Book Title: Jain Tark Bhasha
Author(s): Ishwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
Publisher: Girish H Bhansali

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Page 590
________________ ६६ भवका जीव उत्तर कालके भवके नीव का कारण होता है इस अपेक्षा अनुसार समस्त जीव द्रव्य जीव हो जायेंगे, कोई भावजीव नहीं रहेगा । कार्य दशामें अर्थ भाव है और कारण दशा में द्रव्य है । एक ही कालमें एक ही अर्थ कार्यरूप और कारणरूप नहीं हो सकता इस मतको मान लेने पर केवल एक सिद्ध ही भाव जीव हो सकेगा । सिद्ध हो जानेके अनंतर जीव अन्य भवमें उत्पन्न नहीं होता, इसलिए वह भावरूपमें ही रहेगा। जितने भी संसारी जीव हैं वे सब इस मत के अनुसार द्रव्य हो जायेंगें कोई भी भाव जीव न हो सकेगा । वास्तवमें संसार के सभी जीव भावजीव हैं अतः इस रीति से द्रव्य जीवका स्वरूप उचित नहीं है । मूलम् इदं पुनरिहावधेयं - इत्थं संसारिजीवे द्रव्यत्वेऽपि भावत्वाविरोधः, एकवस्तुगतानां नामादीनां भावाविनाभूतत्वप्रतिपादनात् । तदाह भाष्यकारः - "अहवा वत्थूभिहाणं नामं ठवणा य जो तयागारो कारणया से दव्वं, कज्जावन्नं तयं भावो || १ || " [६० ] इति । अर्थ:- यहाँ यह ध्यान देने योग्य है- इस प्रकार संसारी जीवके द्रव्य होने पर भी भावत्वका विरोध नहीं होगा । एक वस्तुमें रहनेवाले नाम आदिका भावके साथ अविनाभाव है, इस वस्तुका प्रतिपादन शास्त्र में है । भाष्यकार कहते हैं- अथवा वस्तुका अभिधान नाम है, उसका आकार स्थापना है, भावा

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