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संयत अध्ययन उ. गोयमा !जहण्णेणं-अट्ठ पवयणमायाओ,
उक्कोसेणं-चोद्दसपुव्वाईं अहिज्जेज्जा, सुयवइरित्ते वा
होज्जा। ८. तित्थ-दारंप. (१) सामाइय संजए णं भंते ! किं तित्थे होज्जा, अतित्थे
होज्जा? उ. गोयमा ! तित्थे वा होज्जा, अतित्थे वा होज्जा। प. जइ अतित्थे होज्जा, किं तित्ययरे होज्जा, पत्तेयबुद्धे
होज्जा? उ. गोयमा ! तित्थयरे वा होज्जा, पत्तेयबुद्धे वा होज्जा। प. छेदोवट्ठावणिए णं भंते ! किं तित्थे होज्जा, अतित्थे
होज्जा? उ. गोयमा ! तित्थे होज्जा, नो अतित्थे होज्जा।
एवं परिहारविसुद्धिय संजए।
सेसा जहा सामाइयसंजए, ९. लिंग-दारंप. सामाइयसंजए णं भंते ! किं सलिंगे होज्जा, अन्नलिंगे
होज्जा, गिहिलिंगे होज्जा? उ. गोयमा !दव्वलिंगं पडुच्च-सलिंगे वा होज्जा,अन्नलिंगे वा
होज्जा, गिहिलिंगे वा होज्जा। भावलिंगं पडुच्च-नियम सलिंगे होज्जा।
एवं छेदोवट्ठावणिए वि। प. परिहारविसुद्धियसंजए णं भंते ! किं सलिंगे होज्जा,
अन्नलिंगे होज्जा, गिहिलिंगे होज्जा? उ. गोयमा ! दव्वलिंगं पि, भावलिंग पि पडुच्च-सलिंगे
होज्जा, नो अन्नलिंगे होज्जा, नो गिहिलिंगे होज्जा,
सेसा जहा सामाइयसंजए। १०. सरीर-दारंप. सामाइयसंजएणं भंते ! कइसु सरीरेसु होज्जा? उ. गोयमा ! तिसुवा, चउसु वा,पंचसु वा होज्जा।
तिसु होमाणे-तिसु ओरालिय-तेया-कम्मएसु होज्जा,
उ. गौतम ! जघन्य आठ प्रवचन माता का,
उत्कृष्ट चौदह पूर्व का अध्ययन होता है अथवा श्रुत रहित
होता है अर्थात् केवलज्ञानी होता है। ८. तीर्थ-द्वारप्र. (१) भन्ते ! सामायिक संयत क्या तीर्थ में होता है या अतीर्थ
में होता है? उ. गौतम ! तीर्थ में भी होता है और अतीर्थ में भी होता है। प्र. यदि अतीर्थ में होता है तो क्या-तीर्थकर होता है या प्रत्येकबुद्ध
होता है? उ. गौतम ! तीर्थकर भी होता है और प्रत्येकबुद्ध भी होता है। प्र. भन्ते ! छेदोपस्थापनीय संयत क्या तीर्थ में होता है या अतीर्थ
में होता है? उ. गौतम ! तीर्थ में होता है, अतीर्थ में नहीं होता है।
इसी प्रकार परिहारविशुद्धिक संयत भी जानना चाहिए।
शेष दो संयत सामायिक संयत के समान जानने चाहिए। ९. लिंग-द्वारप्र. भन्ते ! सामायिक संयत क्या स्वलिंग में होता है, अन्य लिंग में
होता है या गृहस्थ लिंग में होता है? उ. गौतम ! द्रव्यलिंग की अपेक्षा-स्वलिंग में भी होता है, अन्य लिंग
में भी होता है और गृहस्थ लिंग में भी होता है। भावलिंग की अपेक्षा-नियमतः स्वलिंग में ही होता है।
इसी प्रकार छेदोपस्थापनीय संयत भी जानना चाहिए। प्र. भन्ते ! परिहार विशुद्धिक संयत क्या स्वलिंग में होता है,
अन्यलिंग में होता है या गृहस्थ लिंग में होता है? उ. गौतम ! द्रव्यलिंग और भाव लिंग की अपेक्षा स्वलिंग में ही
होता है, किन्तु अन्य लिंग और गृहस्थ लिंग में नहीं होता है।
शेष दो संयत सामायिक संयत के समान जानने चाहिए। १०. शरीर-द्वार
प्र. भन्ते ! सामायिक संयत के कितने शरीर होते हैं ? उ. गौतम ! तीन, चार या पांच शरीर होते हैं।
तीन शरीर हों तो-१. औदारिक, २. तैजस्, ३. कार्मण होते हैं। चार शरीर हों तो-१.औदारिक, २. वैक्रिय, ३. तैजस्, ४. कार्मण। पांच शरीर हों तो-१. औदारिक, २. वैक्रिय, ३. आहारक, ४. तेजस्, ५. कार्मण।
इसी प्रकार छेदोपस्थापनीय संयत भी जानना चाहिए। प्र. भन्ते ! परिहारविशुद्धिक संयत के कितने शरीर होते हैं? उ. गौतम ! तीन शरीर होते हैं-१. औदारिक, २. तैजस्,
३. कार्मण। सूक्ष्म संपराय संयत और यथाख्यात संयत भी इसी प्रकार
जानने चाहिए। ११. क्षेत्र-द्वारप्र. भन्ते ! सामायिक संयत क्या कर्मभूमि में होता है या
अकर्मभूमि में होता है?
चउसु होमाणे-चउसु ओरालिए-वेउब्विय-तेया-कम्मएसु होज्जा, पंचसु होमाणे-पंचसु ओरालिए - वेउव्विय-आहारग तेया-कम्मएसु होज्जा।
एवं छेदोवट्ठावणिए वि। प. परिहारविसुद्धियसंजएणं भंते ! कइसु सरीरेसु होज्जा? उ. गोयमा ! तिसु ओरालिए-तेया-कम्मएसु होज्जा।
सुहमसंपरायसंजए अहक्खायसंजए वि एवं चेव।
११. खेत्त-दारंप. सामाइयसंजए णं भंते ! किं कम्मभूमीए होज्जा,
अकम्मभूमीए होज्जा?