरइया दुविहा पण्णत्ता,तं जहा
१. पुव्योववन्नगा य, २. पच्छोववनगा य। १. तत्थ णं जे ते पुव्योववन्नगा तेणं विसुद्धवण्ण तरागा, २. तत्थ णं जे ते पच्छोववन्नगा ते णं
अविसुद्धवण्णतरागा से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"सलेस्सा णेरइया णो सव्वे समवण्णा।" ४. एवं जहेव वण्णेण भणिया तहेव सलेस्सासु वि
जे पुव्योवनगा ते णं विसुद्धलेस्सतरागा, जे पच्छोववनगा तेणं अविसुखलेस्सतरागा।
८५९ उ. गौतम ! सलेश्य नारक दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. पूर्वोपपन्नक, २. पश्चादुपपन्नक। १. उनमें जो पूर्वोपपत्रक हैं, वे अल्प कर्म वाले हैं, २. उनमें जो पश्चादुपपन्नक हैं, वे महाकर्म वाले हैं, इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि
"सभी सलेश्य नारक समान कर्म वाले नहीं हैं।" प्र. ३. भंते ! क्या सभी सलेश्य नारक समान वर्ण वाले हैं ? उ. गौतम ! यह अर्थ शक्य नहीं है। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि
"सभी सलेश्य नारक समान वर्ण वाले नहीं हैं ?" उ. गौतम ! सलेश्य नारक दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. पूर्वोपपन्नक, २. पश्चादुपपन्नक। १. उनमें से जो पूर्वोपपन्नक हैं, वे विशुद्ध वर्ण वाले हैं, २. उनमें से जो पश्चादुपपन्नक हैं, वे अविशुद्ध वर्ण वाले हैं।
प. ५.सलेस्सा णं भंते !णेरइया सव्वे समवेयणा? उ. गोयमा !णो इणढे समझें। प. से केणढेणं भंते ! एवं वुच्चइ___ "सलेस्सा णेरइया णो सव्वे समवेयणा?" उ. गोयमा ! सलेस्सा णेरइया दुविहा पण्णत्ता,तं जहा
१. सण्णिभूया य, २. असण्णिभूया य। १. तत्थ णं जेते सण्णिभूया ते णं महावेयणतरागा। २. तत्थ णं जे ते असण्णिभूया ते णं अप्पवेयणतरागा। से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ
"सलेस्सा णेरइया णो सव्वे समवेयणा।" प. ६. सलेस्सा णं भंते !णेरइया सव्वे समकिरिया? उ. गोयमा !णो इणठे समठे। प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ
“सलेस्सा णेरइया णो सव्वे समकिरिया ?" उ. गोयमा ! सलेस्सा णेरइया तिविहा पण्णत्ता,तं जहा
१. सम्मद्दिट्ठी, २. मिच्छद्दिट्ठी, ३. सम्मामिच्छट्ठिी । १. तत्थ णं जे ते सम्मद्दिट्ठी ते सि णं चत्तारि
किरियाओ कज्जति,तं जहा१. आरंभिया, २. परिग्गहिया, ३. मायावत्तिया, ४. अपच्चक्खाणकिरिया।
इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"सभी सलेश्य नारक समान वर्ण वाले नहीं हैं। ४. इसी प्रकार जैसा वर्ण के लिये कहा वैसा ही लेश्याओं
के लिये भी कहना चाहिये कि उनमें जो पूर्वोपपन्नक है, वे विशुद्ध लेश्या वाले हैं जो पश्चादुपपन्नक हैं वे अविशुद्ध
लेश्या वाले हैं। प्र. ५. भंते ! क्या सभी सलेश्य नारक समान वेदना वाले हैं ? उ. गौतम ! यह अर्थ शक्य नहीं हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि
"सभी सलेश्य नारक समान वेदना वाले नहीं है?" उ. गौतम ! सलेश्य नारक दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. संज्ञीभूत,
२. असंज्ञीभूत। १. उनमें जो संज्ञीभूत हैं, वे महान् वेदना वाले हैं, २. उनमें जो असंज्ञीभूत हैं, वे अल्प वेदना वाले हैं। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि
"सभी सलेश्य नारक समान वेदना वाले नहीं हैं।" प्र. ६.भंते ! क्या सभी सलेश्य नारक समान क्रिया वाले हैं? उ. गौतम ! यह अर्थ शक्य नहीं है। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि
"सभी सलेश्य नारक समान क्रिया वाले नहीं है?" उ. गौतम ! सलेश्य नारक तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. सम्यग्दृष्टि, २. मिथ्यादृष्टि, ३. सम्यग्मिथ्यादृष्टि। १. उनमें जो सम्यग्दृष्टि हैं, वे चार क्रियाएं करते हैं, यथा
१. आरम्भिकी, ३. मायाप्रत्यया,
२. पारिग्रहिकी, ४. अप्रत्याख्यानक्रिया।