________________
८२८
सामाणियत्ताए उबवज्जेज्जा, तायत्तीसगत्ताए उदयजेज्जा, लोगपालत्ताए उववज्जेज्जा, अहमंदत्ताए उववज्जेज्जा ?
उ. गोयमा ! अविराहणं पडुच्च - इंदत्ताए वा उववज्जेज्जा जाव अहमिंदत्ताए वा उदयजेज्जा ।
विराहणं पडुच्च-अण्णयरेसु उववज्जेज्जा ।
एवं छेदोवट्ठावणिए वि ।
प. परिहारविसुद्धियसंजए णं भन्ते ! वेमाणि सु उववज्जमाणे, किं इंदत्ताए उदयजेज्जा जाय अहमिंदत्ताए उववज्जेज्जा ? उ. गोयमा अविराहणं पडुच्चइंदत्ताए वा उववज्जेज्जा, सामाणियत्ताए वा उववज्जेज्जा, तायत्तीसगत्ताए वा उववज्जेज्जा, लोगपालताए वा उववज्जेज्जा, नो अहमिंदत्ताए उबवज्जेज्जा । विराहणं पडुच्च - अण्णयरेसु उववज्जेज्जा ।
प. सुहुमसंपरायसंजए णं भन्ते ! वैमाणिएस उववजमाणे कि इंदत्ताए उववज्जेज्जा जाब अहमिंदत्ताए उववज्जेज्जा ?
उ. गोयमा ! अविराहणं पडुच्च-नो इंदत्ताए उपयजेज्जा जाय नो लोगपालताए उदयजेज्जा ।
अहमिंदत्ताए उववज्जेज्जा ।
विराहणं पडुच्च- अण्णयरेसु उबवज्जेज्जा ।
अक्खायसंजए वि एवं चैव ।
प. सामाइयसंजयस्स णं भन्ते ! वेमाणिएसु उववज्जमाणस्स hari कालं ठिई पण्णत्ता ?
उ. गोयमा ! जहण्णेणं-दो पलिओवमाइं,
उक्कोसणं-तेत्तीस सागरोबमाई । एवं छेदोवङ्गावणिए वि
एवं परिहारविसुद्धिए वि ।
णवरं-उक्कोसेणं अट्ठारस सागरोवमाई । एवं सुहुमसंपराए वि ।
णवरं अजहन्नमणुकोसेणं तेत्तीस सागरोबमाई। अहक्खायसंजयस्स जहा सुहुमसंपरायसंजयस्स ।
१४. संजम-दारे
प. सामाइयसंजयस्स णं भन्ते केवइया संजमठाणा
पण्णत्ता ?
उ. गोवमा ! असंखेज्जा संजमठाणा पण्णत्ता।
द्रव्यानुयोग - (२)
सामानिक देव रूप में उत्पन्न होता है, त्रायस्त्रिशक देव रूप में उत्पन्न होता है, लोकपाल रूप में उत्पन्न होता है,
अहमिन्द्र रूप में उत्पन्न होता है ?
उ. गौतम ! वह यदि अविराधक हो तो - इन्द्र रूप में उत्पन्न होता है यावत् अहमिन्द्र रूप में उत्पन्न होता है।
विराधक हो तो इन पदवियों के सिवाय अन्य देव रूप में उत्पन्न होता है।
इसी प्रकार छेदोपस्थापनीय संयत भी जानना चाहिए।
प्र. भन्ते परिहारविशुद्धिकसंगत वैमानिकों में उत्पन्न होता है तो क्या इन्द्र रूप में उत्पन्न होता है यावत् अहमिन्द्र रूप में उत्पन्न होता है ?
उ. गौतम ! यदि वह अविराधक हो तोइन्द्र रूप में उत्पन्न होता है,
सामानिक देव रूप में उत्पन्न होता है, त्रास्त्रशक देव रूप में उत्पन्न होता है, लोकपाल रूप में उत्पन्न होता है किन्तु
अहमिन्द्र रूप में उत्पन्न नहीं होता है।
यदि विराधक हो तो इन पदवियों के सिवाय अन्य देव रूप में उत्पन्न होता है।
प्र. भन्ते ! सूक्ष्मसम्पराय संयत वैमानिकों में उत्पन्न होता हुआ क्या इन्द्र रूप में उत्पन्न होता है यावत् अहमिन्द्र रूप में उत्पन्न होता है ?
उ. गौतम ! यदि वह अविराधक हो तो इन्द्र रूप में उत्पन्न नहीं होता है यावत् लोकपाल रूप में भी उत्पन्न नहीं होता है। किन्तु अहमिन्द्र रूप में ही उत्पन्न होता है।
विराधक हो तो इन पदवियों के अतिरिक्त अन्य देव रूप में उत्पन्न होता है।
इसी प्रकार यथाख्यात संयत भी जानना चाहिए।
प्र. भन्ते ! वैमानिक में उत्पन्न हुए सामायिक संयत की कितने काल की स्थिति कही गई है ?
उ. गौतम ! जघन्य - दो पल्योपम की,
उत्कृष्ट - तेतीस सागरोपम की।
इसी प्रकार छेदोपस्थापनीय संयत की स्थिति जाननी चाहिए। इसी प्रकार परिहारविशुद्धक संयत की स्थिति जाननी चाहिए। विशेष - उत्कृष्ट अठारह सागरोपम की स्थिति है। इसी प्रकार सूक्ष्म संपराय संयत की स्थिति जाननी चाहिए। विशेष- अजघन्य अनुकृष्ट तेतीस सागरोपम की स्थिति है। यथाख्यातसंयत सूक्ष्म संपराय संयत के समान जानना चाहिए।
१४.
संयम-द्वार
प्र. भन्ते ! सामायिक संयत के कितने संयम स्थान कहे गए हैं ?
उ. गौतम ! असंख्य संयम स्थान कहे गए हैं।