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वह अज्ञात स्वरूप में रहता है। ज्ञात रूप में प्रतीति अर्थ के साथ ज्ञान के संबंध को प्रकट करती है। मनुष्य का दंडोपन जिस प्रकार दंड के संबंध से है इस प्रकार अर्थ का ज्ञातपन ज्ञान के संबंध से है।
दंड और मनुष्य का जो संबंध है, उससे ज्ञान और अर्थ के संबंध में कुछ भेद है। मनुष्य दंड के बिना भी प्रतीत होता है और दंड के साथ भी, इस लिये मनुष्य के शुद्ध और संसर्ग के द्वारा प्रतीत होने वाले दोनों स्वरूप स्पष्ट हैं । अर्थ और ज्ञान का संबंध तब प्रतीत होता है जब अर्थ का ज्ञान हो । अर्थ जब अज्ञात हो तब अर्थ का स्वरूप प्रतीत नहीं होता । अर्थ जब प्रतीत होता है तब ज्ञान के साथ प्रतीत होता है । दंड के बिना मनुष्य की प्रतीति होती है पर ज्ञान के बिना अर्थ की प्रतीति नहीं होती, इतना ज्ञान और दंड में भेद है। बिना दंड के सम्बन्ध के दंडी के स्वरूप में प्रतीति नहीं हो सकती, ज्ञात रूप में अर्थको प्रतीति भी ज्ञान के संबंध के बिना नहीं हो सकती, यह ज्ञान और दंड के संबंध में समानता है । दंड के बिना मनुष्य जिस प्रकार विद्यमान है. इस प्रकार ज्ञान के बिना अर्थ भी विद्यमान है । जिस दंड के कारण दंडी के स्वरूप में प्रतीति होती है, वह दंड प्रत्यक्ष है। परन्तु जिस ज्ञान के संबंध के कारण अर्थ ज्ञात रूप में प्रतीत होता है. वह ज्ञान परोक्ष है। दंड के संसर्गसे वंडी रूप में प्रतीति को उत्पन्न होता देखकर अर्थ की ज्ञात रूप में प्रतीति ज्ञान के संबंध से हुई है इस प्रकार का अनुमान होता है ।
एक अन्य दृष्टांत ज्ञान और अर्थ के संबंध को अधिक समानता के साथ प्रकाशित करता है । अर्थ जब दिखाई देते हैं तब प्रकाश से प्रकाशित रूप में प्रतीत होते हैं। जब प्रकाश