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लेश्या अध्ययन
एवं एएणं अभिलावेणं जहेव लेस्साओ भावियाओ तहेव णेयव्वं जाव चरिंदिया।
८९३ इसी प्रकार चतुरिन्द्रिय जीवों तक जिनमें जितनी लेश्याएं जिस क्रम से कही गई हैं उसी क्रम से इस आलापक के अनुसार अल्प ऋद्धि या महाऋद्धि जान लेनी चाहिए। इसी प्रकार सम्मर्छिम और गर्भजपंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों तथा तिर्यञ्चयोनिक स्त्रियों से तेजोलेश्या वाले वैमानिक देव अल्प ऋद्धि वाले हैं और शुक्ललेश्या वाले वैमानिक देव महाऋद्धि वाले हैं पर्यन्त सब कथन पूर्ववत् करना चाहिए।
पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं तिरिक्खजोणिणीण सम्मुच्छिमाणं गब्भवक्कंतियाण य सव्वेसिं भाणियव्वं जाव अप्पिड्ढिया वेमाणिया देवा तेउलेस्सा, सव्वमहिड्ढिया वेमाणिया देवा सुक्कलेस्सा।
-पण्ण. प. १७, उ.२,सु.११९१-११९७ ५१. सलेस्स दीवकुमाराइणं इड्ढि अप्पबहुत्तंप. एएसि णं भंते ! दीवकुमाराणं कण्हलेस्साणं जाव
तेउलेस्साण य कयरे कयरेहिंतो अप्पिड्ढिया वा
महिड्ढिया वा? उ. गोयमा !
१. कण्हलेस्सेहिंतो नीललेस्सा महिड्ढिया, २. नीललेस्सेहिंतो काउलेस्सा महिड्ढिया,
५१. सलेश्य द्वीपकुमारादि की ऋद्धि का अल्पबहुत्वप्र. भंते ! इन कृष्णलेश्या वाले यावत् तेजोलेश्या वाले द्वीपकुमारों
में से कौन किससे अल्पऋद्धि वाले या महाऋद्धि वाले है ?
३. काउलेस्सेहिंतो तेउलेस्सा महिड्ढिया,
४. सव्वप्पिड्ढिया कण्हलेस्सा सव्वमहिड्ढिया तेउलेस्सा।
-विया. स. १६, उ.११,सु.४ उदछि दिसा-थणियकुमाराण य एवं चेव।
-विया.स.१६,उ.१२-१४ नाग-सुवण्ण-विज्जु-वाउ-अग्गिकुमाराण य एवं चेव।
'-विया.स.१७, उ.१३-१७
उ. गौतम !
१. कृष्णलेश्या वालों से नीललेश्या वाले द्वीपकुमार महर्द्धिक हैं, २. नीललेश्या वालों से कापोतलेश्या वाले द्वीपकुमार
महर्द्धिक हैं, ३. कापोतलेश्या वालों से तेजोलेश्या वाले द्वीपकुमार
महर्द्धिक हैं, ४. सबसे अल्पऋद्धि वाले कृष्णलेश्यी हैं, सबसे महाऋद्धि
वाले तेजोलेश्यी हैं। उदधिकुमार, दिशाकुमार और स्तनित कुमारों की अल्पऋद्धि महाऋद्धि का अल्पबहुत्व इसी प्रकार है। नागकुमार, सुवर्णकुमार, विद्युत्कुमार, वायुकुमार और अग्निकुमारों की अल्पऋद्धि महाऋद्धि का अल्पबहुत्व इसी
प्रकार है। ५२.लेश्याओं के स्थान
प्र. कृष्णलेश्या के कितने स्थान कहे गये हैं? उ. गौतम ! कृष्णलेश्या के असंख्य स्थान कहे गये हैं।
इसी प्रकार शुक्ललेश्या पर्यन्त असंख्य स्थान जानने चाहिए। असंख्यात अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी काल के जितने समय या असंख्यात लोकों के जितने आकाश प्रदेश हैं उतने
लेश्याओं के स्थान होते हैं। ५३. लेश्या के स्थानों में अल्पबहुत्वप्र. भंते ! इन कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या के जघन्य स्थानों में
से द्रव्य की अपेक्षा, प्रदेशों की अपेक्षा और द्रव्य तथा प्रदेशों की अपेक्षा से कौन किससे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं?
५२. लेस्साणं ठाणा
प. केवइया णं भंते ! कण्हलेस्सट्ठाणा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! असंखेज्जा कण्हलेस्सट्ठाणा पण्णत्ता।
एवं जाव सुक्कलेस्सा। -पण्ण. प. १७, उ.४, सु. १२४६ असंखेज्जा णोसप्पिणीण उस्सप्पिणीण जे समया। संखाईया लोगा लेसाणं हुंति ठाणाई ॥
-उत्त. अ.३४, गा.३३ ५३. लेस्सट्ठाणाणं अप्प-बहुत्तंप. एएसिं णं भंते ! कण्हलेस्सट्ठाणाणं जाव
सुक्कलेस्सट्ठाणाण य जहण्णगाणं दव्वट्ठयाए, पएसट्ठयाए, दव्वट्ठपएसट्ठयाए कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा?
दव्वट्ठयाएउ. गोयमा ! सव्वत्थोवा जहण्णगा काउलेस्सट्ठाणा
दव्वट्ठयाए, जहण्णगा णीललेस्सट्ठाणा दव्वट्ठयाए असंखेज्जगुणा,
द्रव्य की अपेक्षा सेउ. गौतम ! द्रव्य की अपेक्षा सबसे अल्प जघन्य कापोतलेश्या के
स्थान हैं, (उनसे) नीललेश्या के जघन्य स्थान द्रव्य की अपेक्षा असंख्यातगुणे हैं, (उनसे) कृष्णलेश्या के जघन्य स्थान द्रव्य की अपेक्षा असंख्यातगुणे हैं, (उनसे) तेजोलेश्या के जघन्य स्थान द्रव्य की अपेक्षा
असंख्यातगुणे हैं, ख. विया.स.१६, उ.११,सु.४
जहण्णगा कण्हलेस्सट्ठाणा दव्वट्ठयाए असंखेज्जगुणा,
जहण्णगा तेउलेस्सट्ठाणा दव्वट्ठयाए असंखेज्जगुणा,
१. क. विया.स.१,उ.२, सु.१३