________________
विवेचनाः-जो लोग निक्षेपोंकी व्यापकताको सिद्ध करना चाहते हैं उनमें से कुछ लोग शास्त्रकी परिभाषाका आश्रय लेकर जीवके विषयमें द्रव्य निक्षेपका निरूपण करते हैं। " अनुपयोगी द्रव्यम्" इस प्राचीन परिभाषाके अनुसार उपयोगके अभाव को द्रव्य कहते हैं। इसलिए जीव शब्दके अर्थका ज्ञान होने पर भी जब जीवके विषयमें उपयोग नहीं है तब पुरुष द्रव्यजीव कहा जा सकता है। इस विषयमें उपाध्यायजी इस उत्तरको बहुत युक्त नहीं समझते । निक्षेपके प्रकरणमें मुख्य रूपसे द्रव्य वह होता है जो भावका कारण हो पर स्वयं भाव रूप न हो । द्रव्यका यह मुख्य स्वरूप जीवमें नहीं हो सकता। मलम्-अपरे तु वदन्ति-अहमेव मनुष्यजीवो [द्रव्यजीवो]
ऽभिधातव्यः उत्तरं देवजीवमप्रादुर्भूतमाश्रित्य अहं हि तस्योत्पित्सोर्देव जीवस्य कारणं भवामि यतश्चाहमेव तेन देवजीवभावेन भविष्यामि, अतोहमधुना द्रव्यजीव इति । एतत्कथितं तैर्भवतिपूर्व पूर्वो जीवः परस्य परस्योत्पित्सोः कारणमिति । अस्मिंश्च पक्षे सिद्ध एव भावजीवो भवति
नान्य इति एतदपि नानवद्यमिति तत्त्वार्थटीकाकृतः अर्थ:-अन्य लोग कहते हैं- जो अभी उत्पन्न नहीं हुआ
इस प्रकारके उत्तर कालमें होनेवाले देव जीवकी अपेक्षासे मैं मनुष्य जीव ही द्रव्य जीव हूँ इस प्रकार