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संयत अध्ययन
उ. गोयमा जहन्नेणं दोणि, उक्कोसेणं सत्त ।
प. बउसस्स णं भंते! नाणाभवग्गहणिया केवइया आगरिसा पण्णत्ता ?
उ. गोयमा ! जहन्नेणं दोण्णि, उक्कोसेणं सहस्ससो । एवं जाव कसायकुसीलस्स,
प. णियंठस्स णं भंते ! नाणाभवग्गहणिया केवइया आगरिसा पण्णत्ता ?
उ. गोयमा ! जहन्नेणं दोण्णि, उक्कोसेणं पंच
प. सिणायस्स णं भन्ते ! नाणाभवग्गहणिया केवइया आगरिसा पण्णत्ता ?
उ. गोयमा ! नत्थि एक्को वि।
२९. काल - दारं
प. पुलाए णं भंते! कालओ केवचिरं होइ ?
उ. गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं,
उक्कोसेण वि अंतोमुहुतं ।
प. बउसे णं भन्ते ! कालओ केवचिरं होइ ?
उ. गोयमा ! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं देणा पुव्यकोडी । पडिलेवणाकुसीले कसायकुसीले वि एवं चैव ।
प. णियंठे णं भंते ! कालओ केवचिरं होइ ? उ. गोयमा ! जहन्नेण एक्कं समय, उक्कोसेणं अंतीमुडुतं।
प. सिणाए णं भंते ! कालओ केवचिरं होइ ?
उ. गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं,
उक्कोसेण देसूणा पुव्वकोडी ।
प. पुलाया णं भंते! कालओ केवचिर होइ ?
उ. गोयमा जहन्नेणं एक्कं समय,
उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं।
प. बउसा णं भंते ! कालओ केवचिरं होइ ?
उ. गोयमा ! सव्वद्धं ।
एवं पडिसेवणाकुसीला कसायकुसीला वि।
णियंठा जहा पुलागा ।
सिणाया जहा बसा।
३०. अंतर-दारं
प. पुलागस्स णं भंते! केवइयं कालं अंतर होइ ?
उ. गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अर्णतं कालं, ओसपिणि उस्सप्पिणीओ कालओ, सेत्तओ अवइड पोग्गलपरियट देसूणं, एवं जाव नियंठस्स,
अणताओ
उ. गौतम ! जघन्य दो, उत्कृष्ट सात बार होता है।
प्र.
भन्ते ! बकुश के अनेक भवग्रहण योग्य कितने आकर्ष होते हैं ? अर्थात् कितनी बार होता है ?
उ. गौतम ! जघन्य दो, उत्कृष्ट हजारों बार होता है।
इसी प्रकार कषायकुशील पर्यन्त जानना चाहिए।
प्र. भन्ते ! निर्ग्रन्थ के अनेक भवग्रहण योग्य कितने आकर्ष होते
हैं ? अर्थात् कितनी बार होता है ?
गौतम ! जघन्य दो, उत्कृष्ट पांच बार होता है।
भन्ते ! स्नातक के अनेक भवग्रहण योग्य कितने आकर्ष होते हैं ?
उ.
गौतम एक भी नहीं (क्योंकि उसी भव में मुक्त होता है)। २९. काल -द्वार
प्र. भन्ते ! पुलाक काल से कितनी देर रहता है ?
उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त,
उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त।
उ.
प्र.
प्र.
उ.
प्र.
उ.
प्र.
उ. गौतम ! जघन्य एक समय,
उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त।
भन्ते ! स्नातक कितने काल तक रहता है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त,
प्र.
उ.
भन्ते ! बकुश काल से कितनी देर रहता है ? गौतम ! जघन्य एक समय,
उत्कृष्ट देशोन (कुछ कम) एक क्रोड पूर्व ।
प्रतिसेवनाकुशील और कषायकुशील का कथन भी इसी प्रकार है।
भन्ते ! निर्ग्रन्थ कितने काल तक रहता है ?
उ.
उत्कृष्ट देशोन (कुछ कम) क्रोड पूर्व
भन्ते ! पुलाक कितने काल तक रहते हैं ?
गौतम ! जघन्य एक समय,
उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त।
प्र.
उ. गौतम ! सदा रहते हैं।
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भन्ते ! बकुश कितने काल तक रहते हैं ?
इसी प्रकार प्रतिसेवनाकुशील और कषायकुशील भी जानना चाहिए।
निर्ग्रन्थ का कथन पुलाक के समान है।
स्नातक का कथन बकुश के समान है।
३०. अंतर-द्वार
प्र. भन्ते ! पुलाक के पुनः पुलाक होने में कितने काल का अन्तर
रहता है ?
गौतम ! जघन्य - अन्तर्मुहूर्त,
उत्कृष्ट अनंत काल अर्थात् अनन्त अवसर्पिणी उत्सर्पिणी
काल,
क्षेत्र से देशोन अपार्ध पुद्गल परावर्तन।
इसी प्रकार निर्ग्रन्थ पर्यन्त जानना चाहिए।