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संयत अध्ययन ७. छत्तीसहिं दारेहिं संजयस्स परूवणं
१. पण्णवण-दारंप. कइणं भंते ! संजया पण्णत्ता? उ. गोयमा !पंच संजया पण्णत्ता,तं जहा
१. सामाइयसंजए, २. छेदोवट्ठावणियसंजए, ३. परिहारविसुद्धियसंजए,४. सुहुमसंपरायसंजए,
५. अहक्खायसंजए, प. (१) सामाइयसंजएणं भंते ! कइविहे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते,तं जहा
१. इत्तरिए य, २. आवकहिए य', प. (२)छेदोवट्ठावणियसंजएरेणं भंते ! कइविहे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते,तं जहा
१. साइयारे य, २. निरइयारे य, प. (३) परिहार विसुद्धियसंजए णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा
१. निव्विसमाणए य, २. निविट्ठकाइए य, प. (४) सुहुमसंपरायसंजएणं भंते ! कइविहे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते,तं जहा
१. संकिलिस्समाणए य, २. विसुज्झमाणए य, प. (५) अहक्खायसंजए५ णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते,तं जहा
१. छउमत्थे य, २. केवली य, गाहाओसामाइयम्मि उ कए, चाउज्जामं अणुत्तरं धम्म । तिविहेण फासयंतो, सामाइयसंजयो स खलु ॥१॥
७. छत्तीस द्वारों से संयत की प्ररूपणा
१. प्रज्ञापना-द्वारप्र. भन्ते ! संयत कितने प्रकार के कहे गए हैं ? उ. गौतम ! संयत पांच प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. सामायिक संयत, २. छेदोपस्थापनीय संयत, ३. परिहार विशुद्धिक संयत, ४. सूक्ष्म संपराय संयत,
५. यथाख्यात संयत। प्र. भन्ते ! सामायिक संयत कितने प्रकार के कहे गए हैं? उ. गौतम ! दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. इत्वरिक, २. यावत्कथिक। प्र. भन्ते ! छेदोपस्थापनीय संयत कितने प्रकार के कहे गए हैं ? उ. गौतम ! दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. सातिचार, २. निरतिचार। प्र. भन्ते ! परिहारविशुद्धिक संयत कितने प्रकार के कहे गए हैं ? उ. गौतम ! दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. निर्विश्यमानक, २. निर्विष्टकायिक। प्र. भन्ते ! सूक्ष्मसम्परायसंयत कितने प्रकार के कहे गए हैं? उ. गौतम ! दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. संक्लिश्यमानक, २. विशुद्धयमानक। प्र. भन्ते ! यथाख्यात संयत कितने प्रकार के कहे गए हैं? उ. गौतम ! दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. छद्मस्थ, २. केवली।
गाथार्थ१. सामायिक-चारित्र को अंगीकार करने के पश्चात् चातुर्याम
(चार महाव्रत) रूप अनुत्तर (प्रधान) धर्म को जो मन, वचन और काया से त्रिविध (तीन करण से) पालन करता है वह
"सामायिक संयत" कहलाता है। २. पूर्व पर्याय को छेद करके जो अपनी आत्मा को पंचयाम
(पंचमहाव्रत) रूप धर्म में स्थापित करता है वह
"छेदोपस्थापनीय संयत" कहलाता है। ३. जो पंचमहाव्रत रूप अनुत्तर धर्म को मन, वचन और काया से
त्रिविध पालन करता हुआ विशुद्धि (कारक तपश्चर्या) धारण
करता है वह 'परिहारविशुद्धिक संयत' कहलाता है। ३. परिहार विशुद्ध चारित्र-बीस वर्ष की दीक्षापर्याय एवं विशिष्ट योग्यता
सम्पन्न नौ साधुओं का समूह गच्छ से निकलकर क्रमशः निर्धारित तप साधना करता है उनका चारित्र"परिहार विशुद्ध चारित्र"है। उस समूह में एक साधु समूह की प्रमुखता करता है, चार साधु विशिष्ट तप साधना करते हैं और चार साधु सेवा कार्य करते हैं। फिर सेवा करने वाले साधु विशिष्ट तप साधना करते हैं और दूसरे चार साधु सेवा कार्य करते हैं। फिर वह प्रमुख साधु विशिष्ट तप साधना करता है। शेष आठ में से एक
साधु प्रमुखता धारण करता है और सात साधु सेवा कार्य करते हैं। ४. सूक्ष्म संपराय चारित्र-दसवें गुणस्थानव सभी साधु-साध्वियों का
चारित्र "सूक्ष्म संपराय चारित्र"है। यथाख्यात चारित्र-उपशान्त कषाय वीतराग एवं क्षीण कषाय वीतराग का अर्थात् ग्यारहवें, बारहवें, तेरहवें, चौदहवें गुणस्थान वालों का चारित्र "यथाख्यात चारित्र" है।
छेत्तूण य परियागं, पोराणं जो ठवेइ अप्पाणं । धम्मम्मि पंचजामे,छेदोवट्ठावणो स खलु ॥२॥
परिहरइ जो विसुद्धं तु,पंचजामं अणुत्तरं धम्म । तिविहेण फासयंतो, परिहारियसंजयो स खलु ॥३॥
१. सामायिक चारित्र-प्रथम एवं अंतिम तीर्थंकर के शासन में छेदोपस्थापनीय
चारित्र (बड़ी दीक्षा) देने के पूर्व जघन्य सात दिन, उत्कृष्ट छह मास का जो चारित्र होता है वह इत्वरिक सामायिक चारित्र है। मध्यम बावीस तीर्थंकरों के शासन में जीवन पर्यन्त का जो चारित्र होता है वह यावत्कथिक सामायिक चारित्र है। इन तीर्थंकरों के शासन में एवं महाविदेह क्षेत्र में छेदोपस्थापनीय चारित्र नहीं दिया जाता है। छेदोपस्थापनीय चारित्र-प्रथम और अंतिम तीर्थंकर के शासन में प्रतिक्रमण अध्ययन एवं अन्य योग्यता हो जाने पर जघन्य सात दिन के । बाद और उत्कृष्ट छह मास के बाद भिक्ष को जो बड़ी दीक्षा दी जाती है वह छेदोपस्थापनीय चारित्र है। सामायिक चारित्र से छेदोपस्थापनीय चारित्र में कुछ समाचारी संबन्धी भिन्नताएं होती हैं यथा-मर्यादित एवं केवल सफेद रंग के वस्त्र ही रखना, राजपिंड नहीं लेना आदि।
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