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अर्थशास्त्र-अर्धोदय व्रत
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वाला मल-मत्र से भरे हुए नरक में जाता है' यह निन्दार्थ- अर्धलक्ष्मीहरि-आधे लक्ष्मी के आकार में तथा आधे हरि वाद हुआ । दे० श्राद्धविवेक-टीका में श्रीकृष्ण तर्कालङ्कार। के आकार में जो हरि भगवान् है वे अर्धलक्ष्मीहरि है। अर्थशास्त्र-प्राचीन हिन्दू राजनीति का प्रसिद्ध ग्रन्थ कौटि- ___ यह विष्णु का एक स्वरूप है । गौतमीय तन्त्र में कथन है : लीय अर्थशास्त्र । यद्यपि यह धार्मिक ग्रन्थ नहीं है, किन्तु ऋषिः प्रजापतिश्छन्दो गायत्री देवता पुनः । स्थान-स्थान पर इसमें तत्कालीन धर्म एवं नैतिकता का अर्धलक्ष्मीहरिः प्रोक्तः श्रीबीजेन षडङ्गकम् ॥ वर्णन विशद रूप से प्राप्त होता है। राज्य, विधान, अप- [प्रजापति ऋषि, छन्द गायत्री, देवता अर्धलक्ष्मीहरि राध एवं उसके दण्ड, सामाजिक एवं आर्थिक दशा (जो उस कहे गये हैं। श्री बीज के द्वारा षडङ्गन्यास होता है। समय देश में व्याप्त थी) का इसमें बहुत ही महत्त्वपूर्ण यह प्रतीक अर्धनारीश्वर (शिव) के समानान्तर है। वर्णन है । तत्कालीन धर्माचरण का भी यह ग्रन्थ सर्वोत्तम यह भी सत् और चित् के मिलन का रूपक है, जिससे प्रमाण है।
आनन्द की सृष्टि होती है। 'अर्थशास्त्र' बहुत व्यापक शब्द है । इसमें समाजशास्त्र, अर्धश्रावणिका व्रत-श्रावण शुक्ल प्रतिपदा को व्रतारम्भ दण्डनीति और सम्पत्तिशास्त्र तीनों का समावेश है। वार्ता करके एक मास पर्यन्त उसका अनुष्ठान करना चाहिए। अर्थात् व्यापार सन्बन्धी सभी बातें सम्पत्तिशास्त्र के पार्वती की, जिन्हें अर्द्धश्रावणी भी कहा जाता है, पूजा होनी विषय है। राजनीति सम्बन्धी सभी बातें दण्डनीति के चाहिए । व्रती को एक मास तक एक समय अथवा दोनों विषय हैं । त्रयी में वर्णाश्रम विभाग और उनके सम्बन्ध में समय विधि से आहार करना चाहिए। दे० हेमाद्रि, कर्तव्य-अकर्तव्य का विचार समाजशास्त्र का विषय है। २. ७५३-७५४ । कौटिलीय अर्थशास्त्र में इन सभी विषयों का समाहार है। अर्थोदय व्रत-स्कन्दपुराण के अनुसार माघ मास की अमाअर्धनारीश-अर्धाङ्गिनी पार्वती और उनके ईश शंकर का वस्या के दिन यदि रविवार, व्यतीपात योग और श्रवण संयुक्त रूप । उनका ध्यान इस प्रकार बताया गया है : नक्षत्र हो तो अर्धोदय योग होता है । इस योग के दिन यह नीलप्रवालरुचिरं विलसत्रिनेत्रं
व्रत किया जाता है । कदाचित् ही इन सबका मिलन संभव पाशारुणोत्पलकपालकशूलहस्तम् ।
होता है और इसे पवित्रता में करोड़ों सूर्यग्रहणों के तुल्य अर्धाम्बिकेशमनिशं प्रविभक्तभूषम्
समझा जाता है। अर्धोदय के दिन प्रयाग में प्रातः गंगाबालेन्दुबद्धमुकुट प्रणमामि रूपम् ।।
स्नान का बड़ा माहात्म्य है । किन्तु कहा गया है कि इस [ नीले प्रवाल के समान सुन्दर, तीन नेत्रों से सुशोभित, दिन सभी नदियाँ गङ्गातुल्य हो जाती हैं । इस व्रत के तीन हाथ में पाश, लाल कमल, कपाल और त्रिशूल लिये हुए, देवता हैं-ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश्वर और वे इसी क्रम में अङ्गों में भूषण धारण किये हए, बालचन्द्रमा रूपी मकूट पूजनीय होते हैं। पौराणिक मन्त्रों के अनुसार अग्नि में पहने हुए शिव-पार्वती को मैं नमस्कार करता हूँ।] घृत का हवन करते हैं तथा 'प्रजापते' (ऋ० वे० १०. अर्धनारीश्वर-आधे-आधे रूप से एक देह में संमिलित १२१.१०) ब्रह्मा के लिए, 'इदम् विष्णुः' (ऋ० वे० १.१२.
गौरी-शंकर । यह शिव का एक रूप है । तिथ्यादितत्त्व में १७) विष्णु के लिए एवं 'व्यम्बकम्'(ऋ० ० ७.५९.१२) कथन है :
महेश्वर के लिए, तीन मन्त्रों का प्रयोग करते हैं। अष्टमी नवमीयुक्ता नवमी चाष्टमीयता । __ व्रतार्क (पत्रात्मक, ३४८ अ-३५० ब) में कथित है कि
अर्धनारीश्वरप्राया उमामाहेश्वरी तिथिः ।। भट्ट नारायण के 'प्रयागसेतु के अनुसार यह योग पौष मास [अष्टमी नवमी से युक्त अथवा नवमी अष्टमी से युक्त हो, में पड़ता है जब कि अमान्त का परिगणन किया गया हो, उसे अर्धनारीश्वरी या उमामाहेश्वरी तिथि कहते हैं।] तथा पूर्णिमान्त का परिगणन किया गया हो तब माध में ।
यह रूप शिव और शक्ति के मिलन का प्रतीक है। भुजबलनिबन्ध (पृ० ३६४-३६५) के अनुसार सूर्य उस इसमें आधे पुरुष और आधी स्त्री का मिलन है। इससे समय मकर राशि पर होना चाहिए । तिथितत्त्व, १७७, आनन्द की उत्पत्ति होती है, और फिर सम्पूर्ण विश्व में एवं व्रतार्क के अनुसार यह योग तभी मान्य होगा जब इसकी अभिव्यक्ति।
__ दिन में पड़े रात में नहीं। कृत्यसारसमुच्चय (पृ० ३०)
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