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॥ श्री पार्श्वनाथाय नमः ॥
श्री अभिधान राजेन्द्र कोश और उसके कर्त्ता
श्री राजमल लोढ़ा, सम्पादक 'दैनिक ध्वज ' मन्दसौर अभिधान राजेन्द्र कोष के निर्माता परम पूज्य आचार्य श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरिजी अपने समय के एक उद्भट, धुरंधर अद्भुत विद्वान थे। जिन्होंने धार्मिक और आध्यात्मिक जगत में, साहित्यिक संसार में अभिधान राजेन्द्र कोष की रचना करके जगत के प्राणियों को सुलभ मार्गदर्शन दिया ।
राजेन्द्रसूरिजी का जीवन तीन विभागों में विभक्त किया जा सकता है । (१) गृहस्थजीवन (२) यतिजीवन (३) शुद्ध मुनिजीवन । आपका जन्म एक ऐसे समय में हुआ था कि जिस समय जैन समाज में सामाजिक व धार्मिक जीवन में क्रांति की आवश्यकता अनुभव की जा रही थी । क्रांति को सब चाहते थे किंतु आगे कदम रखनेवाला कोई व्यक्ति गोचर नहीं हो रहा था, मानव-जीवन के क्रांतिकारी विचारों पर भय का आतंक जमा हुआ था, किसी की हिम्मत नहीं पड़ती थी कि जैन समाज को पुनरुत्थान का मार्गदर्शन देकर प्राणियों को आत्मकल्याण की ओर अग्रसर करें ।
ऐसे विकट समय में जैन जगत में (१) श्री राजेन्द्रसूरिजी ( २ ) श्री आत्मारामजी (विजयानंदसूरि) (३) श्रीमोहनलालजी व (४) श्री सुखसागरजी इन चार महात्माओंने एक ही समय में साथ २ क्रांति की और भूले-भटके लोगों को पुनरुत्थान का मार्ग प्रदर्शन किया । उसीका परिणाम है कि आज जैन समाज अपने धार्मिक जगत में अपना पूरा २ योग दे रही है । फिर भी आज इस राजनैतिक समय में संगठित धार्मिक क्रांति की आवश्यकता अवश्य अनुभव रही है।
राजेन्द्रसूरिजीने २० वर्ष पर्यंत आबाल ब्रह्मचारी रह कर गृहस्थ जीवन का अनुभव किया और इस संसार को दुःख का घर समझ कर अपने जीवन को किसी एक आदर्श और उच्च जीवन में ढ़ालने का साहस किया । इसी अवस्था में यतिजीवन की दीक्षा लेकर आपने अपना कदम एक नई दिशा की ओर मोड़ा । यतिजीवन में भी आपको कई नये २ अनुभव होने लगे, इस अनुभव में विद्याध्ययन की सब से बड़ी जरूरत थी और उसीकी ओर आपने अपना ध्यान केन्द्रित किया । बुद्धि की तीव्रता, एकाग्र ध्यान, अच्छे संयोगों के कारण आप थोड़े समय में ही एक प्रकाण्ड विद्वान हो गये । शास्त्रों का अध्ययन, मनन, मन्थन ( १ )