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( द्रव्यानुयोग-(२)) उ. गौतम ! अंकरल, शंख, चन्द्र, कुन्द पुष्प, उदक, जलकण,
दधि, दधिपिंड, दुग्ध, दुग्धझाग, शुष्क फली, मयूरपिच्छमिंजीका, धात रजत पट्ट, शारदीय मेघ, कुमुदपत्र, पुण्डरीक पत्र, शालिपिष्ट राशि, कुटज पुष्प राशि, सिंदुवार पुष्प माला, श्वेत अशोक, श्वेत कनेर, श्वेत बन्धुजीवक जैसे वर्ण वाली शुक्ललेश्या है।
उ. गोयमा ! से जहाणामए अंके इवा, संखे इवा, चंदे इ वा,
कुंदे इवा, दगे इवा, दगरए इवा, दही इ वा, दहिघणे इ वा, खीरे इ वा, खीरपूरे इ वा, सुक्कछिवाडिया इ वा, पेहुणमिंजिया इ वा, धंतधोयरुप्पपट्टे इ वा, सारइयबलाहए इवा, कुमुद्दले इ वा, पोंडरियदले इ वा, सालिपिट्ठरासी इ वा, कुडगपुप्फरासी इ वा, सिंदुवारवरमल्लदामे इ वा, सेयासोए इवा, सेयकणवीरे
इवा, सेयबंधुजीवए इवा। प. भवेयारूवा? उ. गोयमा !णो इणढे समढे।
सुक्कलेस्सा णं एत्तो इद्रुतरिया चेव जाव मणामतरिया चेव वण्णेणं पण्णत्ता।
-पण्ण. प.१७ उ.४,सु. १२२६-१२३१ १. जीमूयनिद्धसंकासा, गवलरिट्ठगसन्निभा।
खंजणंजण-नयणनिभा, किण्हलेसा उ वण्णओ॥
प्र. क्या शुक्ललेश्या ऐसे वर्ण वाली है? उ. गौतम ! यह अर्थ शक्य नहीं है।
शुक्ललेश्या इनसे भी अधिक इष्ट यावत् अधिक मनोहर वर्ण वाली कही गई है।
२. नीलाऽसोगसंकासा, चासपिच्छसमप्पभा।
वेरुलिय निद्धसंकासा, नीललेसा उ वण्णओ॥
३. अयसीपुप्फसंकासा, कोइलच्छदसन्निभा।
पारेवयगीवनिभा, काउलेसा उ वण्णओ॥
४. हिंगुलुयघायउसंकासा, तरुणाइच्चसन्निभा।
सुयतुण्ड-पईवनिभा, तेउलेसा उ वण्णओ॥ ५. हरियालभेयसंकासा, हलिद्दाभेयसन्निभा।
सणासणकुसुमनिभा, पम्हलेसा उ वण्णओ॥
१. कृष्णलेश्या वर्ण की अपेक्षा से स्निग्ध काले मेघ के समान,
भैंस के सींग एवं रिष्टक (अरीठे) के सदृश अथवा खंजन (गाड़ी के ऑघन), अंजन (काजल या सुरमा) एवं आँख
के तारे (कीकी) के समान काली है। २. नीललेश्या वर्ण की अपेक्षा से नीले अशोक वृक्ष के समान,
चास-पक्षी की पाँख के समान या स्निग्ध वैयरल के
समान अतिनील है। ३. कापोतलेश्या वर्ण की अपेक्षा से अलसी के फूल जैसी,
कोयल की पाँख जैसी तथा कबूतर की गर्दन जैसी कुछ
काली और कुछ लाल है। ४. तेजोलेश्या वर्ण की अपेक्षा से हींगलू तथा धातु-गेरु के
समान, तरुण सूर्य के समान तथा तोते की चोंच या जलते
हुए दीपक के समान लाल रंग की है। ५. पद्मलेश्या वर्ण की अपेक्षा से हरताल के टुकड़े जैसी,
हल्दी के रंग जैसी तथा सण और असन के फूल जैसी
पीली है। ६. शुक्ललेश्या वर्ण की अपेक्षा से शंख, अंकरत्न एवं कुन्द
के फूल के समान है, दूध की धारा के समान तथा रजत
और हार (मोती की माला) के समान सफेद है। ९. लेश्याओं की गन्ध
प्र. भन्ते ! दुर्गन्ध वाली कितनी लेश्याएँ कही गई हैं ? उ. गौतम ! तीन लेश्याएँ दुर्गन्ध वाली कही गई हैं,
यथा
१. कृष्णलेश्या, २. नीललेश्या, ३. कापोतलेश्या। प्र. भंते ! कितनी लेश्याएँ सुगन्ध वाली कही गई हैं ? उ. गौतम ! तीन लेश्याएँ सुगन्ध वाली कही गई हैं,
यथा१. तेजोलेश्या, २. पद्मलेश्या, ३. शुक्ललेश्या।
६. संखंककुन्दसंकासा,खीरपूरसमप्पभा। रययहारसंकासा, सुक्कलेसा उ वण्णो॥
-उत्त.अ.३४,गा.४-९ ९. लेस्साणं गंधा
प. कइणं भन्ते ! लेस्साओ दुब्मिगंधाओ पण्णत्ताओ? उ. गोयमा ! तओ लेस्साओ दुब्भिगंधाओ पण्णत्ताओ,
तंजहा
१.किण्हलेस्सा,२.णीललेस्सा,३. काउलेस्सा। प. कइणं भंते ! लेस्साओ सुब्मिगंधाओ पण्णत्ताओ? उ. गोयमा ! तओ लेस्साओ सुब्मिगंधाओ पण्णत्ताओ,
तंजहा१.तेउलेस्सा, २. पम्हलेस्सा, ३. सुक्कलेस्सा।
-पण्ण.प.१७, उ.४,सु.१२३९-१२४० जह गोमडस्स गन्धो, सुणगमडगस्स व जहा अहिमडस्स। एत्तो वि अणन्तगुणो, लेसाणं अप्पसत्थाणं॥
मरी हुई गाय, मरे हुए कुत्ते और मरे हुए साँप की जैसी दुर्गन्ध होती है, उससे भी अनन्तगुणी अधिक दुर्गन्ध तीनों अप्रशस्त (कृष्ण, नील, कापोत) लेश्याओं की होती है।
१. ठाणं अ.३,उ.४,सु.२२१