Book Title: Jain Tark Bhasha
Author(s): Ishwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
Publisher: Girish H Bhansali

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Page 560
________________ ३६ आकार है उससे घट के आकार का भेद देखते ही प्रतीत हो जाता हैं । दूध जब दही के रूप में परिणत होता है तब दूध और दही का आकार में कुछ भेद होता है, पर उतना नहीं जितना मिट्टी के पिंड और घट का होता है । दूध की गोलाई जितनी होतो है उतनी दही की भी होती है । दूध के समान दहो भो वर्ग में श्वेत होता है । पर दूध द्रव रहता है और दही जमकर धन हो जाता है इतना भेद प्रकट होता है। इस प्रकार के विकारों में एकबार विकार उत्पन्न होने पर फिर विकार से रहित दशा का आकार स्पष्ट नहीं दिखाई देता । दही बन जाने पर फिर दूध का आकार नहीं बनता । बीज और अंकुर में कारण और कार्य के आकारों में जो भेद है वह दूध दही आदि को अपेक्षा भी अत्यन्त अधिक है । वट वृक्ष के बीज का आकार अत्यंत छोटा है । उसको एक चींटी (कीडी) भी उठाकर इधर से उधर दूर तक ले जा सकती है ।जब वह वृक्ष बड़ा होकर शाखा प्रशाखाओं के साथ फैल जाता है तब उसको हाथी भी नहीं उखाड सकते । शाखाओं के लम्बे और ऊँचे आकार के साथ बीज के अत्यन्त लघु आकार का भेद बहुत स्पष्ट है। इस प्रकार के समस्त विकारों में आकार का भेद रहता है परन्तु एक अनुगत आकार सदा रहता है यह अनुगत रूप द्रव्य का है। जब द्रव्य कभी विकार में भिन्न आकार को धारण कर के फिर मूल आकार में दिखाई देता है तो द्रव्य का अनुगत स्वरूप स्पष्ट हो जाता है । सर्प जब फण ऊँचा कर के खडा होता है उससे

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