________________
२१५
[ अनुमान प्रमाण का निरूपण ] मूलम्:- साधनात्साध्य विज्ञानम्-अनुमानम् | तद द्विविधं वा परार्थं च ।
अर्थ :- साधन से साध्य का ज्ञान 'अनुना' है । वह दो प्रकारका है: - (१) स्वार्थानुमान और (२) परार्थानुमान |
मूलम्:-तत्र हेतुग्रहण-सम्बन्धस्मरणकारणकं साध्य विज्ञानं स्वार्थम, यथा गृहीतधूमस्य स्मृतव्यातिकस्य पर्वता 'वहिनमानू' इतिज्ञानम् ।
अर्थ :- हेतु का ज्ञान और संबंध का स्मरण इन दो कारणोंसे जो साध्य का ज्ञान होता हैं वह स्वार्थानुमान है । जो धूम को प्रत्यक्ष से जानता है और धूम तथा अग्नि की व्याप्ति का स्मरण करता है उसको "यह पर्वत अग्निमान् है" इस प्रकार का ज्ञान होता है । यह स्वार्थानुमान है ।
जिसने अग्नि अर धूम की व्याप्ति रसोई घर में जानली है इस प्रकार का पुरुष जब पर्वत के समीप जाता है और पर्वत से निकलते हम को देखता है, तो उसको देखने के अनन्तर अग्नि और धूमकी व्याप्ति का स्मरण होता है | धूम अग्निसे व्याप्त है, यह स्मरण का आकार है । उसके उत्तरकाल में पर्वत वह्निमान है यह ज्ञान