Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पुराण
॥६॥
पत्र || थे। उन के प्रताप से सिंह मृगादिक जाति विरोधी जीवों को एक ठौर बैठे देख राजा श्राश्चर्य
| को प्राप्तभया, आगे जाकर केवली का दर्शन किया राजा तो मुनिहोय निर्वाण गए और यह दोऊ भाई मुनि होय ग्यारवें स्वर्ग गए वहां से चयकर चन्दकाजीव अमरश्रुत तो मेघबाहन भया और ओवलीका जीव धनश्रुत सहसनयन भया यह इन दोनों के बैरका वृत्तांत है फिर सगर चक्रवर्ती ने भगवान् से पूछा कि हे प्रभो सहसनयनसों मेरा जो अतिहित है सो इसमें क्या कारण है तब भगवान ने कहा कि वह प्रारम्भ नामा गणित शास्त्रका पाठी मुनियोंको आहार दान देकर देवकुरु भोगभूमि गया वहांसे प्रथम स्वर्गका देव होकर पीछे चन्द्रपुर में राजा हरि राणी धरादेवी के प्यारा पुत्र ब्रतकीर्तन भया, मुनि पद घार स्वर्ग गया, और विदेह क्षेत्र में रत्नसंचयपुर में महाघोष पिता चन्द्राणी माताके पयोबल नामा पुत्र होय मुनि व्रत घोर चौघवें स्वर्ग गया वहांसे चयकर भरतक्षेत्र में पृथिवीपुर नगरमें यशोधर राजा और राणी जया के घर जयकीर्त नामा पुत्र भया सो पिता के निकट जिन दीक्षा लेकर विजय बिमान गया वहांसे चयकर तू सगर चक्रवर्ती भया और प्रारम्भ के भव में श्रावली शिष्य के साथ तेरा स्नेह था सो अब प्रावली का जीव सहसनयन उससे तेरा अधिक स्नेहहै यह कथा सुन चक्रवर्तीको विशेष धर्मरुचि हई और मेघवाहन तथा सहसनयन दोनों अपने पिताके और अपने पूर्व भव श्रवणकर निर भए परस्पर मित्रभए और इनकी धर्म विषे प्रति रुचि उपजी पूर्व भव दोनोंको याद आए महा श्रद्धावन्त होय भगवान्की स्तुति करते भए, कि हे नाथ श्राप अनाथन के नाथ हैं यह संसार के प्राणी महा दुःखी हैं उनको धर्मोपदेश देकर उपकार करोहो तुम्हारा किसी से भी कुछ प्रयोजन नहीं तुम निःकारण जगत्के बन्धुहो
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