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मगतीने
देवो
समुद्घातेन समवहन्यते, समवदस्य यावत् द्वितीयमपि क्रियसन द्वासेन समवहन्यते, समवहत्य मनुगतम ! चमरस्य अनुरेन्द्रस्प, अमरराजस्प एकैकः सामानिकदेवः केवलकल्प जम्बूद्वीप द्वीप बहुभिररकुमारै देवेश देत्री मिथ आकीर्णम्, व्यतिकीर्णम्, उपस्तीर्णम्, सस्तीर्णम् स्पृष्टम्, अवगाढाव गाव फर्तुम्, भयोत्तरश्च गौतम ! प्रभु चमरस्य असुरेन्द्रस्य, असुरराजस्य एकेक' सद्ध रहता है । ( एषामेव गोयमा ! ) इसी तरह हे गौतम! ( मरस्त असुर्रिदस्स असुररण्णो ण्गमेगे सामाणियदेवे वेत्रिय समुग्धारणं समोहरणह) उस असुरेन्द्र असुरराज घमर का एक एक सामानिक देव वैक्रिय समुद्धात से युक्त है (ममोरणिता जाय दोबंपि ashooreमुग्धारण समौहण्णइ) समुद्रात करके यावत् वह सामानिक देव दुबारा भी वैक्रिय समुद्धात करता है । (गोयमा 1 चमरस्स असुरिंदरस असुररण्णो एगमेगे सामाणियदेवे ] हे गौतम! उस असु रेन्द्र असुरराज चमर का एकर सामानिक देव (केवलकप्प जबूदीर्ष) केवल कल्प- समस्त अबूद्वीप को वैफियसमुद्धात द्वारा कृत (बहुि असुरकुमारदेवेहिं य देवीहिय] अनेक असुरकुमार देवोंसे और देवियोंसे [आ] आकीर्ण [वितिकिष्ण] व्यतिकीर्ण [उत्थ] उपस्तीर्ण [स] सस्तीर्ण [फुड] स्पृष्ट और [भषगादावगाढ] भवगाढावगाढ [करेचर ] करनेके लिये [पभू ] समर्प है [ अदुतरच ण गोयमा !] तथा हे गौतम! [धमरस्स- असुरिंदस्स असुररण्णो एगमेगे सामाणियदेवे सिरियमसना शनि ही रामवाने नेटसी समर्थ होय छे ( एवामेव गोयमा 1 ) प्रभा हे गौतम, ( घमरस्स अनुरिंदरस असुररणो एगमेगे सामाणिय देवे उन्निसम्भाएण समोहम्णइ ) ते असुरेन्द्र असुर अमरना प्रत्ये सामानिष्ठ व वैयि सभुद्धात खाने समर्थ छे समोहणिया आव दोसपि वेठ त्रिय सम्मुग्धारण समोर ) समुदघारीने वत पशु ते सामानि देव वैश्यि समुहबात ४२ ४ ( गोयमा ! चमरस्स अमुर्रिदस्स असुररष्णो एगमेगे सामाणिय देवे ) गौतम । ते असुरेन्द्र सुररासभर प्रत्येक सामानि देव ( केवळकप्प जंबूदोन बहूर्हि असुरकुमारदेवेडिं य देवीहिंय ) वैयि समुदमात द्वारा निर्मित भने असुरमुभा देवी ने देवधी समस्त यूपने (भाइष्ण, निति विष्ण, उवस्थ, सड, फुडे, अवगाढावगाड, करेचर पभू) भी (अति) વ્યતિકીનું, ઉપસ્તીર્ણ, સસ્તીર્ણ, પૃષ્ટ અને અવગઠિત કરવાને સમ છે ( अन्तरं च ण गोयमा ! ) भेट नहीं पशु (चमरस्स असुर्रिदस्त असुररब्यो