Book Title: Jain Tark Bhasha
Author(s): Ishwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
Publisher: Girish H Bhansali

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Page 595
________________ ७१ मूलश्लोक:तर्क भाषामिमां कृत्वा मया यत्पुण्यमर्जितम् । प्राप्नुयां तेन विपुलां परमानंदसम्पदम् ||३|| अर्थः- इस तर्कभाषाकी रचना करके जो पुण्य मैंने प्राप्त किया है उसके द्वारा मैं परमानन्दकी विशाल संपत्ति को प्राप्त करूं ॥३॥ मूलश्लोकः पूर्वं न्यायविशारदत्व विरुदं कारयां प्रदत्तं बुधैः न्यायाचार्यपदं ततः कृतशतग्रन्थस्य यस्यार्पितम् शिष्यप्रार्थनया नयादिविजयप्राज्ञोत्तमानां शिशुः तत्त्वं किञ्चिदिदं यशोविजय इत्याख्याभृदाख्यातवान् ॥ ४ ॥ अर्थः- जिसको पूर्वकालमें पण्डितोंने काशी में न्यायविशारद की उपाधि दी थी । उसके अनन्तर सौ ग्रन्थों की रचना कर चुकने पर न्यायाचार्य पद अर्पण किया । उत्कृष्ट पण्डित नयविजयजी के शिशु यशोविजय इस नामके धारण करनेवालेने शिष्योंको प्रार्थनासे इस तत्त्वको संक्षेपसे कहा ॥४॥

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