________________
उल्लेख ज्ञान के प्रत्यक्ष स्वरूप में प्रमाण है। जो स्वरूप से प्रत्यक्ष नहीं है उसका करणरूप से उल्लेख प्रत्यक्ष प्रतीति में नहीं हो सकता । अर्थ ग्रहण की शक्ति, शक्ति रूप में प्रत्यक्ष नहीं है इसलिये प्रत्यक्ष ज्ञान में उसका करणरूप से उल्लेख नहीं होगा। इसी प्रकार द्रव्यार्थ से जो प्रत्यक्ष है पर पर्यायार्थ से जो प्रत्यक्ष नहीं है उसका उल्लेख प्रत्यक्ष प्रतीति में अपने स्वरूप से नहीं होगा । घट मृत्तिका से अभिन्न है, घट के समान कुशूलकपाल आदि भो मृत्तिका से अभिन्न हैं जिस काल में घट का प्रत्यक्ष होता है उस काल में प्रत्यक्ष रूप से उल्लेख घट का ही होता है । मृत्तिका रूप द्रव्य से अभिन्न होने पर भी कुशूलकपाल आदि का उल्लेख घट के समान नहीं होता। द्रव्य से अभिन्न होने के कारण जो प्रत्यक्ष रूप से उल्लेख होता हो तो घट के प्रत्यक्ष में कुशूलकपाल आदि का भी उल्लेख होना चाहिये । जब तक शक्ति, शक्ति रूप में है तब तक वह प्रमाण नहीं है, जब वह ज्ञान रूप में परिणत होती है तब वह प्रमाण होती है। जिस प्रकार करणभूत ज्ञान प्रत्यक्ष है इस प्रकार फल भूत ज्ञान भी प्रत्यक्ष है। इस पक्ष में करण और फल दोनों ही ज्ञान प्रत्यक्ष हैं।
मुलम्-तद् द्विभेदम्-प्रत्यक्षम् , परोक्षं च ।
अर्थ-उस प्रमाण के दो भेद हैं, प्रत्यक्ष और परोक्ष । प्रत्यक्ष पद की व्युत्पत्ति और प्रवृत्तिके निमित्तको प्रकाशित करने के लिये कहते हैं
___ मूलम्-अक्षम् इन्द्रियं प्रतिगतम् कार्यत्वेनाश्रितं प्रत्यक्षम्,