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हेविल्लेसु तिसु वि समं-छट्ठाणवडिए, उवरिल्लेसु दोस
समंहीणे। प. सुहुमसंपरायसंजए णं भन्ते ! सामाइयसंजयस्स परट्ठाणं
सन्निगासेणं चरित्तपज्जवेहिं किं हीणे, तुल्ले, अब्भहिए? उ. गोयमा ! नो हीणे, नो तुल्ले, अब्भहिए
अणंतगुणमब्महिए। एवं छेदोवट्ठावणिय-परिहारविसुद्धिएण वि समं।
सट्ठाणे-सिय हीणे, सिय तुल्ले, सिय अब्भहिए।
जइ हीणे-अणंतगुण हीणे।
अह अब्भहिए-अणंतगुणमब्भहिए। प. सुहुमसंपरायसंजए अहक्खायसंजयस्स य परट्ठाणं
सन्निगासेणं चरित्तपज्जवेहि किं हीणे, तुल्ले, अब्भहिए? उ. गोयमा ! हीणे, नो तुल्ले, नो अब्भहिए,अणंतगुणहीणे।
द्रव्यानुयोग-(२) अर्थात् नीचे के तीनों चारित्र की अपेक्षा से-छः स्थान पतित
हैं एवं ऊपर के दो चारित्र से अनन्त गुण हीन हैं। प्र. भन्ते ! सूक्ष्म सम्पराय संयत के चारित्र पर्यव सामायिक संयत
के चारित्र पर्यवों से क्या हीन हैं, तुल्य हैं या अधिक हैं ? उ. गौतम ! न हीन हैं, न तुल्य हैं किन्तु अधिक हैं वह भी अनन्त
गुण अधिक हैं। छेदोपस्थापनीय संयत और परिहारविशुद्धिक संयत के साथ तुलना भी इसी प्रकार करनी चाहिए। स्वस्थान की अपेक्षा अर्थात् एक सूक्ष्म संपराय संयत के चारित्र पर्यव अन्य सूक्ष्म संपराय संयत के चारित्र पर्यवों से कभी हीन हैं, कभी तुल्य हैं और कभी अधिक हैं। यदि हीन हैं तो-अनन्त गुण हीन हैं।
यदि अधिक हैं तो-अनन्त गुण अधिक हैं। प्र. भन्ते ! सूक्ष्म संपराय संयत के चारित्र पर्यव यथाख्यात संयत
चारित्र पर्यवों से क्या हीन हैं, तुल्य हैं या अधिक हैं ? उ. गौतम ! हीन हैं, तुल्य नहीं हैं एवं अधिक भी नहीं हैं किन्तु
अनन्त गुण हीन हैं। यथाख्यात संयत के चारित्र पर्यव नीचे के चार संयतों के चारित्र पर्यवों से न हीन हैं, न तुल्य हैं किन्तु अधिक हैं, वे भी अनन्त गुण अधिक हैं। (यथाख्यात संयत के चारित्र पर्यव) स्वस्थान की अपेक्षा न हीन हैं,न अधिक हैं किन्तु तुल्य होते हैं।
अल्प-बहुत्वप्र. भन्ते ! १. सामायिक संयत, २. छेदोपस्थापनीय संयत,
३. परिहारविशुद्धिक संयत, ४. सूक्ष्मसंपराय संयत और ५. यथाख्यात संयत के जघन्य और उत्कृष्ट चारित्र पर्यवों में
कौन किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ? उ. गौतम ! १. सामायिक संयत और छेदोपस्थापनीय संयत इन
दोनों के जघन्य चारित्र पर्यव सबसे अल्प हैं और परस्पर तुल्य हैं। २. (उससे) परिहारविशुद्धिक संयत के जघन्य चारित्र पर्यव ___ अनन्त गुणा हैं। ३. (उससे) उसी के उत्कृष्ट चारित्र पर्यव अनन्त गुणा हैं। ४. (उससे) सामायिक संयत और छेदोपस्थापनीय संयत इन
दोनों के उत्कृष्ट चारित्र पर्यव परस्पर तुल्य और अनन्त
अहक्खाय चरित्ते वि-हेट्ठिल्लाणं चउण्ह समं नो हीणे, नो तुल्ले, अब्महिए-अणंतगुणमब्भहिए।
सट्ठाणे-नो हीणे, तुल्ले, नो अब्महिए।
अप्पा-बहुयंप. एएसि णं भन्ते ! १. सामाइय, २. छेदोवट्ठावणिय,
३. परिहारविसुद्धिय, ४. सुहुमसंपराय, ५. अहक्खायसंजयाणं जहन्नुक्कोसगाणं चरित्तपज्जवाणं
कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा? उ. गोयमा !१. सामाइयसंजयस्स छेदोवट्ठावणियसंजयस्स य
एएसि णं जहन्नगा चारित्तपज्जवा दोण्ह वि तुल्ला सव्वत्थोवा। २. परिहारविसुद्धियसंजयस्स जहन्नगा चरित्तपज्जवा
अणंतगुणा। ३. तस्स चेव उक्कोसगा चरित्तपज्जवा अणंतगुणा। ४. सामाइयसंजयस्स छेओवट्ठावणियसंजयस्स य,
एएसि णं उक्कोसगा चरित्तपज्जवा दोण्ह वि तुल्ला
अणंतगुणा। ५. सुहुमसंपरायसंजयस्स जहन्नगा चरित्तपज्जवा
अणंतगुणा। ६. तस्स चेव उक्कोसगा चरित्तपज्जवा अणंतगुणा। ७. अहक्खायसंजयस्स अजहन्नमणुक्कोसगा
चरित्तपज्जवा अणंतगुणा। १६. जोग-दारंप. सामाइयसंजए णं भन्ते ! किं सजोगी होज्जा, अजोगी
होज्जा? उ. गोयमा ! सजोगी होज्जा, नो अजोगी होज्जा।
गुणा हैं।
चार
५. (उससे) सूक्ष्म संपराय संयत के जघन्य चारित्र पर्यव
अनन्त गुणा हैं। ६. (उससे) उसी के उत्कृष्ट चारित्र पर्यव अनन्त गुणा हैं। ७. (उससे) यथाख्यात संयत के अजघन्य-अनुत्कृष्ट चारित्र
पर्यव अनन्त गुणा हैं। १६. योग-द्वारप्र. भन्ते ! सामायिक संयत क्या सयोगी होता है या अयोगी
होता है? उ. गौतम ! सयोगी होता है, अयोगी नहीं होता है।