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एवं जाव सुहुमसंपरायसंजए ।
प. अहवखायसंजए णं भंते! कइ कम्मपगडीओ वेएड ?
उ. गोयमा ! सत्तविह वेयए वा, चउव्विह वेयए वा ।
सत्त वेएमाणे मोहणिज्जवज्जाओ सत्त कम्मपगडीओ वेएइ ।
चत्तारि वेएमाणे- १. वेयणिज्ज, २. आउय, ३. नाम, ४. गोयाओ चत्तारि कम्मपगडीओ वेएइ ।
२३. कम्मोदीरण- दारं
प. सामाइयसंजए णं भंते! कइ कम्मपगडीओ उदीरेइ ?
उ. गोयमा ! छव्विह उदीरए वा, सत्तविह उदीरए वा, अट्ठविह उदीरए वा ।
उदीरेमाणे- आउय-वेयणिज्जवज्जाओ कम्मपगडीओ उदीरेइ ।
सत्त उदीरेमाणे- आउयवज्जाओ सत्तकम्मपगडीओ उदीरेइ
छ
छ
अट्ठ उदीरेमाणे- पडिपुण्णाओ अट्ठ कम्मपगडीओ उदीरेइ ।
एवं जाव परिहारविमुद्धियसंजए।
प. सुहमसंपरायसंजए णं भंते! कइ कम्मपगडीओ उदीरेइ ?
उ. गोयमा ! छव्विह उदीरए वा, पंचविह उदीरए वा ।
छ उदीरेमाणे- आउय-वेयणिज्जवज्जाओ छ कम्मपगडीओ उदीरे |
पंच उदीरेमाणे आउय वेयणिय मोहणिज्जवज्जाओ पंच कम्मपगडीओ उदीरेइ ।
प. अहवसायसंजए णं भंते ! कइ कम्मपगडीओ उदीरेड ?
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उ. गोयमा ! पंचविह उदीरए वा दुविह उदीरए वा. अणुदीरए वा ।
पंच उदीरेमाणे आउय वेयणिय मोहणिज्जबजाओ पंच कम्मपगडीओ उदीरेड।
दो उदीरेमाणे - नामंच, गोयं च उदीरेइ
२४. उपसंपजहण दारं
प. सामाइयसंजए णं भंते! सामाइयसंजयत्तं जहमाणे किं जहड़, कि उपसंपजड ?
उ. गोयमा ! सामाइयसंजयत्तं जहइ,
द्रव्यानुयोग - (२)
इसी प्रकार सूक्ष्म संपराय संयत पर्यन्त जानना चाहिए।
प्र. भन्ते ! यथाख्यात संयत कितनी कर्म प्रकृतियों का वेदन करता है ?
उ. गौतम ! सात कर्म प्रकृतियों का वेदन करता है या चार कर्म प्रकृतियों का वेदन करता है।
२३.
प्र.
सात का वेदन करता हुआ - मोहनीय कर्म को छोड़कर सात कर्म प्रकृतियों का वेदन करता है।
चार का वेदन करता हुआ - १. वेदनीय, २. आयु, ३. नाम और ४. गोत्र - इन चार कर्म प्रकृतियों का वेदन करता है। कर्म उदीरणा-द्वार
भनो सामायिक संयत कितनी कर्म प्रकृतियों की उदीरणा करता है ?
उ. गौतम ! छः कर्म प्रकृतियों की उदीरणा करता है, सात कर्म प्रकृतियों की उदीरणा करता है, आठ कर्म प्रकृतियों की उदीरणा करता है।
छः की उदीरणा करता हुआ आयु कर्म और मोहनीय कर्म को छोड़कर शेष छः कर्म प्रकृतियों की उदीरणा करता है।
सात की उदीरणा करता हुआ आयु कर्म को छोड़कर सात कर्म प्रकृतियों की उदीरणा करता है।
आठ की उदीरणा करता हुआ-प्रतिपूर्ण आठों कर्म प्रकृतियों की उदीरणा करता है।
इसी प्रकार परिहारविशद्धिक संयत पर्यन्त जानना चाहिए।
प्र. भन्ते सूक्ष्म संपराय संयत कितनी कर्म प्रकृतियों की उदीरणा करता है ?
उ. गौतम ! छः कर्म प्रकृतियों की या पाँच कर्म प्रकृतियों की उदीरणा करता है।
छ: की उदीरणा करता हुआ आयु कर्म और वेदनीय कर्म को छोड़कर शेष छः कर्म प्रकृतियों की उदीरणा करता है। पाँच की उदीरणा करता हुआ आयु कर्म, वेदनीय कर्म और मोहनीय कर्म को छोड़कर शेष पाँच कर्म प्रकृतियों की उदीरणा करता है।
प्र. भन्ते ! यथाख्यात संयत कितनी कर्म प्रकृतियों की उदीरणा करता है ?
उ. गौतम ! पाँच कर्मों की या दो कर्मों की उदीरणा करता है। अथवा उदीरणा नहीं भी करता है।
पाँच की उदीरणा करता हुआ आयु कर्म, वेदनीय कर्म और मोहनीय कर्म को छोड़कर शेष पाँच कर्मों की उदीरणा करता है।
दो की उदीरणा करता हुआ नाम कर्म और गोत्र कर्म की उदीरणा करता है।
उपसंपत जहन-द्वार
२४.
प्र. भन्ते ! सामायिक संयत, सामायिक संयतपन को छोड़ता हुआ क्या छोड़ता है और क्या प्राप्त करता है ?
उ. गौतम ! सामायिक संयतपन को छोड़ता है,