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प्रकारका गुण और पर्यायसे रहित जीव पीछेके कालमें गुण और पर्यायसे युक्त हो सकता है । इस प्रकारके कल्पित जीवको गुण
और पर्यायसे विशिष्ट जीवका कारण होनेसे द्रव्य जीव कहा जा सकता है। कुछ लोग इस प्रकार जीवके विषयमें भी द्रव्य निक्षेपका प्रतिपादन करते हैं।
परन्तु यह युक्त नहीं है । जो वस्तु विद्यमान है उसके विरुद्ध कल्पना हो सकती है, परन्तु कल्पना के अनुसार अर्थका परिणाम नहीं होता। मनुष्यके शरीरमें कल्पनासे सिंहका सिर लगा देने पर भी वास्तवमें सिरका सम्बन्ध नहीं होता और न ही मनुष्यके शरीर पर पँख हो जाते हैं । इसी प्रकार अनादि पारिणामिक चैतन्यसे युक्त जीव किसी भी समयमें गुण और पर्यायोंसे रहित नहीं हो सकता । अतः इस प्रकारका कल्पित जीव भाव जीवकी अपेक्षासे द्रव्य जीव नहीं हो सकता । इस लिये जीवके विषय में द्रव्य निक्षेप नहीं है।
यहाँ पर तर्क भाषाके मुद्रित पाठमें इतना फेरफार किया जाय तो उपाध्यायजी ने तत्त्वार्थ सूत्रके न्यास प्रतिपादक भाष्य की जिस प्रकार व्याख्या की है उसके साथ पूर्ण संगति हो जाती है । मूलम-न चैवं नामादिचतुष्टयस्य व्यापिता भङ्गः यतः प्रायः
सर्वपदार्थेष्वन्येषु तत् सम्भवति । यद्यत्रैकस्मिन्न सम्भवति नैतावता भवत्यव्यापितेति वृद्धाः।