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संयत अध्ययन प. सिणाए णं भंते ! लोगस्स किं
संखेज्जइभागे होज्जा, असंखेज्जइभागे होज्जा, संखेज्जेसु भागेसु होज्जा, असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा,
सव्वलोए होज्जा? उ. गोयमा ! नो संखेज्जइभागे होज्जा,
असंखेज्जइभागे होज्जा, नो संखेज्जेसु भागेसु होज्जा, असंखेज्जेसु वा होज्जा,
सव्वलोएवा होज्जा, ३३. फुसणा-दारंप. पुलाए णं भंते ! लोगस्स किं
संखेज्जइभागं फुसइ, असंखेज्जइभागं फुसइ, संखेज्जेसु भागेसु फुसइ, असंखेज्जेसु भागेसुफुसइ,
सव्वलोयं फुसइ? उ. गोयमा ! जहा खेत्त दारे ओगाहणा भणिया तहा फुसणा
विभाणियव्या! ३४. भाव-दारंप. पुलाएणं भंते ! कयरम्मि भावे होज्जा? उ. गोयमा ! खओवसमिए भावे होज्जा।
एवं जाव कसायकुसीले। प. णियंठेणं भंते ! कयरम्मि भावे होज्जा? उ. गोयमा ! ओवसमिए वा,खाइए वा भावे होज्जा।
प्र. भन्ते ! स्नातक लोक के क्या
संख्यातवें भाग में होता है, असंख्यातवें भाग में होता है, संख्यातवें भागों में होता है, असंख्यातवें भागों में होता है,
या सारे लोक में होता है? उ. गौतम ! संख्यातवें भाग में नहीं होता है।
असंख्यातवें भाग में होता है। संख्यातवें भागों में नहीं होता है। असंख्यातवें भागों में होता है।
सम्पूर्ण लोक में होता है। ३३. स्पर्शना-द्वारप्र. भन्ते ! पुलाक लोक के क्या
संख्यातवें भाग को स्पर्श करता है, असंख्यातवें भाग को स्पर्श करता है, संख्यातवें भागों को स्पर्श करता है, असंख्यातवें भागों को स्पर्श करता है,
सम्पूर्ण लोक को स्पर्श करता है? उ. गौतम ! जिस प्रकार क्षेत्र द्वार में क्षेत्रों की अवगाहना कही
उसी प्रकार यहाँ स्नातक पर्यन्त स्पर्शना भी कहनी चाहिए। ३४. भाव-द्वारप्र. भन्ते ! पुलाक किस भाव में होता है ? उ. गौतम ! क्षायोपशमिक भाव में होता है।
इसी प्रकार कषायकुशील पर्यन्त जानना चाहिए। प्र. भन्ते ! निर्ग्रन्थ किस भाव में होता है? उ. गौतम ! औपशमिक भाव में भी होता है और क्षायिक भाव में
भी होता है। प्र. भन्ते ! स्नातक किस भाव में होता है? उ. गौतम ! क्षायिक भाव में होता है। ३५. परिमाण-द्वारप्र. भन्ते ! पुलाक एक समय में कितने होते हैं? उ. गौतम ! प्रतिपद्यमान की अपेक्षा
कभी होते हैं और कभी नहीं होते हैं, यदि होते हैं तो जघन्य-एक, दो, तीन, उत्कृष्ट-शत पृथक्त्व (अनेक सौ) होते हैं। पूर्व प्रतिपन्न की अपेक्षाकभी होते हैं और कभी नहीं होते हैं। यदि होते हैं तो जघन्य-एक, दो, तीन,
उत्कृष्ट-सहन पृथक्त्व (अनेक हजार) होते हैं। प्र. भन्ते ! बकुश एक समय में कितने होते हैं ? उ. गौतम ! प्रतिपद्यमान की अपेक्षा
कभी होते हैं, कभी नहीं होते हैं। यदि होते हैं तो जघन्य एक, दो, तीन,
प. सिणाए णं भंते ! कयरम्मि भावे होज्जा ? उ. गोयमा ! खाइए भावे होज्जा, ३५. परिमाण-दारंप. पुलाया णं भंते ! एगसमएणं केवइया होज्जा? उ. गोयमा ! पडिवज्जमाणए पडुच्चसिय अत्थि, सिय नत्थि, जइ अस्थि जहन्नेणं-एक्को वा, दो वा, तिण्णि वा, उक्कोसेणं सयपुहत्तं। पुव्वपडिवन्नए पडुच्चसिय अत्थि, सिय नत्थि, जइ अस्थि जहन्नेणं-एक्को वा, दोवा, तिण्णि वा,
उक्कोसेणं सहस्सपुहत्तं। प. बउसा णं भंते ! एगसमए णं केवइया होज्जा? उ. गोयमा ! पडिवज्जमाणए पडुच्चसिय अस्थि, सिय नत्थि, जइ अस्थि जहन्नेणं एक्कोवा, दो वा, तिण्णि वा,