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अर्थ:-यह आगम प्रमाण सब स्थानों पर विधि और प्रतिषेध के द्वारा अपने वाच्य अर्थ का निरूपण करता हुआ सप्तभङ्गी का अनुसरण करता है। सप्तभङ्गी के रूप में ही वह पूर्ण अर्थ का प्रकाशन करता है और इस प्रकार उसके तात्त्विक प्रामाण्य का निर्वाह होता है । कहीं कहीं पर एक भङ्ग देखा जाता है तो भी व्युत्पन्न बुद्धिवालों को अन्य भङ्गों का आक्षेप अवश्य हो जाता है।
विवेचना:-वाच्य अर्थ की प्रतीति को उत्पन्न करनेके कारण आगम प्रमाण है। आगम का यह प्रामाण्य दो प्रकारका है, तात्त्विक और लौकिक । तात्त्विक प्रामाण्य तब होता है जब शब्द परिपूर्ण अर्थ का प्रकाशन करता है । शब्द के द्वारा पूर्ण अर्थ का प्रकाशन तब होता है जब शब्द विधि और निषेध के द्वारा अर्थ का प्रतिपादन करता हुआ, सप्तभङ्गों को प्राप्त करता है । अर्थ में अनन्त धर्म हैं। उनमें से किसी एक धर्म के विषय में अपेक्षा से विरोधी धर्म के साथ सात भङ्गों द्वारा प्रतिपादन पूर्ण ज्ञान का उत्पादक है । यहां पर ज्ञान की पूर्णता पारिभाषिक है। अनन्त पर्यायों के साथ समस्त अर्थों का प्रकाशक केवलज्ञान पूर्ण ज्ञान है। सप्तभङ्गी के द्वारा जो ज्ञान उत्पन्न होता है उसमें वह पूर्ण भाव नहीं होता जो केवलज्ञान में होता है। सप्तभङ्गी किसी एक धर्म के विषय में सात प्रकार का ज्ञान उत्पन्न करती है, इस ज्ञान की पूर्णता इतनी ही है । यह स्पष्टरूप से अनन्त धर्म तो क्या ? प्रतिपाद्य धर्म के अति