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प. बउसे णं भंते! किं सण्णोवउत्ते होज्जा, नोसण्णोवउत्ते होज्जा ?
उ. गोयमा ! सण्णोवउत्ते या होज्जा, नोसण्णोवउत्ते या होज्जा |
पडिसेवणाकुसीले कसायकुसीले वि एवं चैव ।
नियंठे सिणाए व जहा पुलाए, '
२६. आहार दारं
प. पुलाए णं भंते! कि आहारए होज्जा, अणाहारए होज्जा ?
उ. गोयमा ! आहारए होज्जा, नो अणाहारए होज्जा । एवं जाव नियं
प. सिणाए णं भंते! कि आहारए होज्जा, अणाहारए होज्जा ?
उ. गोयमा ! आहारए वा होज्जा, अणाहारए वा होज्जा, २७. भव-दारं
प. पुलाए णं भंते! कइ भवग्गहणाई होज्जा ? उ. गोयमा ! जहन्त्रेणं एक्कं, उक्कोसेणं तिण्णि । प. बउसे णं भंते! कइ भवग्गहणाई होज्जा ? उ. गोवमा ! जहन्नेणं एक्कं उक्कोसेणं अट्ठ पडिसेवणाकुसीले कसायकुसीले वि एवं चेव ।
णियंठे जहा पुलाए,
प. सिणाए णं भंते! कइ भवग्गहणाई होज्जा ?
उ. गोयमा ! एक्कं
२८. आगरिस-दार
प. पुलागस्स णं भंते! एगभवग्गहणिया केवइया आगरिसा पण्णत्ता ?
उ. गोयमा ! जहत्रेणं एक्को, उक्कोसेणं तिणि।
प. बउसस्स णं भंते ! एगभवग्गहणिया केवइया आगरिसा पण्णत्ता ?
उ. गोयमा ! जहन्नेणं एक्को, उक्कोसेणं सयग्गसो । पडि सेवणाकुसीले कसायकुसीले वि एवं चेव ।
प. णियंठस्स णं भंते ! एगभवग्गहणिया केवइया आगरिसा पण्णत्ता ?
उ. गोयमा ! जहन्नेणं एक्को, उक्कोसेणं दोन्नि ।
प. सिणायस्स णं भंते! एगभवग्गहणिया केवहया आगरिसा पण्णत्ता ?
उ. गोयमा ! एक्को ।
प. पुलागस्स णं भंते! नाणाभवग्गहणिया केवइया आगरिसा पण्णत्ता ?
१. ठाणं अ. ३, उ. २, सु. १६६
द्रव्यानुयोग - (२)
प्र. भन्ते ! बकुश क्या संज्ञोपयुक्त होता है या नोसंज्ञोपयुक्त होता है ?
उ. गौतम ! संज्ञोपयुक्त भी होता है और नोसंज्ञोपयुक्त भी होता है।
प्रतिसेवनाकुशील और कषायकुशील भी इसी प्रकार जानना चाहिए।
निर्ग्रन्थ और स्नातक का कथन पुलाक के समान है। आहार द्वार
भन्ते ! पुलाक क्या आहारक होता है या अनाहारक होता है ?
२६.
प्र.
उ. गौतम ! आहारक होता है, अनाहारक नहीं होता है। इसी प्रकार निर्ग्रन्थ पर्यन्त जानना चाहिए।
प्र. भन्ते ! स्नातक आहारक होता है या अनाहारक होता है ?
उ. गौतम ! आहारक भी होता है और अनाहारक भी होता है।
२७. भव-द्वार
प्र. भन्ते ! पुलाक कितने भवों में होता है ?
उ. गौतम ! जघन्य एक, उत्कृष्ट तीन भव में होता है। भन्ते ! बकुश कितने भवों में होता है ?
प्र.
उ. गौतम ! जघन्य एक, उत्कृष्ट आठ भव में होता है। प्रतिसेवनाकुशील और कषायकुशील भी इसी प्रकार जानना चाहिए।
निर्ग्रन्थका कथन पुलाक के समान जानना चाहिए।
प्र. भन्ते ! स्नातक कितने भवों में होता है ?
उ. गौतम ! एक भव में ही होता है।
२८. आकर्ष-द्वार
प्र. भन्ते ! पुलाक के एक भवग्रहण योग्य कितने आकर्ष होते हैं ?
अर्थात् पुलाक एक भव में कितनी बार होता है ?
गौतम ! जघन्य एक, उत्कृष्ट तीन बार होता है।
उ.
प्र. भन्ते ! बकुश के एक भवग्रहण योग्य कितने आकर्ष कहे गए हैं, अर्थात् कितनी बार होता है?
उ. गौतम ! जघन्य एक, उत्कृष्ट सैकड़ों बार होता है।
प्रतिसेवनाकुशील और कषायकुशीत भी इसी प्रकार जानना चाहिए।
प्र. भन्ते ! निर्ग्रन्थ के एक भवग्रहण योग्य कितने आकर्ष कहे गए है, अर्थात् कितनी बार होता है?
उ.
गौतम ! जघन्य एक, उत्कृष्ट दो बार होता है।
प्र. भन्ते ! स्नातक के एक भवग्रहण योग्य कितने आकर्ष कहे गए है अर्थात कितनी बार होता है?
उ. गौतम ! एक बार होता है।
प्र. भन्ते ! पुलाक के अनेक भव ग्रहण योग्य कितने आकर्ष कहे गए हैं, अर्थात् कितनी बार होता है ?