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एवं जाव सुक्कलेस्सा। -विया. स. १, उ. ९, सु. १० (१) ७. सरुवी सकम्मलेस्स पुग्गलाणं ओभासणाइ
प. अस्थि णं भंते ! सरूवी सकम्मलेस्सा पोग्गला ओभासेंति,
उज्जोएंति,तवेंति, पभासेंति?
( द्रव्यानुयोग-(२)) इसी प्रकार शुक्ललेश्या पर्यन्त जानना चाहिए। ७. सरूपी सकर्म लेश्याओं के पुद्गलों का अवभासन (प्रकाशित
होना)आदिप्र. भन्ते ! क्या सरूपी (वर्णादियुक्त) सकर्म लेश्याओं के पुद्गल
स्कन्ध होते हैं वे अवभाषित होते हैं, उद्योतित होते हैं, तपते
हैं या प्रभासित होते हैं? उ. हाँ, गौतम ! वे (अवभासित यावत् प्रभासित) होते हैं। प्र. भंते ! वे सरूपी कर्मलेश्या के पुद्गल कौन से हैं जो अवभासित
यावत् प्रभासित होते हैं? उ. गौतम ! चन्द्रमा और सूर्य देवों के विमानों से बाहर निकली
हुई जो लेश्याएँ हैं वे अवभासित यावत् प्रभासित होती हैं।
उ. हंता, गोयमा ! अत्थि। प. कयरे णं भंते ! सरूवी सकम्मलेस्सा पोग्गला ओभासेंति
जाव पभासेंति? उ. गोयमा ! जाओ इमाओ चंदिम सूरियाणं देवाणं
विमाणेहिंतो लेस्साओ बहिया अभिनिस्सडाओ ओभासेंति जाव पभासेंति। एएणं गोयमा !ते सरूवी सकम्मलेस्सा पोग्गला ओभासेंति जाव पभासेंति। -विया.स. १४, उ.९, सु.२-३
हे गौतम ! ये ही वे चन्द्र, सूर्य निर्गत तेजोलेश्याएँ हैं, जिनसे सरूपी कर्मलेश्या के पुद्गल स्कंध अवभासित यावत् प्रभासित
होते हैं। ८. लेश्याओं के वर्ण
प्र. भन्ते ! छः लेश्याएँ कितने वर्णों से वर्णित हैं ? उ. गौतम! पाँच वर्णों से वर्णित हैं, यथा
१. कृष्णलेश्या कृष्ण वर्ण से वर्णित है। २. नीललेश्या नील वर्ण से वर्णित है। ३. कापोतलेश्या कृष्ण-रक्त मिश्रित वर्ण से वर्णित है।
४. तेजोलेश्या रक्त (लाल) वर्ण से वर्णित है। • ५. पद्मलेश्या पीत वर्ण से वर्णित है।
६. शुक्ललेश्या श्वेत वर्ण से वर्णित है।
८. लेस्साणं वण्णा
प. एयाओणं भंते !छल्लेसाओ कइसु वण्णेसु साहिति? उ. गोयमा ! पंचसु वण्णेसु साहिति,तं जहा
१. कण्हलेस्सा कालएणं वण्णेणं साहिज्जइ। २. णीललेस्सा णीलएणं वण्णेणं साहिज्जइ। ३. काउलेस्सा काल-लोहिएणं वण्णेणं साहिज्जइ। ४. तेउलेस्सा लोहिएणं वण्णेणं साहिज्जइ। ५. पम्हलेस्सा हालिद्दएणं वण्णेणं साहिज्जइ। ६. सुक्कलेस्सा सुक्किलएणं वण्णेणं साहिज्जइ।
-पण्ण.प. १७, उ.४, सु.१२३२ प. १.कण्हलेस्सा णं भंते ! वण्णेणं केरिसिया पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जे जहाणामए जीमूए इवा,अंजणे इवा, खंजणे
इ वा, कज्जले इ वा, गवले इ वा, गवलवलए इ वा, जंबूफलए इवा, अद्दारिट्ठाए इवा, परपुढे इवा, भमरे इ वा, भमरावली इ वा, गयकलभे इ वा, किण्हकेसे इ वा, आगासथिग्गले इवा, किण्हासोए इ वा, किण्हकणवीरए इवा, किण्हबंधुजीवए इवा। प. भवेयारूवा? उ. गोयमा ! णो इणढे समढे। किण्हलेस्सा णं एत्तो अणिट्टतरिया चेव, अकंततरिया चेव, अप्पियतरिया चेव, अमणुण्णतरिया चेव,
अमणामतरिया चेव वण्णेणं पण्णत्ता। प. २.णीललेस्सा णं भंते ! केरिसिया वण्णेणं पण्णत्ता? उ. गोयमा ! से जहाणामए भिंगे इवा, भिंगपत्ते इ वा, चासे इ
वा, चासपिच्छे इवा, सुए इवा, सुयपिच्छे इ वा, सामा इ वा, वणराइ इ वा, उच्चंतए इ वा, पारेवयगीवा इ वा, मोरगीवा इवा, हलधरवंसणे इवा, अयसिकुसुमए इवा, बाणकुसुमए इ वा, अंजण केसियाकुसुमए इ वा, णीलुप्पले इ वा, नीलासोए इ वा, णीलकणवीरए इ वा, णीलबंधुजीवए इ वा।
प्र. १. भन्ते ! कृष्णलेश्या कैसे वर्ण वाली कही गई है? उ. गौतम ! जीमूत (काली मेघमाला), अंजन (सुरमा), खंजन
(गाड़ी की धुरी के भीतर लगा हुआ काला कीट), काजल, गवल (भैंस का सींग), गवल वलय, जामुन के फल, गीले अरीठे, परपुष्ट (कोयल), भ्रमर, भ्रमरों की पंक्ति, हाथी के बच्चे, काले केश, आकाश खंड, काले अशोक, काले कनेर,
काले बन्धुजीवक जैसे वर्ण वाली कृष्णलेश्या है। प्र. क्या कृष्णलेश्या ऐसे वर्ण वाली है? उ. गौतम ! यह अर्थ शक्य नहीं है।
कृष्णलेश्या इनसे भी अधिक अनिष्ट, अकान्त, अप्रिय, अमनोज्ञ और अमनोहर वर्ण वाली कही गई है।
प्र. २. भन्ते ! नीललेश्या कैसे वर्ण वाली कही गई है? उ. गौतम ! भृग, भृग की पांख (पत्र), नीलकंठ, नीलकंठ की
पाँख, तोता, तोते की पाँख, श्यामा (सांवाधान्य विशेष), वनराजि, दन्तराग, कपोत ग्रीवा, मयूर ग्रीवा, बलदेव वस्त्र, अलसी पुष्प, बाण पुष्प, अंजनकेसरि पुष्प, नीलकमल, नीलअशोक, नीलकनेर, नीलबन्धुजीवक वृक्ष जैसे वर्ण वाली नीललेश्या है।